बिहार के सीमांचल में (जहां नेपाल की सीमा भारत के साथ मिलती है) एक शांत तूफान दस्तक दे रहा है। चुनाव आयोग ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) किया, जिसने पूरे बिहार से 68 लाख नाम काट दिए। इससे राज्य के कुल वोटरों की संख्या 7.89 करोड़ से घटकर 7.42 करोड़ रह गई। लेकिन सबसे गहरा घाव किशनगंज जिले को लगा, जहां नेपाल की सीमा से सटे होने के कारण 1.45 लाख नाम हटाए गए। यहां मतदाताओं की संख्या में 11.8% की गिरावट आई, जो राज्य के औसत से कहीं ज्यादा है। यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि पहचान, और लोकतंत्र में अपनी आवाज उठाने की लड़ाई है। इस कहानी के केंद्र में हैं सीमांचल की बेटियां- वे महिलाएं जो इस प्रक्रिया की मार झेल रही हैं।

आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पूरे बिहार में 22 लाख से ज्यादा महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए, जबकि पुरुषों के 15.5 लाख नाम कटे। किशनगंज में यह कटौती और भी निर्मम रही। कई इलाकों में 90% से ज्यादा नाम महिलाओं के ही हटाए गए। चुनाव आयोग का कहना है कि 99% नाम मृत्यु, माइग्रेशन या डुप्लीकेट एंट्री के कारण काटे गए। लेकिन किशनगंज की महिलाओं के लिए यह जवाब अन्याय जैसा लगता है। यहां कुछ महिलाएं नेपाल की बेटियां हैं, जो शादी के बाद बिहार में बसीं, और जिनका जीवन एक अनोखी रोटी-बेटी के रिश्तों में बंधा है। उनके पास आधार, पैन, राशन कार्ड, सब कुछ है, फिर भी उनका वोटर हक छीना जा रहा है।

SIR से प्रभावित महिलाओं की गुहार

साहिबा खातून (जो नेपाल से शादी करके किशनगंज आईं) अपना दर्द बयां करती हैं। 15 साल पहले शादी के बाद उनका हर भारतीय दस्तावेज बन गया—आधार, पैन, राशन कार्ड, और शादी के एक साल बाद ही वोटर कार्ड। वे गुस्से और दर्द के साथ कहती हैं “अब मैं भारत की बहू हूं, मैंने हर प्रूफ दिया, फिर भी नोटिस आ गया। मेरे मां-बाप नेपाल में हैं, मैं उनका भारतीय दस्तावेज कहां से लाऊं?” उनकी कहानी किशनगंज में गूंजती है, जहां खुशनवा खातून जैसी महिलाएं, जिन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में वोट डाला, अब अपने नाम कटे हुए पाती हैं। खुशनवा कहती हैं, “मैं नेपाल की बेटी हूं, लेकिन भारत मेरा घर है। मेरा वोट क्यों छीना जा रहा है?”

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एक महिला (जो 2005 से स्कूल टीचर हैं) को भी नोटिस मिला। वे हैरान हैं कि बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) होते हुए और उन्हें बताने के बावजूद भी उनका नाम संदेह के घेरे में है। वो कहती हैं, “मेरे सारे दस्तावेज सही हैं, मैंने वोट डाला है, फिर भी मुझे बुलाया गया।” एक मजदूर की पत्नी अपनी मजबूरी बताती हैं और कहतीं हैं, “मेरे पति कमाने बाहर गए हैं। चार बच्चों का भविष्य दांव पर है। अगर मेरा वोटर कार्ड गया, तो क्या होगा? हम गरीब लोग इस परेशानी को कैसे झेलें?”

रोटी-बेटी का रिश्ता

नेपाल और बिहार के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता सीमांचल के जिलों (किशनगंज, सीतामढ़ी, मधुबनी) की पहचान है। नेपाल की बेटियां शादी के बाद भारत में बसती हैं, भारतीय दस्तावेज बनवाती हैं, वोट डालती हैं, और अपने बच्चों को भारतीय नागरिक बनाती हैं। लेकिन SIR प्रक्रिया ने एक दरार पैदा की है। मां-बाप के भारतीय दस्तावेजों की मांग ने इन महिलाओं को फंसा दिया। विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में की गई, जिसने गरीब और प्रवासी वोटरों को निशाना बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने आधार को वैध प्रूफ माना, लेकिन नोटिस थमने का सिलसिला नहीं रुका।

आखिर गड़बड़ क्या?

लोग बताते हैं कि BLO ने फॉर्म लिए, लेकिन रसीद नहीं दी। एक शख्स कहता है, “दो महीने पहले फॉर्म दिया, रसीद मांगी तो BLO ने कहा, इसका रसीद नहीं मिलता। नोटिस की भाषा इतनी जटिल है कि लोग समझ ही नहीं पाते। हम पढ़ नहीं सकते कि नोटिस में क्या लिखा है, वजह क्या है?”

यह मुद्दा अब चुनावी रंग ले चुका है। सीमांचल के छह जिलों में 59 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 2020 में महागठबंधन को 25 मिली थीं। विपक्ष का कहना है कि नाम काटकर खास इलाकों के वोट को दबाया जा रहा है। दूसरी तरफ NDA महिलाओं के कल्याण की बात करती है। नीतीश कुमार ने हाल ही में 25 लाख महिलाओं को 10 हजार रुपये दिए। लेकिन प्रभावित महिलाएं सवाल उठाती हैं, “रोटी-बेटी का रिश्ता घुसपैठ नहीं है। यह हमारी जिंदगी का हिस्सा है। सरकार हमें क्यों सजा दे रही है?”

अब आगे क्या?

वेरीफिकेशन की प्रक्रिया जारी है, लेकिन गरीबों के लिए यह आसान नहीं। एक व्यक्ति कहता है, “जिनके पास पहुंच है, उनका नाम पांच दिन में जुड़ जाता है। लेकिन अनपढ़, गरीब के लिए पांच साल, दस साल भी लग सकते हैं।” नोटिस सिर्फ कागज नहीं, बल्कि उनकी आवाज, उनकी पहचान पर खतरा है। जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, किशनगंज की बेटियां अपनी जगह बनाने की जंग लड़ रही हैं। यह सिर्फ नाम कटने की कहानी नहीं, बल्कि लोकतंत्र में अपने हक की लड़ाई है। नेपाल से आयी महिलाएं कहती है, “BLO ने कहा, बाप का भारतीय प्रूफ लाओ। हम नेपाल के हैं, तो नेपाल का प्रूफ नहीं चलेगा? एक अन्य व्यक्ति, जिसके पास 1986 का वोटर कार्ड है, कहता है, मैंने A से Z तक हर दस्तावेज दिया, फिर भी परेशान किया जा रहा है।”