भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी शनिवार को नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद भाजपा की उत्तर प्रदेश इकाई के नए अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। किसी अन्य उम्मीदवार के न होने से उनका निर्विरोध चुना जाना लगभग सुनिश्चित हो चुका है। रविवार को इसकी औपचारिक घोषणा होगी। चौधरी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ नेता चौधरी भूपेंद्र सिंह का स्थान लेंगे। पार्टी सूत्रों ने बताया कि नामांकन प्रक्रिया का सुचारू रूप से संपन्न होना प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व में सहमति को दर्शाती है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पंकज चौधरी के नाम का प्रस्ताव रखा, जबकि उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक ने नामांकन का समर्थन किया, जो राज्य के शीर्ष नेतृत्व के मजबूत समर्थन को दर्शाता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, सुरेश खन्ना, स्वतंत्र देव सिंह, सूर्य प्रताप शाही और बेबी रानी मौर्य सहित कई वरिष्ठ पार्टी नेताओं ने भी उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया। भाजपा के नए राज्य अध्यक्ष के नाम की आधिकारिक घोषणा रविवार को पार्टी के केंद्रीय चुनाव अधिकारी और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल द्वारा की जाएगी।
पंकज चौधरी की पदोन्नति महत्वपूर्ण क्यों है?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, आगामी पंचायत चुनावों और 2027 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर चौधरी का प्रदेश अध्यक्ष के रूप में चयन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, संगठनात्मक शक्ति, क्षेत्रीय प्रभाव और जातिगत समीकरण इस तरह की नियुक्तियों में अहम भूमिका निभाते हैं।
चौधरी महाराजगंज संसदीय क्षेत्र से सात बार सांसद रह चुके हैं। कुर्मी समुदाय से संबंध रखने वाले चौधरी, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के अंतर्गत आता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के करीबी माने जाते हैं।
उत्तर प्रदेश में ओबीसी मतदाताओं के बीच कुर्मी समुदाय का काफी प्रभाव है। हाल के चुनावों में, जिनमें 2024 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव शामिल हैं, समुदाय के कुछ वर्ग समाजवादी पार्टी की ओर आकर्षित होते देखे गए, जिससे भाजपा के नेतृत्व का चुनाव राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो गया है। भाजपा ने इससे पहले तीन बार कुर्मी समुदाय के नेताओं को उत्तर प्रदेश इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया है- पूर्व सांसद विनय कटियार, पूर्व मंत्री ओम प्रकाश सिंह और स्वतंत्र देव सिंह।
लोकसभा चुनाव 2024 की बात करें तो इस समुदाय के वोटर सपा की तरफ चले गए थे। जिससे बीजेपी के लिए इस समुदाय से उम्मीदवार लाना जरूरी हो गया था, क्योंकि यूपी में ओबीसी समुदाय में यादवों के बाद दूसरे नंबर में कुर्मी मतदाता है। इसी कुर्मी मतदाता के दम पर समाजवादी पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया है।
उत्तर प्रदेश में ‘इंडिया’ गठबंधन ने लोकसभा चुनाव के नतीजों में सबको चौंका दिया था। इस गठबंधन ने अगड़ी जातियों को छोड़कर सभी प्रमुख सामाजिक वर्गों में गहरी पैठ बनाई थी। यूपी में भारतीय जनता पार्टी ने 75 सीटों पर चुनाव लड़ा था और पांच सीटों पर एनडीए के घटक दलों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। बीजेपी 75 में से केवल 33 सीटें ही जीत पाई और उसकी सहयोगी पार्टियां राष्ट्रीय लोक दल 2 और अपना दल (सोनेवाल) केवल एक सीट जीत पाई। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की अगुआई वाले ‘इंडिया’ गठबंधन ने 43 सीटें जीतीं।
सपा ने लोकसभा चुनाव में 62 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसमें से उसे 37 सीटों पर जीत मिली है। इस जीत के साथ ही सपा संसद में बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। सपा की इस जीत में सबसे बड़ा योगदान ओबीसी मतदाताओं का रहा है। सपा के 37 सांसदों में से 20 ओबीसी के हैं। इसमें भी सबसे बड़ी संख्या कुर्मी जाति के लोगों की है। आइए देखते हैं कि सपा ने कैसे किया है यह कमाल।
2024 के लोकसभा चुनाव में सपा के सांसदों का जातीय गणित
लोकसभा चुनाव 2024 में सपा के जो 37 सांसद जीते हैं, उनमें ओबीसी के 20, दलित समाज के आठ और चार मुसलमान हैं। वहीं सवर्ण जातियों में एक सांसद ब्राह्मण, एक वैश्य और एक भूमिहार है। इसके अलावा दो राजपूत सांसद सपा के टिकट पर चुने गए। इस चुनाव में बड़ा प्रयोग करते हुए सपा ने दो सामान्य सीटों अयोध्या और मेरठ में दलित उम्मीदवार उतार दिए थे। सपा का यह प्रयोग सफल रहा। अयोध्या में उसके उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने बीजेपी के लल्लू सिंह को हरा दिया। वहीं मेरठ में सपा की दलित उम्मीदवार सुनीता वर्मा केवल 10 हजार वोटों से बीजेपी के अरुण गोविल से हार गईं।
लोकसभा चुनाव 2024 में सपा ने बीजेपी को कैसे दी मात
लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी ने 27 ओबीसी को टिकट दिए थे। इनमें सबसे अधिक 10 टिकट कुर्मी जाति के लोगों को दिए गए। उत्तर प्रदेश में कुर्मी यादवों के बाद दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जाति है।
साल 2014 और 2019 के चुनाव में बीजेपी को मिली सफलता में कुर्मी जाति का योगदान बहुत अधिक था। इसलिए इस बार सपा ने बीजेपी को उसी के हथियार से मात दी। सपा ने ऐसी कुर्मी बहुल सीटों की पहचान की, जहां बीजेपी ने गैर ओबीसी उम्मीदवार खड़ा किए थे। इनमें से प्रमुख थी लखीमपुर खीरी और बस्ती की सीट। खीरी को कुर्मी बहुल सीट माना जाता है, लेकिन बीजेपी पिछले दो चुनाव से वहां ब्राह्मण समाज के अजय कुमार मिश्र टेनी को टिकट दे रही थी और वो जीत रहे थे। किसान आंदोलन के दौरान हुए हत्याकांड को लेकर लोगों में टेनी पर गुस्सा था। इस बार सपा ने वहां से कु्र्मी जाति के उत्कर्ष वर्मा को टिकट दिया। उत्कर्ष ने अजय को 34 हजार से अधिक वोटों से मात दे दी। वहीं बस्ती में बीजेपी के हरीश द्विवेदी पिछले दो चुनाव से जीत रहे थे। वहां सपा ने एक बार फिर राम प्रसाद चौधरी पर भरोसा जताया। उन्होंने पार्टी के भरोसे पर खरा उतरते हुए जीत दर्ज की। वह भी तब जब बसपा ने भी वहां से एक कुर्मी उम्मीदवार उतारा था।
लोकसभा कौन-कौन पहुंचा?
इन दोनों के अलावा कुर्मी जाति के बांदा से कृष्णा देवी पटेल, फतेहपुर से नरेश उत्तम पटेल, प्रतापगढ़ से एसपी सिंह पटेल, अंबेडकर नगर से लालजी वर्मा और श्रावस्ती से राम शिरोमणि वर्मा सांसद चुने गए हैं। सपा ने बहुत सोच-समझ कर बीजेपी के ब्राह्मण उम्मीदवारों के खिलाफ कुर्मी उम्मीदवार खड़े किए। ऐसा इसलिए कि प्रदेश में कुर्मी और ब्राह्मण को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है। सपा ने बांदा को छोड़कर किसी भी ऐसी सीट पर कुर्मी प्रत्याशी नहीं दिए, जिस पर बीजेपी या उसके सहयोगी अपना दल का उम्मीदवार कुर्मी हो। ब्राह्मण बनाम कुर्मी की अखिलेश की यह रणनीति कामयाब रही है। बीजेपी इसका काट नहीं खोज पाई।
यह भी पढ़ें- ‘कोई पद छोटा या बड़ा नहीं होता’, नामांकन दाखिल करने के बाद पंकज चौधरी का पहला रिएक्शन
वहीं अगर सपा-कांग्रेस के उम्मीदवारों की बात करें तो उनमें 33ओबीसी ,19 दलित और छह मुस्लिम शामिल हैं। कांग्रेस के छह सासंदों की बात करें तो उसमें राकेश राठौड़-ओबीसी ,तनुज पुनिया-दलित, इमरान मसूद-मुसलमान, राहुल गांधी-ब्राह्मण, उज्जवल रेवती रमन सिंह-भूमिहार हैं और केएल शर्मा- ब्राह्मण हैं।
कुर्मी जाति का जनाधार
यूपी में 40 फीसदी के करीब ओबीसी वोट में कुर्मी समाज 48 से 50 विधानसभा और 9 से 10 लोकसभा सीटों पर प्रभावशाली भूमिका रखता है। कुर्मी समुदाय का जनाधार यूपी के 24 से ज्यादा जिलों में है। बुंदेलखंड, रुहेलखंड से लेकर बुंदेलखंड तक इनकी सियासी समर्थन पाने की होड़ भाजपा के साथ सपा और बसपा में भी है।
16 जिलों में 11-12 फीसदी आबादी
पूर्वांचल में महाराजगंज, संतकबीर नगर, कुशीनगर, सोनभद्र और मिर्जापुर जिले में कुर्मी वोट हैं। अवध में उन्नाव, कानपुर, फतेहपुर, लखनऊ में भी इनकी अच्छी खासी तादाद है। कौशांबी, प्रयागराज, सीतापुर, बस्ती, अकबरपुर, एटा, बरेली से लेकर लखीमपुर खीरी जिलों में भी ये फैले हुए हैं।
यह भी पढ़ें- यूपी में सरकार और संगठन में पूर्वांचल का दबदबा, अखिलेश यादव के ‘PDA दांव’ को फेल करेगी बीजेपी?
