ऋचा रितेश
बात 2004 की है जब चन्द्रकेशवर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू इन्साफ के लिए सीवान के तत्कालीन पुलिस कप्तान के आवास पर गए थे। ”हुजूर मेरे दो बेटों को मोहम्मद शहाबुद्दीन ने तेजाब से नहलाकर मार दिया। मुझे भी धमका रहा है तथा मेरे तीसरे बेटे राजीव रंजन को भी खोज रहा है। कुछ कीजिए।” कप्तान की प्रतिक्रिया बकौल चंदा बाबू, मेरी फरियाद सुनते ही एस पी साहब नाराज होकर चिल्लाए, ”मैं खुद उस आदमी से परेशान हूं, भगवान से प्राथना कर रहा हूं कि जल्दी मेरा ट्रान्सफर यहां से करा दो, तो तम्हारे लिए क्या कर सकता हूं। जितना जल्दी हो सके सीवान शहर से उड़ान थाम लो और बाकी बची लाइफ सुख-चैन से बिताओ।” ये वाकया उस समय का है, जब शहाबुद्दीन ’वैधानिक’ रूप से जेल में था। जब पुलिस कप्तान का ये हाल था तो आम जनता के मन में शहाबुद्दीन का कैसा खौफ रहा है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। बाद के दौर में इस डर की बदौलत ही शहाबुद्दीन डेढ दशक तक सीवान जिला में ठाठ से बिना डर भय के समानान्तर सरकार चलाता रहा। लेकिन नवम्बर 2005 में नीतीश कुमार की सरकार आने के बाद उस खूंखार अपराधी पर ईमानदारी से कार्यवाई शुरु की गई। वैसे 2004 के अंत में ही जब राष्ट्रपति शासन लागू हुआ तो उसे अस्पताल से हटाकर सीवान जेल में शिफ्ट कर दिया गया था। उसके बाहुबल के कई किस्से बिहार में खौफ फैलाते रहे हैं। एक नजर उसकी दबंगई और रसूख को जाहिर करने वाली घटनाओं पर:
डर से या प्यार से, शहाबुद्दीन को सभी लोग ’साहब’ कहकर सम्बोधित करते हैं। उसके करीबी मित्र बताते हैं कि बचपन से ही शहाबुद्दीन की इच्छा क्राइम की दुनिया का बेताज बादशाह बनने की रही है। सो स्कूलिंग के दरम्यान ही साइकिल चोरी जैसे छोटी-मोटी घटनाओं में शामिल होने लगा। 1986 में उसके खिलाफ पहला अपराधिक केस रजिस्टर हुआ था। कुछ दिनों के बाद वह जमशेदपुर चला गया और उस समय के शातिर अपराधी साहब सिंह का शूटर बन गया। फरवरी 1989 एक साथ 3 दबंग लोगों की हत्या कर वहां से फरार होकर सीवान आ गया। जमशेदपुर अदालत में आज भी उसके खिलाफ वो मुकदमा चल रहा है। तब सीवान की धरती पर नक्सलियों का बोलबाला था। पीड़ित किसानों को एक तारनहार की तहेदिल से ख्वाहिश थी। मोहम्मद शहाबुद्दीन ने कइ नक्सली नेताओं को मौत के घाट उतारकर यह काम पूरा किया। कुछ ही महीनों में ’साहब’ किसानों का हीरो बन गया और 1990 का विधानसभा का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में जीरादेइ क्षेत्र से भारी मतों से जीत गया। शाहबुद्वीन स्वयं गर्व से बताता है कि उस समय उसकी उम्र मात्र साढ़े तेइस वर्ष थी। विरोधियों ने उम्र के सवाल पर केस भी किया था लेकिन जजमेंट आते-आते दूसरा चुनाव और तबतक ’साहब’ भी चुनावी एडल्ट हो गए।

तबतक लालू प्रसाद यादव कई कारणों से बदनाम बिहार के सिंहासन पर विराजमान होकर ’राजा’ बन गए थे। बिना समय गंवाए ’साहब’ राजा की शरण में चले गए। राजा के परोक्ष व अपरोक्ष आर्शीवाद से ’साहब’ का प्रताप दिन दुनी और रात चौगुनी बढ़ने लगा। 15 वर्षों तक चली लालू व राबड़ी देबी सरकार में सिवान में सैकड़ों लोगों की हत्याएं हुईं जिसमें जेएनयू के अध्यक्ष चन्द्रशेखर प्रसाद, भाजपा के कई नेता, 3 पुलिस दारोगा, सीपीआइ लिबरेशन के कई नेता तथा चंदा बाबू के दो बेटे प्रमुख थे। दर्जनों पुलिस अधिकारियों जिसमें एक एसपी भी थे, पर कातिलाना हमला हुआ। राज्य में कई हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों का अपहरण हुआ। हत्या, अपहरण तथा हमलों में ’साहब’ आरोपित हुए। लेकिन राजा की कृपा से उनका बाल भी बांका न हुआ।
16 मार्च 2001 को शाहबुद्वीन ने एक डीएसपी की बेरहमी से पिटाई की। इस घटना ने सीवान पुलिस प्रशासन को बागी बना दिया। अपमान का बदला लेने के लिए सैकड़ों पुलिसकर्मी तत्कालीन एसपी केएस मीना के नेतृत्व में शाहबुददीन के प्रतापपुर गांव को घेर लिया। दोनो तरफ से हजारों राउंड गोलियां चलीं जिसमें ’साहब’ के 8 गुर्गों के साथ-साथ 2 पुलिसकर्मी भी हलाक हुए। परन्तु शहाबुद्दीन सही सलामत भागने में सफल रहा। खबर के मुताबिक वो बुर्का ओढ़कर गन्ना के खेत में छिप गया था। मजेदार बात ये है कि बिहार सरकार ने प्रतापपुर कांड पर जांच कमिटी बनाइ जिसने शहाबुद्दीन को बेकसूर तथा पुलिस को दोषी माना। जबकि पुलिस ने उसके घर से घातक हथियार, नाइट विजन चश्मा, सेना द्वारा इस्तमाल में लाये जाने वाले हथियार तथा विदेशी मुद्रा बरामद की थी।
करीब दो साल बाद पुलिस ने मोहम्मद शहाबुद्दीन को भाजपा के एक सांसद के दिल्ली स्थित आवास से गिरफ्तार किया। इन्टेलिजेन्स ब्यूरो की रपट है कि शहाबुद्दीन का सीधा सम्बन्ध अन्डरवर्ड के कई कुख्यात गिरोहों से है। कश्मीर से आनेवाले सेब के ट्रकों में एके-47 असॉल्ट राइफल छिपाकर बिहार में लाने की शुरुआत ’साहब’ ने ही की थी। बिहार के पूर्व डीजीपी, डी पी ओझा बताते हैं, ”ऐसा शातिर अपराधी मैने अपनी जिन्दगी में नहीं देखा। एक पत्रकार ने उसके खिलाफ खबर छापने की साहस किया तो उसने अपने शार्प शूटर से पटना के पाटलिपुत्र इलाके मे दिनदहाड़े ही कत्ल करवा दिया। पटना से प्रकाशित एक हिन्दी दैनिक के नामी-गिरामी कलमजीवी को उसने जान से मारने की सुपारी दी थी जिन्हें मैंने सेक्यूरिटी सुविधा प्रदान की थी। दिल्ली से प्रकाशित तहलका मैगजिन के संपादक तरुण तेजपाल को मारने की सुपारी भी शहाबुद्दीन ने ली थी ताकि तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को अस्त-व्यस्त किया जा सके।”
मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ कुल 75 अपराधिक मुकदमे राज्य के विभिन्न पुलिस थानो में दर्ज हैं। 20 मुकदमों में उसकी रिहाई हो गई है जबकि 10 में सजा। अभी 45 मुकदमों की सुनवाइ उसके खिलाफ अदालतों में लम्बित है। चंदा बाबू के दो बेटों की निर्मम हत्या मे शहाबुद्दीन को सिवान कोर्ट से 2015 में आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है। सजा के खिलाफ शहाबुददीन ने पटना उच्च न्यायालय में अपील दायर की है। जिसकी सुनवाई अभी होनी है। इसी बीच सितम्बर 7 को हाईकार्ट से इसे जमानत मिल गई जो राज्य में राजनैतिक भूचाल का कारण बना। हालांकि जमानत के 23 दिन बाद 30 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी बेल रद की दी। दोबारा जेल जाने से पहले शहाबुद्दीन ने पत्रकारों से कहा था, ”मेरा बेल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयास से टूटर है और हमारे समर्थक अगले चुनाव में उनको उनकी औकात बता देंगे।”
49 वर्षीय शहाबुद्दीन ने 1990 तथा 1995 में सीवान जिले की जीरादेई विधान सभा का प्रतिनिधित्व किया था। उसके बाद क्रमश: 1996, 1998, 1999 तथा 2004 में लगातार सीवान लोकसभा क्षेत्र से राजद का सांसद रहा। मुन्ना चौधरी मडर केस में 10 साल की सजा के बाद चुनाव से वंचित हो गया। 2009 तथा 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उसने अपनी बेगम हीना शहाब को राजद का उम्मीदवार बनवाया जो भाजपा के ओमप्रकाश यादव से बुरी तरह हार गई। शाहबुददीन की इस्लाम धर्म में अगाध निष्ठा है। एक संवाददाता सम्मेलन में उसने बताया, ”मैं किसी भी हालत में नमाज अदायगी नहीं छोड़ सकता। दारू को मैं हराम समझता हूं। भुने हुए बकरे का गोश्त मेरा सबसे प्रिय भोजन है।”
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जेल प्रवास के क्रम में ही उसने आश्चर्यजनक ढंग से पहले पोस्ट ग्रेजुएट और फिर पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली। शहाबुद्दीन का दावा है कि वह एक इंटेलेक्चुअल हैं जो केवल किताबें से प्यार करता है। उसके मुताबिक, ”जेल में रहते हुए मैं 500 किताबों से रूबरू हुआ हूं तथा दीनदयाल उपाध्याय से लेकर मनमोहन सिंह तक की लिखी किताबों को मैने पढ़ा है। मेरे नेता लालू प्रसाद यादव हैं लेकिन मैं अटल बिहारी वाजपेयी को भी एक बेहतरीन राजनीतिज्ञ मानता हूं।”
6 फीट कद वाला शहाबुद्दीन कीमती कपड़े पहनने का शौकीन है। जींस व टी शर्ट उसकी पसंदीदा ड्रेस है। शहाबुद्दीन का एक बेटा और दो बेटियां हैं। बेटा लंदन में वकालत की पढ़ाई कर रहा है, जबकि बड़ी बेटी एमबीबीएस कर रही है। दूसरी पुत्री भी कालेज में है।शहाबुद्दीन के पिता पहले व्यवहार न्यायालय में वेंडर थे, अब पुश्तैनी घर में रहते हैं। शहाबुद्दीन के दोनों बड़े भाई छोटा-मोटा बिजनेस करते हैं।