नीतीश कुमार की जदयू और लालू यादव की राजद के बीच नई जुगलबंदी से 90 के दशक की मंडल राजनीति फिर से सिर उठाने लगी है। तब तत्कालीन पीएम वीपी सिंह ने उसे शुरू किया था। उनका मकसद बीजेपी की रथयात्रा के प्रभाव को खत्म या फिर कम करना था। माना जा रहा है कि नीतीश और लालू की जुगलबंदी फिर से मंडल की राजनीति को धार दे सकती है।

जाहिर है कि नए गठजोड़ में नीतीश और तेजस्वी के जरिए लालू OBC वोटों को अपनी तरफ खींचने के साथ दलित वोटों पर भी निशाना साधेंगे। कांग्रेस भी उनके साथ है। लिहाजा वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिशें तेज होती दिखेंगी। उधर बीजेपी के लिए ये खतरे की घंटी से कम नहीं है। हालांकि भगवा दल अपर कास्ट के साथ दलित और ओबीसी वोटरों के निचले तबके में सेंध लगाने की कोशिश करेगा। पीएम मोदी पसमांदा मुस्लिमों को लेकर पहले ही अपनी राय को जगजाहिर कर चुके हैं।

नीतीश और तेजस्वी के साथ आकर कांग्रेस ने भी देश के दूसरे सूबों को एक संदेश देने की कोशिश की है। बीजेपी के खिलाफ मोर्चा बनाने का काम तेज हो सकता है। बिहार का प्रयोग दूसरे राज्यों में बीजेपी को परेशानी में डाल सकता है। 2020 के चुनाव में नीतीश के बीजेपी के साथ सरकार बनाने का जनादेश मिला था। लेकिन उन्होंने RCP सिंह के तौर पर बीजेपी की साजिश देखी तो वो सचेत हो गए और चरखा दांव से बीजेपी को चित कर दिया।

2024 के चुनाव के लिए भी बिहार की राजनीति में संदेश छिपा है। हालांकि ये कहना अभी मुश्किल है कि विपक्षी मोर्चे के लिए नीतीश के नाम पर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेता मांनेंगे कि नहीं। लेकिन इतना जरूरत है कि विपक्ष की आवाज को धार मिलेगी। वो अब बीजेपी पर ज्यादा हमलावर होता दिखेगा।

हालांकि नीतीश की लोकप्रियता में बीते पांच-सात सालों में गिरावट होती दिख रही है। जिस छवि के लिए वो जाने जाते हैं वो टूटी है। लगातार पाला बदलने से नैतिक छवि पर चोट लगी है। लेकिन बावजूद इसके वो फिर से उठ खड़े होने का माद्दा रखते हैं। वो नए गठजोड़ के जरिए फिर से मजबूत होने की कोशिश करेंगे।