बिहार चुनाव 2025 के परिणाम आने के साथ ही प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जन सुराज पार्टी चर्चा में आ गयी। चुनाव से पहले तक किशोर और जन सुराज छिपे रुस्तम की तरह देखे जा रहे थे। परिणाम आने के बाद उनकी आलोचना-निंदा-उपहास-दिलासा का सिलसिला चल पड़ा।
प्रशांत किशोर टीवी और सोशलमीडिया पर जितने छाए हुए थे उस मुकाबले उन्हें बिहार की जनता का समर्थन नहीं मिला है। जन सुराज इस चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकी। चुनाव से पहले प्रशांत किशोर के विरोधी भी उन्हें दो-चार सीटें देते दिख रहे थे। खुद प्रशांत किशोर 10 से कम या 150 से अधिक का दावा कर रहे थे। इस तरह के दावे से साफ था कि प्रशांत किशोर को अंदाज था कि उनका दाँव ताश के उस पत्ते की तरह है जो ट्रंप कार्ड बन जाए दूसरे के बड़े से बड़े पत्ते पर भारी पड़ता है, ट्रंप न बने तो साधारण दुक्की-चौका बनकर रह जाता है।
चुनाव में जीरो सीट पाने का मतलब है कि प्रशांत किशोर का चुनावी पत्ता ट्रंप कार्ड में नहीं बदल सका मगर क्या सचमुच उनका प्रदर्शन उतना निराशाजनक रहा है जितना इस समय उनके आलोचक बता रहे हैं? यह सच है कि मीडिया और सोशलमीडिया पर जन सुराज की जो हाइप थी नतीजे उसके अनुसार नहीं रहे मगर जो परिणाम आए हैं, वे प्रशांत किशोर के लिए इतने बुरे भी नहीं हैं।
प्रशांत किशोर को इस चुनाव में 3.44 प्रतिशत वोट मिले हैं। उन्होंने राज्य की लगभग सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे इसलिए भी उनका वोट प्रतिशत ज्यादा दिख रहा है मगर यह इतना कम भी नहीं है कि इसे नजरअंदाज किया जा सके। जन सुराज के कुछ उम्मीदवार चुनाव से पहले पलट गये थे फिर भी प्रशांत किशोर के समर्थकों को उनसे इससे ज्यादा वोट पाने की उम्मीद थी।
वोट प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो जन सुराज राज्य की छठवीं बड़ी पार्टी बनकर उभरी है मगर उनके ज्यादा वोट पाने वाले पाँचों दल गठबंधन का हिस्सा थे। जन सुराज एक भी सीट नहीं जीत सकी क्योंकि उसके वोट करीब 235 विधान सभाओं में बिखरे हैं। जिन छोटे दलों के समर्थक संख्या में कम होने के बावजूद बाटुर हैं, उनके लिए कम वोट के साथ सीट जीतना सम्भव हो सका।
यही कारण है कि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने 2.07 प्रतिशत वोट के साथ 5 सीटें, हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने 1.14 प्रतिशत वोट के साथ पाँच सीटें, राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने 0.97 प्रतिशत वोटों के साथ चार सीटें, भाकपा-माले ने 3.05 प्रतिशत वोटों के साथ दो सीटें, विकासशील इंसान पार्टी ने 1.57 प्रतिशत के साथ शून्य सीटें पर जीत हासिल की है।
जन सुराज को छोड़कर अन्य सभी छोटे दलों ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा इसलिए उनके हिस्से में कम वोट प्रतिशत के बावजूद ज्यादा सीटें आई हैं मगर एक चीज जन सुराज को इन अन्य छोटे दलों से अलग करती है वह है अकेले दम पर चुनावी मैदान में होना। एनडीए और महागठबंधन दोनों धड़ों से बाहर रहने वाले ओवैसी की मीम और मायावती की बसपा से भी जन सुराज की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि ये दोनों दल एक तय जनाधार को केंद्र में रखकर राजनीति करते हैं। मीम का जनाधार मजहब आधारित है तो बसपा का आधार जाति आधारित।
जन सुराज को मिले वोट स्थानीय स्तर पर भले ही जातिगत समीकरण से प्रभावित हुए हों मगर राज्य स्तर पर जन सुराज की किसी जाति विशेष की पार्टी वाली छवि नहीं है। यह जरूर है कि मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में टिकट देने के नरेटिव को प्रशांत किशोर ने जिस तरह उछाला उससे साफ था कि वह कथित सेकुलर पॉलिटिक्स को पसन्द करने वाले वोटरों को टारगेट कर रहे हैं मगर मुसलमानों को टारगेट करने के लिए प्रतिनिधित्व के अतिरिक्त अन्य किसी मजहबी मुद्दे को एजेंडा नहीं बनाया।
शिक्षा, पलायन, रोजगार, भ्रष्टाचार को केंद्र में रखकर चुनाव प्रचार करने वाले जन सुराज के कई उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है और मनीष कश्यप जैसे नामी उम्मीदवार 37 हजार वोट लाने में कामयाब रहे। ढाका विधान सभा में राजद के फैसल रहमान को 178 वोटों से जीत मिली, जबकि तीसरे स्थान पर रहे जन सुराज के डॉक्टर एलबी प्रसाद को 8337 वोट मिले हैं। सन्देश विधना सभा से जदयू के राधाचरण साह मात्र 27 वोटों से जीते, वहीं तीसरे स्थान पर जन सुराज के राजीव रंजन राज को 6040 वोट मिले। रामगढ़ सीट से बसपा के सतीश यादव मात्र 30 वोटों से जीते हैं, जबकि चौथे स्थान पर जन सुराज के आनन्द सिंह रहे जिन्हें 4426 वोट मिले। अगिआँव में भाजपा के महेश पासवान 95 सीटों पर जीते जबकि तीसरे स्थान पर जन सुराज के रमेश कुमार रहे जिन्हें 3882 वोट मिले। ये कुछ उदाहरण हैं। इतना साफ है कि कई सीटों पर उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला जन सुराज के वोटकटवा उम्मीदवार ने किया।
जन सुराज के मैदान में न होने पर ऐसी सीटें किसके खाते में जातीं यह बताना सम्भव नहीं है मगर इनसे यह जरूर पता चलता है कि जन सुराज ने अपनी उल्लेखनीय चुनावी उपस्थिति दर्ज करा दी है, जैसे चिराग पासवान ने 2020 के बिहार चुनाव में मात्र एक सीट पर चुनावी जीत हासिल करके करायी थी क्योंकि 30 से ज्यादा सीटों पर उनके उम्मीदवारों ने हार-जीत के अंतर से ज्यादा वोट हासिल किया था।
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बिहार चुनाव आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि प्रशांत किशोर के लिए पिक्चर अभी बाकी है। चुनाव की रिपोर्टिंग के दौरान बिहार के कई वोटरों ने ऑन कैमरा कहा कि प्रशांत किशोर उन्हें अच्छे लगते हैं मगर उन्हें वोट देना अभी जल्दबाजी होगी, कुछ ने सुझाव दिया कि उन्हें 2030 की तैयारी करनी चाहिए। पहले चुनाव में 3.44 प्रतिशत वोट लाकर प्रशांत किशोर ने जता दिया है कि अगले बिहार चुनाव में वो आज से बड़े फैक्टर होंगे, बशर्ते अगले 5 साल वह जमीन पर टिके रह सकें।
यहाँ यह कहना भी समीचीन होगा कि मीडिया और सोशलमीडिया पर प्रशांत किशोर की ज्यादातर आलोचना उनके जमीनी प्रदर्शन के बजाय बड़बोले बयानों के कारण हो रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रशांत किशोर चुनाव प्रचार के दौरान बेहद एरोगेंट नजर आने लगे थे। नीतीश कुमार को 25 से ज्यादा सीटें आने पर राजनीति से संन्यास लेने का दावा हो या मोदी-शाह का जिक्र ऐसे करना जैसे उनकी कृपा से ही मोदी जी 2014 का चुनाव जीते थे, या पत्रकारों को ऑन-कैमरा ट्रॉल करना हो, ये सारी चीजें चुनाव नतीजे आने के बाद प्रशांत किशोर के खिलाफ तात्कालिक आक्रोश का कारण बन गई हैं। मगर चुनाव परिणाम की तात्कालिक प्रतिक्रिया का ज्वार थमने के बाद सुधी जनों को अहसास होगा कि बिहार में एक नई राजनीतिक शक्ति का उदय हो चुका है। इस शक्ति का भविष्य क्या होगा, यह केवल भगवान जानता है।
बिहार चुनाव परिणाम
| क्रम | पार्टी का नाम | सीटें जीती | वोट शेयर % |
|---|---|---|---|
| 1 | भारतीय जनता पार्टी (BJP) | 89 | 20.87% |
| 2 | जनता दल (यूनाइटेड) – JD(U) | 85 | 18.91% |
| 3 | राष्ट्रीय जनता दल (RJD) | 25 | 22.76% |
| 4 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) | 6 | 8.46% |
| 5 | लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) – LJP(RV) | 19 | 5.11% |
| 6 | AIMIM | 5 | 2.07% |
| 7 | हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) – HAMS | 5 | 1.14% |
| 8 | राष्ट्रीय लोक मोर्चा | 4 | 0.97% |
| 9 | निर्दलीय | 9 | 4.66% |
| 10 | CPI (मार्क्सवादी–लेनिनवादी) (लिबरेशन) | 2 | 3.05% |
| 11 | बहुजन समाज पार्टी (BSP) | 1 | 1.52% |
| 12 | जन सुराज पार्टी (JSP) | 0 | 3.44% |
| 13 | विकासशील इंसान पार्टी (VIP) | 0 | 1.57% |
