Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने साफ तौर पर कहा कि अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों में अगर एनडीए सत्ता में लौटता है तो नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे। सम्राट चौधरी मुंगेर जिले के तारापुर से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से एनडीए के चुनावी मुद्दों से लेकर नीतीश के नेतृत्व, तेजस्वी यादव और जन सुराज के नेता प्रशांत किशोर के आरोपों तक, कई मुद्दों पर बातचीत की है।
क्या बिहार चुनाव के लिए एनडीए का कोई ब्लूप्रिंट है?
भारतीय जनता पार्टी जल्दी ही अपना घोषणा पत्र जारी कर सकती है। हम अगले पांच सालों के लिए अपने ब्लूप्रिंट पर सहयोगियों के साथ भी बातचीत कर रहे हैं। हमें विकास के अधूरे वादों को पूरा करना है। आखिरकार, 1965 से 2005 के बीच बिहार के विकास में रुकावटें तो आई ही थीं। हमें युवाओं और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए और ज्यादा काम करना होगा। हमारा इरादा अगले पांच सालों में 20 लाख करोड़ रुपये का निवेश हासिल करने का है। हमारे पास केवल 7282 एकड़ जमीन रिजर्व थी, लेकिन हाल ही में हमने लोगों से 14000 एकड़ जमीन खरीदी है। हम आने वाले सालों में अपने संभावित निवेशकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए 50000 एकड़ का लैंड बैंक बनाने का इरादा रखते हैं।
महागठबंधन ने अब तेजस्वी यादव को अपना सीएम चेहरा घोषित कर दिया है। एनडीए का सीएम चेहरा कौन होगा?
हमारे यहां कोई वैकेंसी नहीं है। नीतीश कुमार सीएम हैं और आगे भी बने रहेंगे। अक्टूबर 2005 के चुनावों में, जब हमारे नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इस विचार को हरी झंडी दी थी, तब बीजेपी ने ही सबसे पहले नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया था। नीतीश कुमार की विचारधारा भले ही अलग हो, लेकिन वे एनडीए के सभी सहयोगियों को स्वीकार्य रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है। इस चर्चा का विषय ही नहीं है।
विपक्ष का कहना है कि अगर एनडीए सत्ता में लौटती है तो बीजेपी नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी?
सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश 29 साल से बीजेपी के साथ हैं। लालू प्रसाद और नीतीश दोनों को सीएम बनाने में बीजेपी की अहम भूमिका रही है। लालू छह महीने में बदल गए (1990 में, जब बीजेपी ने लालकृष्ण आडवाणी की यात्रा से पहले लालू के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार से समर्थन वापस ले लिया था), लेकिन नीतीश हमारे साथ रहे। उनके खिलाफ कुछ भी क्यों होना चाहिए?
ये भी पढ़ें: मुकेश सहनी के नाम की घोषणा बिगाड़ सकती है NDA का जातिगत समीकरण
क्या आपको नहीं लगता कि तेजस्वी द्वारा 1.4 करोड़ जीविका श्रमिकों को 5 लाख रुपये का बीमा कवर देने और ‘माई बहन मान योजना’ की घोषणा से एनडीए की महिला वोटर्स में फूट पड़ सकती है?
चुनाव से पहले घोषणाएं करना सभी राजनीतिक दलों के अधिकार क्षेत्र में है। लेकिन यह सर्वविदित है कि हमारी सरकार ने 9वीं क्लास की लड़कियों के लिए साइकिल योजना शुरू की थी, जिसने सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया और बदलाव का पहिया बन गई। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत, हमने अब तक 1.41 करोड़ भावी महिला उद्यमियों में से हर एक को 10000 रुपये ट्रांसफर किए हैं। हम अपने राजनीतिक विरोधियों को भी स्पष्ट कर दें कि 10000 रुपये एक गैर-वापसी राशि है।
लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि तेजस्वी का हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा चुनाव की कहानी बदल सकता है?
2020 के चुनावों में चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए का हिस्सा न होने से हमारे वोट बिखर गए थे। इस बार वे हमारे साथ हैं। उन्होंने (तेजस्वी) जो वादा किया है, वह बिल्कुल भी संभव नहीं है। क्या उन्होंने अपने आंकड़े निकाले हैं? हमारा वार्षिक बजट केवल 3.17 लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें से केवल 65000 करोड़ रुपये राज्य के अपने राजस्व से आते हैं। प्रधानमंत्री मोदी (केंद्र) हमें 2 लाख करोड़ रुपये देते हैं और आंकड़े बताते हैं कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की सरकारें केवल 94000 नौकरियां दे सकीं, जबकि नीतीश कुमार सरकार ने पिछले 20 सालों में लगभग 18.5 लाख नौकरियां दी हैं।
विकास की तमाम बातों के बावजूद बीजेपी, विशेषकर प्रधानमंत्री, अक्सर ‘जंगल राज’ का जिक्र क्यों करते हैं?
लोगों को जंगलराज की याद दिलाना और उन्हें पूर्णिमा और अमावस्या का अंतर समझाना बेहद जरूरी है। नीतीश प्रकाश के प्रतीक हैं और लालू अंधकार के। हमें लोगों को उन काले दिनों की याद दिलानी होगी जिन्होंने हमें लालटेन युग में पहुंचा दिया। लालू कुशासन, घोटालों और विकास की कमी के प्रतीक हैं। प्रधानमंत्री, जिन्होंने बिहार को बहुत कुछ दिया है, उन्हें लोगों को जंगलराज के वर्षों की अविस्मरणीय बिहार कहानी भी बतानी होगी। सूरज की पहली किरण का आनंद तभी लिया जा सकता है जब वह रात के ठंडे अंधेरे से गुजरा हो।
आप प्रशांत किशोर को किस तरह देखते हैं?
पार्टियां आती-जाती रहती हैं। AIMIM, BSP और अब जन सुराज पार्टी बिहार में चुनाव लड़ रही हैं। मैं (किशोर के) माइग्रेशन की बातों को कोई नया आख्यान नहीं मानता। दरअसल, माइग्रेशन 2005 के 11% से घटकर अब 2% रह गया है। जीविका दीदियां लगभग 56000 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार कर रही हैं। हाल के वर्षों में गांवों से छोटे और बड़े शहरों की ओर पलायन धीमा हुआ है। ग्रामीण इलाकों में लघु उद्योग स्थापित हो रहे हैं। उद्योग हमारी जीडीपी में 23% का योगदान दे रहे हैं, जो 2005 से पहले फिर से नकारात्मक हिस्सा था। हमारा लक्ष्य बेहतर विकास दर्ज करने के लिए कुछ ही सालों में जीडीपी में उद्योग की हिस्सेदारी को 50% तक ले जाना है।
जन सुराज ने यह भी आरोप लगाया है कि विशेष रेलगाड़ियां बड़ी संख्या में इसलिए नहीं चलाई जा रही हैं क्योंकि बिहार लौटने वाले प्रवासी इसके लिए वोट कर सकते हैं?
यह एक झूठा आरोप है। बल्कि, इस बार छठ (25-28 अक्टूबर) के लिए विशेष ट्रेनों की संख्या 7500 से बढ़ाकर 12000 कर दी गई है। केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह या ललन सिंह, जेडीयू सांसद संजय कुमार झा, बीजेपी सांसद संजय जायसवाल और मैंने रेल मंत्री (अश्विनी वैष्णव) से मिलकर छठ के लिए बिहार आने-जाने वाले यात्रियों की भारी भीड़ को देखते हुए ट्रेनों की संख्या बढ़ाने का अनुरोध किया था।
बीजेपी ने तारापुर सीट आपके लिए छोड़ दी है। क्या 15 साल बाद चुनावी मैदान में वापसी करते हुए आप अपनी सहजता से बाहर आ रहे हैं?
तारापुर मेरा गृहनगर है। ऐसा लग रहा है जैसे बेटा घर लौट आया हो। मेरे पिता शकुनि चौधरी ने 1985 से 2010 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया, सिवाय 1998-2000 के जब मेरे पिता के लोकसभा भेजे जाने के बाद मेरी मां पार्वती देवी ने इसका प्रतिनिधित्व किया था। मैं चुनावी मैदान में नया नहीं हूं। मैंने 2000 का चुनाव लड़ा था, लेकिन चुनाव लड़ने के समय नाबालिग होने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मेरा चुनाव रद्द कर दिया गया था। लेकिन मैं एक बार और स्पष्ट कर दूं। मेरी डेट ऑफ बर्थ 16 नवंबर 1968 है। ECI अंतिम चुनाव प्राधिकारी है। मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या कहते हैं।
ये भी पढ़ें: बिहार की एक चौथाई से अधिक विधानसभा सीटों पर ‘मखाने’ का असर
आप इन दावों को किस प्रकार देखते हैं कि आपको मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर रखने के लिए निशाना बनाया गया?
इन सालों में मैं राजनीतिक प्रतिशोध से बचता रहा हूं। 1998 से 2003 के बीच मेरी उम्र और दूसरी बातों को लेकर मुझे कई बार निशाना बनाया गया। चूंकि 2005 से मेरा राजनीतिक करियर सुचारू रूप से चल रहा था, इसलिए कुछ लोग पुरानी बातें उठाते हैं, लेकिन मुझे इसकी कोई चिंता नहीं है।
किशोर के आरोपों के बाद आपकी शैक्षणिक योग्यता भी सवालों के घेरे में आ गई है। आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
मैं कुछ कारणों से अपनी सेकेंडरी एजुकेशन पूरी नहीं कर पाया, इसलिए मैंने कामराज यूनिवर्सिटी से पीएफसी या प्री-फाउंडेशन कोर्स किया। हालांकि इस कोर्स को करने के लिए तमिल जानना जरूरी है, लेकिन हिंदी जानने वाला भी इसे कर सकता है। मैंने 2008-2010 के बीच यह कोर्स किया, जो तमिलनाडु के अलावा कुछ राज्यों में बारहवीं क्लास के बराबर है और जिसका परिणाम 2011 में आया। मुझे 2019 में कैलिफोर्निया पब्लिक यूनिवर्सिटी से डी.लिट. की उपाधि भी मिली। इसमें छिपाने जैसी कोई बात नहीं है।
