भागलपुर सीट पर जीत का अंतर इस दफा काफी कम वोटों का रहा। कांग्रेस के अजित शर्मा को 65502 मत हासिल हुए। तो भाजपा के रोहित पांडे को 64389 वोट मिले। जीत 1113 मतों से हुई। यदि भाजपा के बागी विजय साह के मतों को ही देखेंं तो जीत भाजपा की साफ दिखती है। विजय साह को 3292 मत मिले हैंं।
इसके अलावे लोजपा उम्मीदवार राजेश वर्मा को 20523 वोट प्राप्त हुए हैंं। ये मत ज्यादातर व्यापारियों और उनके हैंं जो भाजपा के उम्मीदवार की वजह से नाराज थे। इसके अलावे कोरोना काल में गरीबों के लिए इनकी खोली झोली है।
ध्यान रहे कि गरीबों को काफी हद तक अपने बूते राशन-पानी, दवा बगैरह मदद इन्होंने पहुंचाई थी। उसी सेवा के बदले इनको यह मत मिले हैंं। राजेश वर्मा कहते हैंं हार जाने के बाद भी मेरी सेवा जारी रहेगी। वे नगर निगम के उपमहापौर भी हैंं।
वार्ड नंबर 38 के पार्षद भी हैंं। वार्ड के निवासी कन्हैया शर्मा कहते हैंं कि राजेश ने अपने पैसे खर्च कर शहर के 51 वार्ड में बोरिंग कराकर लोगों को पीने का पानी मुहैया कराया है। इससे लगता है कि इन मतों में हमदर्दी वोट भी शामिल है। इनके दावे में कितनी हकीकत है यह पड़ताल का विषय हो सकता है।
लेकिन भाजपा के हनुमान कहे जाने वाले ने तो भागलपुर में खुद की लंका जला दी। चिराग ने जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की बात कही थी। मगर भागलपुर भाजपा उम्मीदवार के सामने लोजपा प्रत्याशी होने से पराजय मिली। हालांकि वैश्य मतों का विरोध शांत करने के लिए भाजपा ने बनिया जाति के नेताओं की फौज उतारी थी।
उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी खुद आकर रोड शो कर गए थे। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास , सुरेश रूंगटा, भाजपा के एमएलसी राजेन्द्र गुप्ता, मंत्री रामनारायण मंडल आकर व्यापारियों की मान-मनाैैव्वल की। बैठक कर उनकी भड़ास सुनी और क्रोध को शांत किया। इसके अलावे वैश्य जाति के संतोष कुमार को कार्यकारी जिलाध्यक्ष बनाया। मगर सब बेअसर साबित हुआ।
और तो और झारखंड गोड्डा के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे भी आकर जमे। दरअसल पार्टी के सूत्र बताते हैंं कि पटना के एक भाजपा नेता ने व्राह्मण बिरादरी के कमजोर प्रत्याशी का चयन करवा कर केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के विरोध को चुप करा दिया। ये अपने बेटे अर्जित शारस्वत के लिए टिकट चाह रहे थे।
ब्राह्मण उम्मीदवार रोहित पांडे के चयन से अश्विनी चौबे को मजबूरी में शांत रहना पड़ा। भाजपा के सुरेंद्र पाठक कहते हैंं कि यदि अर्जित को टिकट मिलता तो नजारा कुछ और होता। अर्जित ने कोरोना महामारी के संकट में लोगों की बहुत मदद की थी। 25 हजार गरीबों की आंखों का मुफ्त ऑपरेशन करवाया। इसका लाभ मिलता। मगर पार्टी का निर्णय शिरोधार्य है।
रोहित की हार की एक वजह यह भी रही कि चौकड़ी से घिरे रहे। खर्च में भी कंजूसी की। चौकड़ी ने उन इलाकों में इन्हें जाने ही नहीं दिया जहां भाजपा के खर्रे वोट बैंक है। नए होने की वजह से इन्हें पहचान की समस्या से भी जूझना पड़ा।
द्वारकापुरी के रहने वाले सज्जन महेशका कहते हैंं कि हमारी कालोनी के बहुत से लोगों ने रोहित को देखा तक नहीं है। ऐसे में बहुतों ने मतदान ही नहीं किया। भागलपुर सीट पर सबसे कम वोट पड़े हैंं। सरकारी आंकड़ा 43-45 फीसदी का है।
अजित शर्मा की जीत का अंतर कम होने की भी वजह रही कि लोजपा उम्मीदवार राजेश वर्मा ने मुस्लिम वोटों का विभाजन किया है। नामंकन के बाद अजित शर्मा की तरह ये भी मस्जिद में सिर नवाजने गए थे। दूसरा कारण रालोसपा उम्मीदवार सैयद शाह अली सज्जाद आलम का चुनाव मैदान में टिक जाना।
इन्हें 2743 मत मिले हैंं। ये हाल तक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष थे। मगर चुनाव से पहले इन्हें हटा दिए जाने से ये नाराज हो गए। इनकी जगह परवेज जमाल को अध्यक्ष मनोनीत किया है। नाराज सज्जाद ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर रालोसपा का दामन थाम चुनाव मैदान में कूद गए। कुछ नहीं तो कांग्रेस उम्मीदवार की जीत अंतर तो कम जरूर कर दिया। यदि और थोड़ा दम लगाते तो नतीजा बदल भी सकता था।