विशेष एसआइटी अदालत ने सोमवार को कहा कि वह गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले के 24 दोषियों को शुक्रवार 17 जून को सजा सुनाएगी। गुजरात में 2002 में गोधरा दंगों के दौरान हुए गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसन जाफरी सहित 69 व्यक्ति मारे गए थे। विशेष न्यायाधीश पीबी देसाई की अदालत ने कहा कि दोषियों को सजा की मात्रा के बारे में 17 जून को एलान किया जाएगा। अदालत ने दो जून को इस मामले में हत्या और अन्य अपराधों के लिए 11 व्यक्तियों को दोषी ठहराया जबकि विहिप नेता अतुल वैद्य सहित 13 पर कम गंभीर अपराधों के आरोप लगाए।
अदालत ने मामले में 36 लोगों को बरी कर दिया। दोनों पक्षों, बचाव पक्ष के वकीलों और पीड़ितों के वकीलों की दलीलों पर विचार करने के बाद गत शुक्रवार को अदालत ने सजा की मात्रा पर जिरह पूरी की थी। जिरह के दौरान विशेष लोक अभियोजक और सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त विशेष जांच दल के लिए वकील आरसी कोडेकर ने अदालत से कहा कि सभी 24 दोषियों को मृत्युदंड या मौत होने तक जेल में रहने की सजा से कम दंड नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी 24 दोषी भादंवि की धारा 149 के तहत अपराध के दोषी पाए गए हैं। सजा का एलान करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाना जरूरी है। धारा 149 में कहा गया है कि किसी समूह के अपराध को अंजाम दिए जाते समय उस समूह का सदस्य हर व्यक्ति उस अपराध का दोषी है।
कोडेकर ने कहा कि अपराध का तरीका क्रूर और अमानवीय था। पीड़ितों को जिंदा जलाया गया। अपराध को बिना किसी उकसावे के अंजाम दिया गया। उन्होंने अदालत को बताया कि गुलबर्ग सोसायटी के निवासियों को मारने के इस जघन्य कृत्य में शामिल लोग या तो उनके जानकार थे या पड़ोसी थे, न कि दूसरे देश से आए आतंकवादी। पीड़ितों के वकील एसएम वोरा ने भी आरोपियों के लिए अधिकतम सजा की मांग करते हुए दलील दी कि हर अपराध के लिए सजा साथ-साथ नहीं चलनी चाहिए ताकि
दोषी अपना पूरा जीवन जेल में बिताएं।
आरोपियों के वकील अभय भारद्वाज ने जिरह के दौरान अधिकतम सजा या मृत्युदंड की मांग खारिज करते हुए कहा था कि घटना पर्याप्त उकसावे के बाद हुई थी। पूर्व में भारद्वाज ने अदालत में कहा था- चूंकि षड्यंत्र की बात साबित नहीं हुई है इसलिए आंशिक रूप से भरोसे योग्य सबूत के आधार पर अदालत से मृत्युदंड की मांग करना सही नहीं है। अदालत को दोषियों की परिस्थितियों, उनके पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड, उम्र, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, पुनर्वास की संभावना और उनके सुधार की गुंजाइश आदि पर विचार करने के बाद ही सजा सुनानी चाहिए। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि सभी आरोपियों की सजा में नरमी बरती जाए।
गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार 28 फरवरी, 2002 को हुआ था। तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। करीब 400 लोगों की भीड़ ने अमदाबाद शहर के मध्य में स्थित गुलबर्ग सोसायटी पर हमला कर पूर्व सांसद अहसन जाफरी सहित वहां के निवासियों को मार डाला था। 2002 में हुए गुजरात दंगों के नौ मामलों में से एक मामला यह भी था जिसकी जांच सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त विशेष जांच दल ने की। यह घटना साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे को गोधरा स्टेशन के पास जलाए जाने के एक दिन बाद हुई थी। साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे को जलाने की घटना में अयोध्या जा रहे 58 कार सेवक मारे गए थे। मामले की निगरानी कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जांच दल को आदेश दिया था कि वह 31 मई तक अपना निष्कर्ष दे। सुनवाई के दौरान करीब 338 गवाहों से जिरह की गई। मामले में 66 आरोपियों के नाम विशेष जांच दल ने लिए थे जिनमें से नौ जेल में हैं और शेष जमानत पर हैं।
इसी बीच, गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले के एक दोषी ने सोमवार को विशेष एसआइटी अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया। पिछले साल दिसंबर में उसे अस्थायी जमानत दी गई थी जिसकी मियाद खत्म हो गई थी। कैलाश धोबी गुलबर्ग सोसायटी मामले में हत्या और अन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों में से एक है। इस मामले में एसआइटी ने उसे आरोपी नंबर एक बनाया है। अदालत ने दोषी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
धोबी को 2002 में गिरफ्तार किया गया था। वह 14 साल तक जेल में बंद था। उसे पिछले साल दिसंबर में हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य के आधार पर अस्थायी जमानत दी थी। उसके बाद दो बार जमानत अवधि बढ़ाई गई। जमानत शर्ताें के अनुसार उसे इस साल 29 जनवरी को जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करना था क्योंकि 25 जनवरी को तीसरी बार जमानत अवधि बढ़ाने के लिए दायर की गई उसकी याचिका हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी