सोलहवीं लोकसभा के चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश शुरू करने वाली भाजपा इस बार छह दिसंबर को डा. आंबेडकर से जुड़ी केंद्र सरकार की उपलब्धियों का उत्तर प्रदेश में बखान करने जा रही है। इस दिन डा. भीमराव आंबेडकर का परिनिर्वाण दिवस है। पार्टी की पूरी कोशिश खुद को बाबा साहब का सबसे बड़ा हिमायती जताकर बसपा के वोट बैंक में सेंधमारी की है। यही वजह है कि छह दिसम्बर को प्रदेश भर में भाजपाई दलित बस्तियों में जाकर उनके साथ पूरा दिन गुजारने की तैयारी कर रहे हैं।
सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश में मिली 71 सीटों से उत्साहित भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले वर्ष छह दिसम्बर को प्रदेश की दलित बस्तियों में पूरा दिन गुजारने का अभियान श्ुारू किया था। इस अभियान को उस वक्त यह नारा दिया गया था, बाबा आंबेडकर का आशीर्वाद, चलो चलें मोदी के साथ। बीते वर्ष छह दिसंबर को शुरू हुए इस अभियान से भाजपा को संतोष कितना मिला? और इसका उसे असर कितना समझ आया? यह पार्टी स्तर पर गहन समीक्षा का विषय हो सकता है। लेकिन इस वक्त भाजपा का पूरा ध्यान मोदी सरकार के दौरान शुरू की गर्ई डा. भीमराव आंबेडकर से जुड़ी योजनाओं को गिनाकर प्रदेश के अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने पर केन्द्रित है। उसे भरोसा है कि ऐसा कर वह उत्तर प्रदेश में रह रहे 22 प्रतिशत दलित मतदाता को बसपा से अपने पाले में खींचने में कामयाबी हासिल कर लेगी।
भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में दलितों के बीच बहुजन समाज पार्टी की पकड़ का अंदाजा बखूबी है। उसे इस बात का भी इल्म है कि सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में भले ही भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 73 सीटें जीती थीं लेकिन इसी चुनाव में बहुजन समाज पार्टी 33 सीटों पर दूसरी पायदान पर खड़ी थी। मोदी सरकार ने बीते डेढ़ सालों में उत्तर प्रदेश, खास तौर पर यहां के ग्रामीण क्षेत्र के लिए किया क्या? इसकी सही तस्वीर अब तक प्रदेश के भाजपाई ग्रामीण जनता के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं। आज भी भाजपा नेताओं का पूरा ध्यान विकास और महंगाई के मुद्दे से अलग हिंसा और सांप्रदायिक मामलों की जांच तक ही सीमित होकर रह गया है। बुन्देलखण्ड जिसे कभी मायावती का गढ़ कहा जाता था, के किसानों की दुर्दशा के सत्यापन से अधिक अन्य प्रकरणों तक खुद को सीमित रख रहे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के समक्ष मोदी सरकार के विकास को दलित बस्तियों तक पहुंचाना और उन्हें वास्तविक विकास का भरोसा दिलाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
उत्तर प्रदेश में प्रोन्नति में आरक्षण का न ही समर्थन और न ही विरोध कर मध्य मार्ग पर चलने के राजनीतिक चातुर्य के आगामी विधानसभा चुनाव में चल निकलने का सब्जबाग पाले भाजपा नेता इस मसले पर बहुजन समाज पार्टी के स्पष्ट रुख को जान कर नजरअंदाज करने की कोशिश में हैं। उन्हें इस बात का भरोसा हो चला है कि प्रोन्नति में आरक्षण के मसले पर उनके रुख का लाभ वोटों की शक्ल में भाजपा को मिलेगा। डा. भीमराव आंबेडकर से जुड़ी वस्तुओं का संरक्षण या उनको सम्मानित करने का काम कर आगामी विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अपनी चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश में जुटे भाजपाई अब तक प्रदेश की जनता को यह बता पाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए हैं कि बीते डेढ़ सालों में मोदी सरकार ने उनके लिए दरअसल किया क्या है?
प्रदेश के पचास से अधिक जिले भयावह सूखे की चपेट में हैं। यह तीसरी फसल है जिसे मौसम का बेरहम मिजाज लील चुका है। फसलों के बर्बाद होने के दंश से दु:खी उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच डा. आंबेडकर से खुद को जोड़ने की तस्वीर पेश कर भाजपा किस सियासी समीकरण को साधने की कोशिश में है? राजनीति के जानकारों की समझ से भी यह परे है। लेकिन फिलहाल डा. भीमराव आंबेडकर भारतीय जनता पार्टी के लिए एक ऐसा सियासी अवसर बनकर उपस्थित हुए हैं जिसको भुंना लेने की चाहत ने प्रदेश के भाजपाइयों में ऊर्जा का ऐसा संचार किया है जो वास्तविक कम और खयाली अधिक है।