Bombay HC: बॉम्बे हाईकोर्ट गुरुवार (20 अक्टूबर, 2022 को दीवाली की छुट्टी के बाद सुनवाई के लिए सहमत हो गया। हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि लंबी छुट्टियां लेने वाली अदालतें नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं, क्योंकि वादियों को न्याय मांगने का अधिकार इतनी लंबी छुट्टियों से प्रभावित होता है।
सबीना लकड़ावाला की याचिका में एक घोषणा की मांग की गई है कि किसी भी तरह की छुट्टी के लिए कोर्ट को 70 दिनों से अधिक समय तक बंद करना वादियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि लंबी छुट्टियों प्रथा को खत्म किया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे अदालत तत्काल सुनवाई के कई अनुरोधों के बावजूद उनकी एक और याचिका पर सुनवाई करने में विफल रही। यह मामलों की उच्च पेंडेंसी के कारण था और लंबी अदालती छुट्टियों ने उसी में योगदान दिया।
लकड़ावाला के वकील मैथ्यूज नेदुमपारा ने कहा कि याचिकाकर्ता न्यायाधीशों की छुट्टियां लेने के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन न्यायपालिका के सदस्यों को एक ही समय में छुट्टी नहीं लेनी चाहिए ताकि अदालतें पूरे साल काम करती रहें। नेदुमपारा ने गुरुवार को न्यायमूर्ति एस वी गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति आर एन लड्ढा की खंडपीठ के समक्ष तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए याचिका का उल्लेख किया।
पीठ ने वकील से पूछा कि अब जनहित याचिका क्यों दायर की गई, जब 2022 के लिए उच्च न्यायालय का कैलेंडर पिछले साल नवंबर में ही उपलब्ध कराया गया था। इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि वह 15 नवंबर को जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा। बता दें, उच्च न्यायालय हर साल तीन ब्रेक लेता है – गर्मी की छुट्टी (एक महीने), दिवाली की छुट्टी (दो सप्ताह) और क्रिसमस की छुट्टी (एक सप्ताह)। छुट्टियों के दौरान, तत्काल न्यायिक कार्य के लिए विशेष अवकाश बेंच उपलब्ध हैं। लकड़ावाला ने अपनी याचिका में कहा कि लंबी अदालती छुट्टियां औपनिवेशिक युग को इंगित करती हैं और न्यायिक प्रणाली के पतन में इनकी भूमिका है।
याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि किसी भी तरह की छुट्टी के लिए अदालतों को 70 दिनों से अधिक समय तक बंद करना वादियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि इससे अदालतें समय की कमी के कारण मामलों की सुनवाई करने में असमर्थ हो जाती हैं।