रेलवे के मालदा डिवीजन समेत देश के दूसरे डिवीजन में कैशलैश टिकट बुकिंग अभी तक रफ्तार नहीं पकड़ सकी है। इसके लिए रेलवे महकमा भी कम दोषी नहीं है। पूरे देश में रेलवे की आईआरसीटीसी की साइट से ई-टिकट बुक करने के लिए केवल सात बैंकों के क्रेडिट, डेबिट कार्ड ही मान्य हैं। ध्यान रहे कि बीते महीने रेलवे ने कैशलैश को बढ़ावा देने के लिए सभी बैंकों के कार्ड मान्य करने की बात कही थी। फिलहाल इस बात से दूर-दूर तक कोई वास्ता नजर नहीं आ रहा है और केंद्र सरकार की इस योजना को पलीता लग रहा है।
दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कालेज के डॉ. शशिकांत के पास पीएनबी का, भागलपुर के संजीव कुमार शर्मा के पास यूनियन बैंक का तो स्मिता के पास यूको बैंक का डेबिट कार्ड है। मगर इनकी दिक्कत यह है कि ई-टिकट बुक कराने में आईआरसीटीसी साइट पर इनके बैंक का ऑप्सन ही नहीं है। नतीजतन इन्हें काउंटर या एजेंट के जरिए टिकट नकद देकर बुक करानी पड़ी। इन्हें दिल्ली से भागलपुर आना था। यह तो केवल एक बानगी है। रेलवे की आईआरसीटीसी टिकट बुकिंग साइट पर केवल सात बैंकों के नाम दर्शाते हैं। ये हैं- इंडियन ओवरसीज बैंक, एचडीएफसी, यूबीआई, इंडियन बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक और एक्सिस बैंक।
इनके अलावा देश में दो दर्जन से ज्यादा सरकारी और गैर सरकारी बैंक है और इनके करोड़ों ग्राहक हैं। जिनके पास क्रेडिट और डेबिट कार्ड है। लेकिन रेलवे की नजर में इनके कार्ड का कोई काम के नहीं है। इसके साथ ही देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक भी रेलवे की सूची से नदारत है। जानकार बताते हैं कि करीब छह महीने पहले ऐसा नहीं था। सभी बैंकों के कार्ड मान्य थे। सर्विस चार्ज को लेकर बैंकों और रेलवे में झमेला हुआ था। रेलवे ने एक बयान जारी कर बीते महीने मामला सुलझा लेने और सभी बैंकों के कार्ड मान्य कर दिए जाने की बात कही थी। लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है।
रेलवे बोर्ड के एक अधिकारी के मुताबिक, देश में करीब दो करोड़ 23 लाख लोग ट्रेन से रोजाना सफर करते हैं। जिनमें से केवल 10 से 15 लाख मुसाफिर ही ऑनलाइन ई-टिकट बुक करा पाते हैं। इनमें से तकरीबन 50 हजार यात्री ही ऐसे हैं जो टिकट बुकिंग में अपने मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। जाहिर है बीते 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद लागू हुई कैशलेस योजना परवान नहीं चढ़ सकी है। भागलपुर रेलवे के मालदा डिवीजन का सबसे कमाऊ स्टेशन की गिनती में है। लेकिन यहां भी पांच-सात हजार रुपए के टिकट ही कैशलेस रोजाना खरीदे जा रहे हैं जबकि नकद बिक्री लाखों में है।
यही हाल दानापुर डिवीजन के तहत आने वाली बिहार की राजधानी पटना स्टेशन का है। स्नेहा जोशी कलकत्ता में चार्टर्ड एकाउंटेंट की पढ़ाई कर रही हैं। वह बताती हैं कि ई-टिकट रद्द कराने पर पैसे काफी देर से मिलते हैं जो पढ़े-लिखे हैं वे तो पीछे पड़कर रिफंड ले लेते हैं। लेकिन बाकियों का भगवान ही मालिक है। ऐसे में तो कैशलेस योजना परवान चढ़ने से रही !

