विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाया है कि उसके एक तुगलकी फरमान ने उच्च शिक्षा हासिल कर रहे लाखों छात्रों का भविष्य अंधकार में धकेल दिया है। उन्होंने कहा कि अगर आदेश वापस नहीं लिया गया तो आंदोलन तेज होगा।

गुप्ता ने कहा कि सरकार ने गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से जुड़े 104 कॉलेजों में चल रहे एमबीए, एमसीए, एलएलबी और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की फीस बीच सत्र में अचानक 25 फीसद से ज्यादा बढ़ा दी है। अब तक छात्रों को 67,500 रुपए से लेकर 81 लाख 876 रुपए कुल फीस जमा करनी होती थी, जिसे बढ़ाकर 1.20 लाख रुपए कर दिया गया है।

बढ़ी हुई फीस जमा नहीं कर पाने के कारण हजारों गरीब बच्चे पढ़ाई बीच में ही छोड़ने को मजबूर हो गए हैं। विश्वविद्यालय से जुड़े कुल 104 कॉलेजों में औसतन प्रति कॉलेज एक हजार छात्रों की गणना की जाए तो कुल 1.04 लाख छात्र शिक्षा हासिल कर रहे हैं। अगर प्रत्येक छात्र बढ़ी हुई फीस के हिसाब से औसतन 60 हजार रुपए जमा करता है तो कुल छात्रों को 22 मार्च 2016 तक 6.24 अरब रुपए जमा करने होंगे। दिल्ली सरकार के उच्च शिक्षा विभाग के निदेशक शिव कुमार के पत्र संख्या एफ. नं. डीएचई 4 (68) एसएफआरसी/14-15/9728 दिनांक 19.02.2016 में यह अधिसूचित किया गया है कि उपरोक्त पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने वाले सभी छात्रों को बढ़ी हुई फीस देनी होगी। बढ़ी हुई फीस साल 2013-2014, 2014-2015, 2015-2016, 2016-2017 तक देनी होगी।

प्रत्येक छात्र को 67,500 से लेकर 81,876 रुपए तक की बढ़ी फीस 22 मार्च 2016 तक डिमांड ड्राफ्ट/बैंकर्स चेक के जरिए कॉलेजों में जमा करना अनिवार्य है। जो छात्र ऐसा नहीं करेंगे उन्हें 22 मार्च 2016 के बाद 50 रुपया प्रतिदिन के हिसाब से (जिसमें रविवार और छुट्टियां भी शामिल हैं) जुर्माना भरना होगा।

गुप्ता ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि वे बढ़ी हुई फीस का फरमान तुरंत रद्द करें। अगर फीस जमा करने की कानूनी अनिवार्यता हो तो सभी छात्रों की फीस दिल्ली सरकार अपने मद से जमा करे और छात्रों का जीवन बर्बाद न करे। उन्होंने कहा कि जो पैसा दिल्ली सरकार जनता को गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर खर्च कर रही है, वही पैसा छात्रों की फीस जमा करने और उनका जीवन बचाने में इस्तेमाल हो।

गुप्ता ने बताया कि दिल्ली सरकार ने बढ़ी हुई फीस के लिए राज्य फीस विनियामक आयोग को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन यह नहीं बताया कि फीस की समीक्षा करने का आदेश उसने ही आयोग को दिया था। सरकार अगर छात्रों की शुभचिंतक होती तो वह आयोग के आदेश के अनुसार बढ़ी हुई फीस खुद कॉलेजों में जमा कर देती, लेकिन इस जनविरोधी सरकार ने ऐसा नहीं किया।