बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में इस बार सीमांचल के अररिया जिले की जोकीहाट सीट पर सियासी जंग में दो सगे भाई आमने-सामने हैं। पहले चरण में तेजस्वी और तेजप्रताप यादव भी चुनावी मैदान में अपना भाग्य आजमाने उतरे तो कुछ और दलों में रिश्तेदारों के आमने सामने की टक्कर दिखी। सियासत की एक ही जमीन पर पले बढ़े नेताओं के बीच की चुनावी जंग ने लोकतंत्र की खुबसूरती की एक अनूठी मिसाल पेश की है जो वंशवाद से इतर बिहार में राजनीति को नए सिरे से परिभाषित करती दिख रही है।

अक्सर राजनीतिक दलों की तरफ से एक दूसरे को वंशवाद पर घेरने की कोशिश की जाती है। इस बार बिहार के विधानसभा चुनाव में न केवल भाइयों के बीच बल्कि अलग अलग दलों से अपने राजनीतिक वजूद के साथ चुनाव मैदान में उतरे हैं। अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट पर केंद्र में पूर्व राज्यमंत्री तस्लीमुद्दीन के दो बेटों-शाहनवाज आलम व सरफराज आलम के बीच आमने-सामने की टक्कर है। राजद ने मौजूदा विधायक शाहनवाज आलम को उम्मीदवार बनाया है तो तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम को जन सुराज पार्टी ने उतारा है।

पिता राजद तो पुत्र निर्दलीय ठोक रहे ताल

पूर्वी चंपारण की चिरैया सीट पर राजद उम्मीदवार पूर्व विधायक लक्ष्मीनारायण यादव के खिलाफ उनके बेटे लालू प्रसाद यादव भी चुनाव मैदान में हैं। हालांकि इस सीट पर राजद उम्मीदवार लक्ष्मीनारायण यादव का मुकाबला भाजपा के मौजूदा विधायक लाल बाबू प्रसाद गुप्ता से है।

हर सीट पर दो लाख से अधिक हैं मतदाता, दूसरे चरण की 122 विधानसभा सीटों पर सभी दलों की निगाह युवाओं पर

पूर्व सांसद अरुण कुमार के बेटे ऋतुराज को जद (एकी) ने जहानाबाद से अपना उम्मीदवार बनाया है तो उनके चचेरे भाई रोमित को अतरी विधानसभा सीट से राजग के ही घटक हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (एस) ने अपना उम्मीदवार बनाया है। राजनीतिक मामलों के जानकार गिरींद्र झा बताते हैं कि यह वंशवाद की राजनीति से अलग अपने-अपने साख और निजी छवि को स्थापित करने की राजनीति है।