बिहार में एससी/एसटी छात्रवृत्ति फंड को डायवर्ट कर सड़क, तटबंध, मेडिकल कॉलेज और सरकारी बिल्डिंग बनाने का मामला सामने आया है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार 2018-2019 में नीतीश सरकार ने इन पैसे का उपयोग सरकारी कामों के लिए किया और छात्रों को फंड की कमी का हवाला देते हुए स्कॉलरशिप नहीं दी गई।
बिहार सरकार ने 2018-19 में एससी/एसटी छात्रवृत्ति फंड में से 8,800 करोड़ रुपये से अधिक का फंड डायवर्ट किया गया था। कैग की रिपोर्ट से इस डायवर्जन का पता चला है। इससे पहले इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई थी, वेबसाइट में गड़बड़ी का हवाला देकर कई सालों तक स्कॉलरशिप का आवेदन ही नहीं भरा गया था। वास्तव में, बिहार के अधिकांश अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों को छह साल के लिए इस छात्रवृत्ति से वंचित कर दिया गया था।
कहां-कहां डायवर्ट हुआ फंड
- इस फंड में से राज्य सरकार ने बिजली विभाग को 2,076.99 करोड़ रुपये डायवर्ट किए। इसके साथ ही उसे 460.84 करोड़ रुपये का कर्ज भी दिया गया।
- इसमें से प्रमुख सड़क परियोजनाओं के लिए 3,081.34 करोड़ रुपये को निकाला गया।
- 1,202.23 करोड़ रुपये तटबंध और बाढ़ नियंत्रण परियोजनाओं के निर्माण में खर्च किए गए।
- मेडिकल कॉलेजों के लिए 1,222.94 करोड़ रुपए खर्च किए गए।
- 776.06 करोड़ रुपये का उपयोग कृषि विभाग के कार्यालय व अन्य भवनों के निर्माण में किया।
2018-19 की सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, जिसे सरकार भी स्वीकार कर चुकी है। सीएजी ने कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के विकास के लिए निर्धारित फंड को अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किया गया है। समिति इस मामले को गंभीरता से लेती है और सिफारिश करती है कि नीति आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित विकास योजनाओं के लिए निर्धारित फंड किसी भी परिस्थिति में अन्य उद्देश्यों के लिए प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
हालांकि सीएजी को अपने जवाब में बिहार राज्य के वित्त विभाग ने इस बात को स्वीकार किया है कि इसके फंड को किसी भी अन्य विभाग के कार्यों में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। बिहार शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय कुमार ने कहा कि वित्त विभाग ही इस मामले पर प्रतिक्रिया दे सकता है। इस मामले में जब इंडियन एक्सप्रेस ने वित्त विभाग के अधिकारियों से संपर्क कर जवाब मांगा तो उन्होंने प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए कहा कि विभाग पहले ही कैग को जवाब दे चुका है।
काफी सालों तक छात्रवृत्ति रोकने और फंड डायवर्जन के विवाद के बाद राज्य सरकार ने फिर से स्कॉलरशिप के लिए आवेदन मंगवाना शुरू कर दिया है। इस मुद्दे पर पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका के जवाब में नीतीश सरकार ने कहा कि छात्रवृत्ति को रोके जाने के पीछे के कारणों में से एक कारण धन की कमी भी थी।
हाईकोर्ट ने अब राज्य सरकार से याचिकाकर्ता के वकील द्वारा जवाबी हलफनामे का जवाब देने को कहा है। जिसमें पूछा गया है कि राज्य ने फंड की कमी का हवाला देते हुए फंड को कैसे डायवर्ट किया? इस मामले में याचिकाकर्ता राजीव कुमार की वकील अलका वर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कैग की 2018-19 की रिपोर्ट में जो कहा गया है, उसके बाद यह कहने की जरूरत नहीं है कि इसके फंड को कैसे डायवर्ट किया गया।