बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने फाइनल वोटर लिस्ट जारी कर दी है। अंतिम मतदाता सूची में 7.42 लाख मतदाता हैं, जो इस साल 24 जून को 7.89 करोड़ मतदाताओं की संख्या से लगभग 6 प्रतिशत कम है। 24 जून को ही भारत के चुनाव आयोग ने राज्य में तीन महीने के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की घोषणा की थी। हालांकि आयोग और बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) ने यह खुलासा नहीं किया कि कितने विदेशियों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए। लेकिन बिहार के सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि लगभग 99 प्रतिशत नाम मृत्यु, स्थायी प्रवास और डुप्लीकेट के कारण हटाए गए। इससे यह संकेत मिलता है कि शुरुआत में ऐसे लोगों की संख्या ज़्यादा नहीं थी।
कितने नाम कटे?
एसआईआर में 68.6 लाख नाम काटे गए, जिनमें से 65 लाख नाम 1 अगस्त को ड्राफ्ट सूची प्रकाशित होने पर हटाए गए। वहीं 3.66 लाख दावे और आपत्तियों के चरण के दौरान हटाए गए। ये वह समय होता है जब नागरिक नाम हटाने का विरोध कर सकते हैं या ड्राफ्ट सूची में सुधार की मांग कर सकते हैं। इसके साथ ही 21.53 लाख नए मतदाता जोड़े गए।
ड्राफ्ट चरण में हटाए गए 65 लाख नामों में से 22 लाख को मृत घोषित कर दिया गया, 36 लाख को स्थायी रूप से प्रवासी या अनुपस्थित दिखाया गया और 7 लाख पहले से ही कहीं और नामांकित थे। सूत्रों ने बताया कि अंतिम सूची में 3.66 लाख और हटाए गए नामों में से 2 लाख से ज़्यादा प्रवास के कारण, लगभग 60,000 मृत्यु के कारण और 80,000 डुप्लीकेट (दो स्थानों पर नामांकित) के कारण थे।
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बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि इससे सूची से हटाए गए विदेशियों का प्रतिशत (यदि कोई हो) तो न के बराबर रह जाता है। जब जून में एसआईआर की घोषणा की गई थी, तो विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की आलोचना की थी और आरोप लगाया था कि वह परंपरा तोड़ रहा है और नागरिकता जांच का प्रयास कर रहा है।
SIR क्यों हुआ?
एसआईआर की समाप्ति पर एक बयान में चुनाव आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और चुनाव आयोग के आदर्श वाक्य ‘कोई भी पात्र मतदाता छूटने न पाए और कोई भी अपात्र व्यक्ति मतदाता सूची में शामिल न हो’ के अनुरूप की गई थी। आयोग ने आगे कहा था कि इस प्रक्रिया से व्यथित कोई भी व्यक्ति जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अनुसार, जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रथम अपील और मुख्य निर्वाचन अधिकारी के समक्ष द्वितीय अपील दायर कर सकता है।
क्या पूरे देश में लागू होगी SIR प्रक्रिया?
बिहार के अनुभव के आधार पर आयोग द्वारा SIR प्रक्रिया की समीक्षा करने और देश के बाकी हिस्सों में एसआईआर लागू करने की विधि और समय पर निर्णय लेने की उम्मीद है। हालांकि चुनाव आयोग ने 10 सितंबर को सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों की एक बैठक आयोजित की थी, जहां बिहार में इस प्रक्रिया पर एक प्रस्तुति दी गई थी और पात्रता प्रमाण के लिए आवश्यक दस्तावेजों की सूची पर प्रतिक्रिया मांगी गई थी। हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक देशव्यापी SIR के कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है।
चुनाव आयोग ने 24 जून को पूरे देश के लिए एक एसआईआर का आदेश दिया था, लेकिन इसकी शुरुआत बिहार से हुई क्योंकि राज्य में नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। आदेश के अनुसार, सभी मौजूदा 7.89 करोड़ मतदाताओं को गणना फॉर्म भरना अनिवार्य था और 2003 के बाद पंजीकृत सभी मतदाताओं को (जब राज्य में अंतिम गहन पुनरीक्षण हुआ था) नागरिकता सहित अपनी पात्रता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने आवश्यक थे।
चुनाव आयोग ने 24 जून को कहा था, “तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण, लगातार प्रवास, युवा नागरिकों का मतदान के योग्य होना, मौतों की सूचना न देना और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होने जैसे विभिन्न कारणों से मतदाता सूचियों की अखंडता और त्रुटि-रहित तैयारी सुनिश्चित करने के लिए गहन संशोधन करना आवश्यक हो गया है।” चुनावी राज्य में चुनाव आयोग की इस नई आवश्यकता को लेकर व्यापक राजनीतिक विरोध और ज़मीनी स्तर पर काफ़ी भ्रम की स्थिति थी कि मौजूदा मतदाता भी (यदि 2003 के बाद नामांकित हैं) तो उन्हें अपनी जन्मतिथि और/या जन्मस्थान स्थापित करने के लिए 11 लोगों की सूची में से कोई एक दस्तावेज़ी प्रमाण प्रस्तुत करना होगा, जिसका उपयोग नागरिकता निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
कौन से दस्तावेज जमा करने होते हैं?
चुनाव आयोग के आदेश के अनुसार 1 जुलाई, 1987 से पहले जन्मे सभी लोगों को अपनी जन्मतिथि और/या जन्मस्थान साबित करने वाले दस्तावेज़ पेश करने आवश्यक थे। 1 जुलाई, 1987 और 2 दिसंबर, 2004 के बीच जन्मे सभी लोगों को अपने और अपने माता-पिता में से किसी एक के लिए दस्तावेज़ जमा करने थे। वहीं 2 दिसंबर, 2004 के बाद जन्मे सभी लोगों को अपने और अपने माता-पिता दोनों के लिए दस्तावेज़ जमा करने थे। ये श्रेणियां नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत आवश्यकताओं के अनुसार थीं।
इस प्रक्रिया से बड़ी संख्या में मतदाताओं के मताधिकार से वंचित होने की आशंका को लेकर चिंताएं पैदा होने के साथ आयोग के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई। इनमें मौजूदा मतदाताओं की नागरिकता जांच करने के उसके अधिकार और एसआईआर में अपनाई गई प्रक्रिया, दोनों पर सवाल उठाए गए।
अनुच्छेद 326 के अनुसार केवल 18 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय नागरिक ही मतदाता के रूप में पंजीकृत हो सकते हैं। हालांकि वर्तमान नामांकन प्रपत्र फॉर्म 6, में नागरिकता के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई, लेकिन संशोधन के लिए पहचान के प्रमाण के रूप में आधार को 12वें दस्तावेज के रूप में शामिल करने का निर्देश देकर बहिष्कार की संभावना को बढ़ा दिया।