महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच मतभेद का मामला अब बॉम्बे हाई कोर्ट जा पहुंचा है। बुधवार को हाई कोर्ट ने इस मसले पर सख्त टिप्पणी की और कहा कि दोनों संवैधानिक नेताओं को आपस में बैठकर मतभेदों को सुलझाना उचित होगा। दरअसल, अदालत की सख्त टिप्पणी तब आई जब अधिवक्ता महेश जेठमलानी और सुभाष झा के माध्यम से दायर दो जनहित याचिकाओं के बारे में बात हो रही थी।

मुख्य न्यायाधीश दीपंकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ ने कहा कि यह महाराष्ट्र का दुर्भाग्य है कि प्रदेश के दो सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोग एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं। पीठ का इशारा प्रदेश के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की तरफ था। पीठ ने कहा कि दोनों संवैधानिक नेताओं को आपस में बैठकर इन मतभेदों को सुलझाना ही उचित होगा।

अदालत की यह मौखिक टिप्पणी तब आई जब उच्च न्यायालय के फैसले के आठ महीने बाद महाराष्ट्र विधान परिषद में 12 सदस्यों के नामांकन पर राज्यपाल की निष्क्रियता का जिक्र कर रही थी। हालांकि, इस दौरान अदालत ने सीधे तौर पर राज्यपाल का नाम नहीं लिया। बता दें कि, महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव प्रक्रिया को दो जनहित याचिकाओं के द्वारा चुनौती दी गई थी।

इसके बाद अदालत ने दोनों याचिकाओं को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि जैसा संविधान का अनुच्छेद 14 गारंटी देता है उस प्रकार प्रक्रिया कानून के समक्ष नागरिकों के समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है। इस मामलें में भाजपा विधायक गिरीश महाजन और एक अन्य व्यक्ति जनक व्यास के द्वारा याचिका दायर की गई थी। इसके अलावा अदालत ने दोनों लोगों द्वारा डिपॉजिट रकम को जब्त करने का आदेश दिया।

वहीं हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव से प्रदेश की जनता कैसे हो रही है। यह साबित करने के लिए याचिकाकर्ताओं को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। सख्त टिप्पणी के बाद हाई कोर्ट ने सवाल पूछा कि जनता से पूछिए कि लोकसभा का अध्यक्ष कौन है? इस अदालत में कितने लोग है जो जवाब दे पाएंगे? जनता की दिलचस्पी कम से कम इस बात में है कि विधानसभा अध्यक्ष कौन होगा।

पूरे मसले पर अदालत ने कहा कि आपको यह दिखाना होगा कि मुद्दा जनहित याचिका के योग्य है या नहीं? अध्यक्ष केवल विधायिका के अध्यक्ष हैं? इन सबके बीच जनहित कहां है? अदालत ने यह सारी बातें भाजपा विधायक गिरीश महाजन के द्वारा दायर जनहित याचिका में कही, जिनमें कहा गया था कि विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव से संबंधित नियमों को बदल कर महाराष्ट्र की महा विकास आघाडी सरकार लोकतंत्र का गला घोंट रही है।