सूखा प्रभावित इलाकों में मुहिम चला रहे स्वराज अभियान ने कहा कि न तो राज्य सरकारें ही सूखे को गंभीरता से लेकर लोगों के साथ न्याय कर रही है और न ही केंद्र। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों की भी अनदेखी की जा रही है। अभियान के अगुआ योगेंद्र यादव ने पत्रकारों से कहा कि सूखा प्रभावितों के हालात पर स्वराज अभियान की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को एक महीना से अधिक बीत जाने के बावजूद जानबूझकर फैसले की अवज्ञा की जा रही है। अदालत की अगस्त में होने वाली अगली सुनवाई के पहले केंद्र व राज्य सरकारों को अपनी रपट देनी है। अभियान जमीनी हकीकत अदालत के सामने रखेगा।
यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विभिन्न जनआंदोलनों ने सूखा राहत कार्यों की जमीनी स्थिति पर निगरानी के लिए पहल की। स्वराज अभियान ने एकता परिषद, जल बिरादरी और जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के साथ मिलकर लातूर से महोबा की जल हल पदयात्रा आयोजित की। इसी तरह की यात्रा तेलंगाना में और चंबल से बुंदेल खंड के लिए आयोजित की गई। सूचना व रोजगार अभियान, राइट टू फूड कैंपेन और पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लायमेंट गारंटी के जरिए जयपुर और भोपाल में राज्यस्तरीय जनसुनवाई का आयोजन किया गया। इन सारे जमीनी आकलनों में यह दुखद सच सामने आया है कि सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का कई मायनों में उल्लंघन हो रहा है।
सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज के निदेशक हर्ष मंदर ने कहा कि सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खाद्यान्नों की सार्वभौमिक पहुंच कहीं नहीं है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारें सूखे से प्रभावित इलाकों के लिए तय मानदंडों के हिसाब से काम करें व पीड़ितो को राहत पहुंचाएं। सूखा प्रभावित इलाके के हर व्यक्ति को अनाज दिया जाए चाहे उसके पास राशन कार्ड या बीपीएल कार्ड हो या नहीं। ताकि भूख से किसी की मौत न हो।
डाक्टर सुनीलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणियों के बाद भी समय पर फंड जारी नहीं करके मनरेगा को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। सूखा आपदा के वक्त में भी भुगतान में देरी हो रही है। पिछले साल के काम का पैसा लोगों को नहीं मिला है। अच्छे मानसून के पूर्वानुमान के बाद भी सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसान अगली फसल लगाने को तैयार नहीं हैं। उन्हें अभी तक फसल नुकसान का मुआवजा नहीं मिला है और न ही नया कर्ज मिल रहा है।
दीपा सिन्हा ने कहा कि आधे से ज्यादा राज्यों में गर्मी की छुट्टियों के दौरान स्कूलों में मिड डे मील नहीं दिया गया है। हमारी यात्रा और बातचीत के दौरान देश के कई हिस्सों में, विशेषकर मराठवाड़ा और बुंदेलखंड में भयावह स्थिति सामने आई। मराठवाड़ा में पानी का अकाल है और पानी माफिया की वजह से स्थिति और बदतर हो गई है।
पीवी राजगोपाल ने कहा कि सूखा प्रभावित क्षेत्रों में ग्रामीण आबादी का मजबूरी में व्यापक पलायन हो रहा है, जिसमें जमीन वाले किसान भी हैं। यह पलायन मौसमी मजदूर स्थानांतरण से अलग और कहीं ज्यादा संख्या में है। हम सभी सरकारों, विशेष रूप से केंद्र सरकार से अपील करते हैं कि कोर्ट के आदेशों का अक्षरश: और उसकी भावना के अनुरूप पालन हो। हालांकि देश एक अच्छे मानसून की उम्मीद कर रहा है लेकिन यह समझना बहुत अहम है कि अच्छी बारिश से सूखाजन्य सभी समस्याएं खत्म नहीं होंगी। सभी 13 सूखा प्रभावित राज्यों में सूखा राहत निगरानी के लिए कई जन आंदोलनों और संगठनों ने एक साथ आने का निर्णय किया है। अगस्त को इस केस की अगली सुनवाई में यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को पेश किया जाएगा। केंद्र सरकार समय पर और पर्याप्त धन जारी करे ताकि कार्य बल को समय से मजदूरी का भुगतान किया जा सके।