UP News: उत्तर प्रदेश के बहराइच में जिस सालार मसूद गाजी को सीएम योगी आदित्याथ ने आक्रांता बताते हुए मेले पर रोक लगा दी थी। उसी की मजार पर जाकर शुक्रवार को बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने चादर चढ़ाई है। इतना ही नहीं, इस मौके पर उन्होंने खुद को भगवान श्रीराम का वंशज बताया है।
दरअसल, अमर उजाला अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, जमाल सिद्दीकी शुक्रवार को शहर स्थित सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर पहुंचे और चादर चढाकर जियारत की। वहीं यूपी में मदरसों पर हो रही कार्रवाई पर जमाल सिद्दकी ने कहा कि एक्शन सिर्फ उन अवैध मदरसों के खिलाफ हो रहा है जो कि चंदा लेकर बच्चों का भविष्य खराब कर रहे हैं।
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जमाल सिद्दीकी बोले- पहले सनातन था, इस्लाम बाद में आया
इस दौरान ही उन्होंने ये भी कहा कि पहले सनातन था, इस्लाम बाद में आया, इसलिए हम सभी श्रीराम के वंशज हुए हैं। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के नेता रणवीर सिंह पठानिया द्वारा ऑपरेशन सिंदूर को लेकर दिए गए बयान पर कहा कि उन्होंने भांग पीकर बयान दिया होगा जिसकी मैं निंदा करता हूं।
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लक्कड़शाह बाबा की दरगाह पर लगने वाले मेले पर भी रोक
दूसरी ओर कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग के मुर्तिहा रेंज के जंगल में लक्कड़ शाह बाबा की दरगाह है। यहां पर जेठ के महीने में मेला लगने की परंपरा 16 वीं शताब्दी से चली आ रही है। इस बार सालाना उर्स पर वन विभाग द्वारा इस मेले पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया है। बाबा लक्कड़शाह की दरगाह पहुंचने वाले दोनों मार्गों के नाकों पर बिछिया, निशानगाड़ा और मोतीपुर वन बैरियर पर ही जायरीनों को रोक दिया जा रहा है।
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मजार के प्रबंधन ने वन विभाग के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। इस पर हाई कोर्ट ने उनकी अर्जी को फिर से वन विभाग को यह कहते हुए वापस की थी कि उसकी सुनवाई वहीं पर हो। वन विभाग ने सुनवाई के बाद दरगाह प्रबंधन की अर्जी को खारिज कर दिया।
बाबा लक्कड़शाह का क्या है इतिहास?
बाबा लक्कड़शाह की बात करें तो वास्तविक नाम सैयद शाह हुसैन है। इन्हें लक्कड़ फकीर के नाम से भी जाना जाता है। उनको लेकर सिखीवीकी नामक ग्रंथ में कहा गया है कि यहां बाबा की कब्र है। कब्र के सिर की तरफ संत के मृत्यु की तारीख 1010 हिजरी अर्थात 1610 ईस्वी लिखी है। इससे पता चलता है कि यह संत सिख के दसवें गुरु गोविंद सिंह के समय में जीवित रहे।
इस मजार के पास ही गुरुद्वारा है। इसे गुरुमल टेकरी कहा जाता है। यहां के पुजारी की एक कहावत भी है कि एक मुस्लिम संत फूस की झोपड़ी में गहन ध्यान में थे। वह कभी कभी प्रार्थना करते थे।
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