बिहार की राजनीति पर जब-जब चर्चा होगी, तब-तब राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जिक्र जरूर होगा। बीते दो दशकों से बिहार की राजनीति नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। नीतीश कुमार ने साल 2005 में दूसरी बार राज्य का सीएम पद संभाला और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। नीतीश कुमार 2005 से ही विधानपरिषद के सदस्य है।

साल 2005 में जब नीतीश कुमार दूसरी बार राज्य के सीएम बने, उस समय वह नालंदा से सांसद थे। बिहार में उनके चेहरे पर कई चुनाव लड़े गए और उनके गठबंधन ने चुनाव में जीत भी दर्ज की लेकिन नीतीश कुमार खुद 21 साल से कोई भी चुनाव नहीं लड़े। वह साल 2004 में लोकसभा चुनाव लड़े थे और एक लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे।

तीसरे प्रयास में मिली पहली जीत

जेपी आंदोलन से निकलने नीतीश कुमार को पहले दो विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। वह साल 1977 और 1980 में हरनौत विधानसभा सीट से चुनाव हारे लेकिन इसके बाद 1985 में लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़कर उन्होंने अपने जीवन की पहली जीत हासिल की। इसके बाद वह साल 1995 में हरनौत से विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहे।

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नीतीश कुमार कुल छह बार लोकसभा सांसद चुने गए हैं। वह पहली बार साल 1989 में और फिर 1991, 1996, 1998, 1999 और साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने में सफल रहे। नीतीश कुमार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में कृषि और रेल सहित कई अहम महत्वपूर्ण मंंत्रालय संभाल चुके हैं। 

आइए आपको बताते हैं नीतीश कुमार से जुड़ी कुछ खास बातें

पहली बार 1996 में मिलाया हाथ: नीतीश कुमार ने साल 1996 में पहली बार बीजेपी से हाथ मिलाया। उन्होंने साल 1994 में जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया। राजनीतिक चतुराई का परिचय देते हुए नीतीश कुमार ने साल 1996 में बीजेपी से गठबंधन किया। 30 अक्टूबर 2003 को समता पार्टी का जनता दल में विलय हो गया। इसी पार्टी को आज जदयू के रूप में पहचाना जाता है।

नैतिक आधार पर रेल मंत्री पद से इस्तीफा दिया: नीतीश कुमार साल 1999 में वाजपेयी सरकार में मंत्री थे। उन्होंने अगस्त 1999 में पश्चिम बंगाल में दो ट्रेनों के हादसे के टकराने के बाद नैतिक आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस हादसे में 285 लोग मारे गए। नीतीश कुमार के इस कार्यकाल को  इंटरनेट टिकट बुकिंग सुविधा और तत्काल प्रणाली जैसे सुधारों के लिए उनकी याद किया जाता है।

नरेंद्र मोदी घोषित हुए पीएम उम्मीदवार तो तोड़ा एनडीए से नाता: साल 2014 लोकसभा चुनाव से पहले जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद प्रत्याशी घोषित किया तो नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ लिया। नीतीश ने यह कहते हुए एनडीए  से किनारा कर लिया कि इसके नेता की ‘स्वच्छ और धर्मनिरपेक्ष छवि’ होनी चाहिए।

2014 में जदयू के खराब प्रदर्शन के बाद दिया इस्तीफा: लोकसभा चुनाव 2014 में जदयू सिर्फ दो सीटें हासिल कर सकी। इसकी जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और फिर जदयू ने जीतन राम मांंझी को राज्य का सीएम बनाया। हालांंकि कुछ ही महीनों बाद मांंझी से इस्तीफा देने के लिए कहा गया लेकिन जब उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद जीतन राम मांझी को पार्टी से निकालने के बाद नीतीश दोबारा बिहार के सीएम बने।

क्यों दोनों गठबंधन चाहते हैं नीतीश कुमार  का साथ?

नीतीश कुमार राज्य में दोनों ही बड़े गठबंधनों- एनडीए और महागठबंधन का हिस्सा रह चुके हैं। अपने अविश्वसनीय ट्रैक रिकॉर्ड के बावजूद, नीतीश जिस भी गठबंधन में शामिल होना चाहते हैं, उनका स्वागत जरूर होता है। राजद अपने वफादार मतदाताओं के बड़े सामाजिक आधार और लालू यादव की स्थायी लोकप्रियता के बावजूद, सुशासन और विकास के मामले में नीतीश जैसी साख नहीं रखती। राष्ट्रीय स्तर पर अपनी व्यापक लोकप्रियता के बावजूद भाजपा के पास बिहार में एक भी ऐसा कद्दावर नेता नहीं है, जो अति पिछड़ी जातियों पर उनके जितनी पकड़ रखता हो।

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