कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। दरअसल, ममता बनर्जी ने नंदीग्राम में सुवेंदु अधिकारी की जीत को लेकर चुनाव आयोग के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी। साथ ही इस केस में सुनवाई कर रहे जस्टिस कौशिक चंदा पर राजनीतिक पक्षपात रखने का आरोप लगाकर उन्हें हटाने की मांग भी उठाई थी। इसे लेकर ही हाईकोर्ट ने ममता पर जुर्माना लगाया है।

बताया गया है कि जस्टिस चंदा ने इस केस से खुद को अलग भी कर लिया है। उन्होंने बुधवार को सुनवाई के दौरान इसका ऐलान करते हुए कहा कि जब पहली बार 18 जून को केस उनके सामने आया था, तब उनसे सुनवाई से अलग होने की कोई अपील नहीं की गई। लेकिन सुनवाई के बाद टीएमसी नेता उनकी फोटो और भाजपा से उनके जुड़ाव की जानकारी लेकर तैयार थे। इस बारे में उन्होंने कई ट्वीट भी कर दिए।

जस्टिस चंदा ने बताया कि इस मामले में नया जज नियुक्त करने के लिए चीफ जस्टिस के पास अपील की गई है। उन्होंने आगे कहा, “अब तक जो घटनाक्रम हुआ, उससे साफ है कि मुझे सुनवाई से हटाने की अपील डालने से पहले मेरे फैसले को प्रभावित करने के लिए जानबूझकर और सचेत तरीके से कोशिशें की गईं। ”

सीएम ममता के वकील का दावा था कि जस्टिस कौशिक चंदा को अकसर भाजपा नेताओं के साथ देखा गया है। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया था कि कौशिक चंदा ‘भाजपा के सक्रिय सदस्य’ रह चुके हैं और चूंकि चुनाव याचिका पर फैसले के राजनीतिक निहितार्थ होंगे, इसलिए यह अनुरोध किया जाता है कि विषय को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश द्वारा दूसरी पीठ को सौंप दिया जाए।

इस पर जज ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल के लिए केस लड़ता है, तो यह आम बात नहीं है। लेकिन जब वे केस की सुनवाई करते हैं, तब सारे पक्षपात किनारे कर देते हैं। उन्होंने आगे कहा, “इस मामले में आर्थिक हित पैदा नहीं होता, यह सुझाव देना बेतुका है कि एक न्यायाधीश जिसका किसी मामले के लिए एक राजनीतिक दल के साथ संबंध है, वह पक्षपात कर सकता है, वादी के दृष्टिकोण के कारण किसी न्यायाधीश को पक्षपाती नहीं देखा जा सकता।”

जस्टिस चंदा ने कहा कि याचिकाकर्ता के मामले को सुनने के लिए उनका कोई व्यक्तिगत झुकाव नहीं है और न ही उन्हें इस मामले को उठाने में भी कोई हिचक है। उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस द्वारा सौंपे गए मामलों पर सुनवाई करना उनका संवैधानिक कर्तव्य है।