ओमप्रकाश ठाकुर
हिमाचल कांग्रेस के एकछत्र नेता मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के निधन के बाद से ही प्रदेश कांग्रेस में ताकतवर नेताओं की कमी खलने लगी है। वीरभद्र सिंह के बाद जिला कांगड़ा के तेजतर्रार नेता जीएस बाली का भी शुक्रवार को निधन हो गया है। वे कांगड़ा जिला से कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार थे। जिला कांगड़ा प्रदेश में सबसे बड़ा जिला है और सबसे ज्यादा विधानसभा की सीटें है लेकिन कांगड़ा को शांताकुमार के अलावा कभी कोई मुख्यमंत्री नहीं मिला।
शांताकुमार भी दो बार मुख्यमंत्री रहे, लेकिन वे अपना कार्यकाल एक बार भी पूरा नहीं कर पाए। 2022 के चुनावों में बाली को लेकर जरूर कहा जा रहा था कि वे मुख्यमंत्री के दावेदार हो सकते हैं। लेकिन अब उनका अध्याय भी समाप्त हो गया है। प्रदेश में 2022 के चुनावों को लेकर कांग्रेस पार्टी एकजुटता का दिखावा तो जरूर कर रही है लेकिन वीरभद्र सिंह के बाद पार्टी को एकजुट रखने वाला कोई नेता पार्टी के पास नहीं है। न ही कोई ऐसा नेता बचा है जो 2022 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को आगे की ओर ले जा सके।
हालांकि कांग्रेस आलाकमान जरूर इस कोशिश में है कि एकजुटता से आगे चला जाए और पूरी तैयारी के साथ काम किया जाए। यह फार्मूला काम करता नजर भी आ रहा है लेकिन मुख्यमंत्री बनने की महत्त्वाकांक्षा कांग्रेस में कई नेता पाल चुके हंै। ऐसे में अंदेशा है कि कहीं कांग्रेस पार्टी में 2022 में पंजाब कांग्रेस की तरह कोई विद्रोह न हो जाए। ये अटकलें तो प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को लेकर भी एक अरसे से लगती रही है कि वे भाजपा के नेताओं के संपर्क में है।
इस तरह की करीबियों के संकेत सार्वजनिक तौर पर भी मिलते भी रहे हंै और पार्टी में भी तरह -तरह के कयास उठते रहे हैं। चुनावों के दौरान ऐसे भी भाजपा विपक्षी दल के नेताओं को अपनी ओर खींचने का पूरा इंतजाम करती रही है। हिमाचल में भी वह ऐसा नहीं करेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। पंजाब में तो कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के साथ ही हाथ मिलाने के संकेत मिल रहे हैं। ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है कि वह एकजुट भी रहे और उसके नेता इधर -उधर भी न भागें। लेकिन कांग्रेस किसकी कमान में आगे बढ़ेगी यह तय नहीं हो पा रहा है। कांग्रेस के जो नेता पार्टी पर वर्चस्व कर वीरभद्र सिंह की तरह अपना अभियान छेड़ना चाह रहे थे उन्हें पंजाब में अमरिंदर सिंह को आलाकमान ने कैसे बाहर कर दिया, इसका आभास तो है ही।
अब 2022 के चुनावों के लिए एक ही साल बचा है और कांग्रेस के पास वीरभद्र सिंह और बाली की क्षमताओं के स्तर के नेता ज्यादा नहीं है। ये दोनों नेता ऐसे थे जिनके पास संसाधनों की कमी नहीं थी और नौकरशाही के अलावा आलाकमान के साथ भी अच्छा तालमेल रखते थे। बाकी जो बचे हुए नेता है उनमें से अधिकांश के पास ज्यादा संसाधन नहीं है। जिनके पास संसाधन है उनकी नौकरशाही पर पकड़ नहीं और न ही जनाधार है। इसके अलावा आलाकमान में भी ज्यादा दखल नहीं है।
चाहे वह पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ही क्यों न हो। उनके अलावा वरिष्ठता में कौल सिंह ठाकुर, कांगे्रस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी की करीबी विप्लव ठाकुर, बिलासपुर से रामलाल ठाकुर, चंबा से आशा कुमारी और ऊना से नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री जैसे चेहरे हैं। यूं तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू भी कतार में है। चूंकि इनमें से किसी का भी प्रदेश में जनाधार नहीं है ऐसे में यह कयास भी लगने शुरू हो गए है कि कहीं ऐसा न हो कि दस जनपथ अपने किसी चहेते, जो नया चेहरा भी हो को प्रदेश कांग्रेस का अगला नेता स्थापित कर दें।