राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विक्रमशिला महाविहार को सिर्फ म्यूजियम तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता। नालंदा की तरह इसको भी विकसित कर उच्च से उच्च दर्जे का विश्वविद्यालय बनाने की जरूरत है। उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री से बात करने की बात कही। इस दौरान राष्ट्रपति ने मंच से हाथ हिलाकर सभी का अभिवादन स्वीकार किया। भारी तादाद में वे भीड़ को देखकर गदगद हो गए। अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इतने सारे लोग मेरे स्वागत में आए हैं और मुझे भाषण देना है। उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि मुझे इतनी हिंदी तो नहीं आती, लेकिन मैनें कोशिश की।

उन्होंने कहा कि 2015 लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भागलपुर में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना का ऐलान किया था। इसके लिए 500 करोड़ रुपए का आवंटन राज्य सरकार को दिया गया है। साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री से बात करने का भरोसा दिलाया।

मंच पर राज्यपाल रामनाथ कोविंद, केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी, बिहार के मंत्री राजीव रंजन, भागलपुर के सांसद शैलेश कुमार मौजूद थे। (Express Photo)

दरअसल, मंच पर मौजूद राज्यपाल रामनाथ कोविंद, केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी, बिहार के मंत्री राजीव रंजन, भागलपुर के सांसद शैलेश कुमार, गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे, पूर्व मंत्री शाहनवाज हुसैन, कहलगांव के विधायक सदानंद सिंह वगैरह सभी ने राष्ट्रपति से विक्रमशिला महाविहार के अतीत को लौटा देने की गुजारिश की। राष्ट्रपति ने भी इन सब की बातों को ध्यान से सुना। राष्ट्रपति ने कहा कि विक्रमशिला देखने की मेरी काफी दिनों से इच्छा थी। विदेश मंत्री रहते मैनें पाकिस्तान स्थित तक्षशिला देखी। नालंदा महाविहार भी देखा। लेकिन आज विक्रमशिला देखने का भी सपना पूरा हो गया।

राष्ट्रपति ने कहा, ‘एक समय था जब यहां देश-विदेश से लोग अध्ययन और अध्यापन करने के लिए यहां आते थे। राजा-महाराजाओं ने बड़े-बड़े विश्वविद्यालय की स्थापना की। यहां तीसरी शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक के लोगों का मार्ग दर्शन किया गया। पुरातत्व महकमा इसके उत्थान के लिए काफी काम कर रहा है।

इसके बाद वे वायुसेना के हेलीकॉप्टर से बौसी के गुरुधाम गए। वहां से उनका पुराना लगाव है। बौसी गुरुधाम की स्थापना 1943 में हुई थी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की माता राज लक्ष्मी मुखर्जी यहां की शिष्या थी। उन्होंने गुरु भूपेन्द्रनाथ सान्याल से दीक्षा ली थी। यही वजह है कि इनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी अक्सर यहां आते थे। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यहां तक लाने और आश्रम को ढूंढ निकालने के लिए सांसद निशिकांत दुबे को शुक्रिया कहा। इसके बाद वे दिल्ली के लिए रवाना हो गए।