बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मुखिया मायावती ने सोमवार को पाकिस्तान पर नरेंद्र मोदी सरकार की नीति को लचर व अस्थिर करार दिया। उन्होंने कहा कि इस वजह से दोनों मुल्कों की सरहद पर हालात पहले की ही तरह असुरक्षित बने हुए हैं। मायावती ने यहां आयोजित पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों की विशेष बैठक में उत्तर प्रदेश के साथ देश के मौजूदा राजनीतिक हालात पर चर्चा करते हुए कहा कि केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार की खासकर पाकिस्तान के संबंध में नीति काफी लचर और अस्थिर नजर आती है। इसके कारण भारत-पाक सीमा पर हालात पहले की तरह ही असुरक्षित बने हुए हैं। उन्होंने कहा- लोगों को लगा था कि भाजपा के शासन में खासकर पाकिस्तान के साथ संबंध में भारत की नीति में बदलाव से स्थिरता आएगी। लेकिन मोदी के शासन में भी पाकिस्तान को लेकर उसकी नीतियां लगातार बदलती रही हैं। कोई भी नीति प्रभावी होती नजर नहीं आ रही है। इससे देश में उदासीनता का माहौल बना हुआ है।
बसपा प्रमुख ने कहा कि 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान और केंद्र में भाजपा नीत सरकार बनने के बाद भी भाजपा के नेता और मंत्री लगातार उत्तेजक बयानबाजी करते रहे। भाजपा नेताओं पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाकर अयोध्या में मनमानी करने का धब्बा लगा हुआ है। मायावती ने उत्तर प्रदेश की सपा सरकार की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि जनसेवा, जनहित और जनकल्याण के साथ अपराध नियंत्रण और अच्छी कानून व्यवस्था कभी इस सरकार की प्राथमिकता नहीं रही। इसके जनविरोधी कार्यकलापों से पूरे प्रदेश में हर स्तर पर अराजकता का माहौल है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि एक तरफ भाजपा के रवैए के कारण प्रदेश का सांप्रदायिक माहौल लगातार खराब होता जा रहा है, दूसरी तरफ सपा सरकार इन चिंताओं से एकदम मुक्त नजर आ रही है। यह सपा-भाजपा की मिलीभगत का ही परिणाम है कि जिस सांप्रदायिक गतिविधि से देश के लोग खासे चिंतित हैं, उससे प्रदेश की सपा सरकार बेफ्रिक दिख रही है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस के नए महानिदेशक जावीद अहमद का रिकार्ड एक योग्य, कर्मठ और ईमानदार अफसर का रहा है। लेकिन समस्या यह है कि सपा सरकार में किसी भी अफसर को कानून के तहत ईमानदारी से काम करने ही नहीं दिया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में निचले स्तर पर जिलों, विकास खंडों और तहसीलों में एक जाति विशेष के अधिकतर ऐसे भ्रष्ट आचरण वाले लोगों को तैनात कर दिया गया है जो न खुद ईमानदारी से अपना काम करते हैं और न उस संबंध में अपने वरिष्ठ अधिकारियों की सुनते हैं।
प्रदेश सरकार पर लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट में गलतबयानी का ‘काला कारनामा’ अंजाम देने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि उच्च सरकारी आयोगों में भी ऐसी नियुक्तियां की गई हैं जो अत्यंत विवादित रहीं। इसलिए हाई कोर्ट को दखल देकर वैसी नियुक्तियों को रद्द करना पड़ा।