आंध्र प्रदेश में काम करने वाले बिहार के सैकड़ों प्रवासी मजदूरों के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में घर लौटने से ज्यादा अहम उनके लिए यहां अपनी रोजमर्रा की जिंदगी चलाना है। दो सौ तैंतालीस-सदस्यीय बिहार विधानसभा के लिए पहले चरण का मतदान गुरुवार को हुआ, जबकि अगला चरण 11 नवंबर को निर्धारित है। ये प्रवासी मजदूर होटल, पोल्ट्री दुकानों, निर्माण स्थलों आदि पर काम करते हैं। वे अपने गांव में मिलने वाली कमाई से थोड़ी ज्यादा आमदनी तो कमा लेते हैं, लेकिन उनका मन तब भी उन गांवों से जुड़ा रहता है, जिन्हें वे छोड़ आए हैं।

पटना के मूल निवासी हरेशराम यादव गुंटूर में रहते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में जबरदस्त बदलाव आया है। उन्होंने उल्लेख किया कि 1990 में राज्य के युवा पलायन करते थे, लेकिन अब वहां नौकरी के अवसर बढ़े हैं। नालंदा विश्वविद्यालय का विकास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मंजूर किए गए धन से किया जा रहा है। शैक्षिक संस्थान बढ़े हैं और गांवों को मुफ्त बिजली मिल रही है।

चंद्र बाबू नायडू को लेकर लोगों ने कही बड़ी बात

सरकार की ‘हर घर जल’ योजना के तहत हर घर में साफ पानी मिल रहा है, जो स्पष्ट बदलाव दिखाता है। उन्होंने जोर दिया कि नीतीश कुमार की सरकार बरकरार रहनी चाहिए। यादव ने दावा किया कि बिहार चुनाव का राष्ट्रीय महत्त्व है। उनका मानना है कि अगर कुमार हारते हैं तो ‘इंडिया’ गठबंधन मजबूत हो सकता है और नायडू को अपने पाले में खींचने की कोशिश कर सकता है।

विपक्ष नायडू को गठबंधन में शामिल होने के लिए एक प्रमुख राष्ट्रीय भूमिका की पेशकश कर सकता है और अगर ऐसा हुआ तो केंद्र सरकार गिर सकती है, जो देश और राज्य के लिए अच्छा नहीं है। विजयवाड़ा में बसे पटना के विनोद गुप्ता ने कहा कि बिहार के परिवहन और सुरक्षा में काफी सुधार हुआ है। उन्होंने याद किया कि पहले यात्रा असुरक्षित थी, लेकिन अब महिलाएं रात में भी स्वतंत्र रूप से घूमती हैं।

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मधुबनी जिले के मोहम्मद नौसाद (35) ने आगामी चुनावों में युवा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव का समर्थन किया। नौसाद कोविड-19 महामारी में अपनी दुकान बंद होने के बाद पलायन कर गए थे। नौसाद ने बताया कि पूर्णबंदी ने मेरा धंधा बर्बाद कर दिया। नौसाद कम से कम उन 100 प्रवासियों में से हैं, जो विजयवाड़ा के होटलों में 700 रुपए प्रतिदिन कमाकर जीवनयापन कर रहे हैं। घर पर उन्हें उसी काम के लिए 400 रुपए मिलते थे, जो उनके लिए पर्याप्त नहीं था। अगर यादव जीतते हैं, तो शायद कुछ लोगों को उनके गृह राज्य में ही नौकरियां मिल जाएंगी। उनमें से ज्यादातर के लिए आंध्र प्रदेश की जिंदगी दूरी और इज्जत के बीच का एक समझौता है। यहां मजदूरी तो बेहतर मिलती है, लेकिन कार्यदिवस लंबे और थकाने वाले होते हैं।

कमाई में मामूली सा आता है अंतर

छह साल से विजयवाड़ा में काम कर रहे मोहम्मद इरशाद (30) ने कहा कि उन्हें बेरोजगारी और भ्रष्टाचार ने बिहार छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने दावा किया कि हमने नीतीश कुमार को वोट दिया, लेकिन उन्होंने गरीबों की परवाह नहीं की। यहां तक कि स्रातक भी बेरोजगार हैं।

इरशाद ने कहा कि वह प्रतिदिन 500 से 600 रुपए कमाते हैं, लेकिन किराए और भोजन पर लगभग आधा खर्च हो जाता है। अगर उन्हें बिहार में भी 600 रुपए प्रतिदिन मिलें तो वह वहीं रहेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि (बिहार में) सरकारी नौकरी पाने के लिए रिश्वत भी देनी पड़ती है, जो वह नहीं दे सकते।

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केंद्र सरकार के एक कर्मचारी ने दावा किया कि कुमार के शासन ने जंगल राज समाप्त किया और सुरक्षा में सुधार हुआ, लेकिन बेरोजगारी की समस्या अब भी बनी हुई है। पहले हत्याएं आम थीं। अब कानून-व्यवस्था बेहतर है, लेकिन उद्योग-धंधे खत्म हो चुके हैं। पिछले पंद्रह वर्षों में इस दक्षिणी राज्य में आंतरिक प्रवासन तेजी से बढ़ा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और अन्य राज्यों से बड़े पैमाने पर मजदूर यहां काम करने आते हैं।