संतोष सिंह
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) को उसके वरिष्ठ सहयोगियों, भाजपा और जनता दल (यूनाइटेड) ने एनडीए में हाशिए पर डाल दिया है। दो महीने पहले विकासशील इंसान पार्टी के तीनों विधायकों के भाजपा में जाने के बाद, हम (एस) एनडीए के भीतर डील करने की स्थिति में भी नहीं है। इसका दर्द पिछले हफ्ते मांझी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान झलका था।
पिछले रविवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए मांझी ने कहा कि भाजपा और जद (यू) के जूनियर पार्टनर के रूप में एनडीए में होने के कारण उनको “घुटन” हो रही है। हाल के वर्षों में कई यू-टर्न लेने वाले मांझी ने अक्सर एनडीए समन्वय समिति के गठन के लिए दबाव डाला है, जो नहीं किया गया है। उनके बेटे संतोष कुमार मांझी (एमएलसी) नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में हम (एस) के कोटे से एकमात्र मंत्री हैं।
243 सदस्यीय विधानसभा में हम (एस) के मांझी समेत चार विधायक हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने पार्टी के लिए सात सीटें छोड़ी थीं। जबकि आगामी एमएलसी चुनावों में भाजपा और जद (यू) ने दो-दो उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिससे हम (एस) के लिए कुछ नहीं बचा है।
पार्टी के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “चुनाव के दौरान हमारे कार्यकर्ता जद (यू) और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बराबर योगदान देते हैं। हमारे नेता जीतन राम मांझी आगे बढ़कर प्रचार करते हैं। लेकिन जब एमएलसी और राज्यसभा सीटों के बंटवारे की बात आती है तो हमारे नेताओं के नामों पर विचार नहीं किया जाता है। इसने हमारे कार्यकर्ताओं को निराश किया है।” उन्होंने कहा कि पार्टी इस संबंध में अपनी नाराजगी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पहले ही जता चुकी है।
2014 में जद (यू) के साथ रहते हुए जीतन राम मांझी सीएम बने थे। वहीं, अब वह राज्यसभा की सीट या राज्यपाल के पद की तरफ देख रहे हैं लेकिन अभी तक उनके हाथ कुछ आया नहीं है। मांझी की पार्टी के पास दरकिनार किए जाने के बावजूद एनडीए के साथ सह-अस्तित्व के अलावा कोई विकल्प नहीं है। मांझी दलित समुदाय के नेता के रूप में नहीं उभर पाए, जो राज्य की आबादी का लगभग 16 प्रतिशत है।
