बिहार विधानसभा चुनाव का ऐलान अभी भले ही न हुआ हो लेकिन उसके पहले सत्ता पक्ष हो या विपक्ष वोटरों को साधने में जुट गए हैं। बीते बुधवार को विपक्षी महागठबंधन इंडिया ब्लॉक ने अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) को लुभाने के लिए अब तक का अपना सबसे निर्णायक प्रयास किया। जिसके लिए विपक्ष ने अति पिछड़ा न्याय संकल्प (ईबीसी के लिए न्याय का संकल्प) जारी किया।
विपक्ष द्वारा जारी किए गए 10 सूत्रीय प्रस्ताव में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (मारपीट या धमकी निवारण) अधिनियम की तर्ज पर ईबीसी के सदस्यों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए एक कानून बनाने से लेकर पंचायतों में ईबीसी आरक्षण को 20% से बढ़ाकर 30% करने, आरक्षित नौकरियों में भर्ती में “not for suitable” को खत्म करने जैसे वादे शामिल किए गए हैं।
इस कदम को महागठबंधन द्वारा अति पिछड़ी जातियों को एनडीए से अलग करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। ये जातियां आम तौर पर सत्तारुढ़ दल की वोटर मानी जाती हैं जिसकी आबादी बिहार की आबादी का लगभग 36% हैं। साथ ही, इंडिया ब्लॉक द्वारा यह अन्य राज्यों में भी अति पिछड़ी जातियों तक पहुंचने का प्रयास है।
कुर्मी जाति से आते हैं नीतीश कुमार
न्याय संकल्प का उद्देश्य अति पिछड़े वर्गों को यह संकेत देना है कि राजद केवल यादवों की पार्टी नहीं है, बल्कि पिछड़े वर्ग के समुदायों के बीच अपनी पहुंच का विस्तार करना चाहती है। इसका उद्देश्य यह भी बताना है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस उन पिछड़े समुदायों को अपनाने के लिए गंभीर है, जिनके साथ इस पुरानी पार्टी का उत्तर भारत में पहले कोई करीबी जुड़ाव नहीं देखा गया था।
बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं, जो बिहार की आबादी का लगभग 3% जाता है। संख्यात्मक रूप से ये यादवों से कम है, जिनकी आबादी लगभग 14% है। वर्तमान में नीतीश कुमार एनडीए के सहयोगी भाजपा के साथ गठबंधन करके सत्ता में आते रहे हैं। इसलिए नीतीश कुमार ने अति पिछड़ी जातियों, महिलाओं और महादलितों (पासवानों को छोड़कर बाकि दलित, हालांकि उन्होंने अंततः पासवानों को इस श्रेणी में शामिल कर लिया, जिससे यह वर्ग समाप्त हो गया) के बीच अपना वजूद बनाया और एक नए वोट बैंक तैयार कर लिया।
ईबीसी जाति हमेशा नीतीश के साथ खड़े रही है, जिससे वे बिहार की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गए, भले ही जेडीयू वर्तमान में भाजपा और आरजेडी के बाद राज्य में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन वोट बैंक अभी भी जेडीयू और नीतीश कुमार का कम नहीं हुआ है। ईबीसी कारक को नीतीश के किसी भी गठबंधन के पक्ष में तराजू को झुकाने में सक्षम माना जाता है, और विपक्ष के न्याय संकल्प का स्पष्ट उद्देश्य उनके ईबीसी समर्थन आधार में सेंध लगाना है।
बिहार में अति पिछड़ी जातियों में लगभग 130 जाति और उप- जातियों का समूह शामिल हैं। जैसे नाई, मछुआरे (सहानी, निषाद और केवट जैसे उपनाम रखने वाले), लोहार, तेली (तेल व्यापारी), और नोनिया (पारंपरिक रूप से नमक बनाने वाले)। इनमें से कुछ समूहों की बिहार में पहले से ही अपनी छोटी पार्टियां हैं, लेकिन उनमें राज्यव्यापी प्रभाव डालने लायक ताकत नहीं है।
उत्तर भारत के अन्य राज्यों में पैठ की तैयारी में विपक्ष
बिहार के अलावा उत्तर भारत के अन्य राज्यों में भाजपा ने ईबीसी के बीच सफलतापूर्वक महत्वपूर्ण समर्थन हासिल किया है, जो पिछले एक दशक में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी को आगे बढ़ाने की एक बड़ी वजह रही है। भले ही 2024 में इसे यूपी में बीजेपी को वोट बैंक का काफी नुकसान उठाना पड़ा हो। इससे यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि इंडिया ब्लॉक खुद को भाजपा के लिए एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में पेश करे, ताकि ईबीसी को वापस उसके पास आने से रोका जा सके।
2006 से नीतीश ने अति पिछड़े वर्गों के बीच अपनी पैठ मज़बूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। 2006 में उनके मंत्रिमंडल ने ज़िला परिषदों, पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों में अति पिछड़े वर्गों के लिए 20% आरक्षण को मंज़ूरी दी। 2010 में उन्होंने एक नई उद्यमिता योजना की घोषणा की। जिसके तहत पात्र सदस्यों को छोटे व्यवसाय शुरू करने के लिए 10 लाख रुपये की राज्य सहायता दी जाएगी।
मुस्लिम बाहुल्य इलाके में यादव के हाथ सत्ता, आरजेडी और जेडीयू के बीच रहा है मुकाबला
अति पिछड़े वर्गों तक पहुंचने की नीतीश की कोशिश को सहयोगी से प्रतिद्वंद्वी बने लालू प्रसाद के मुस्लिम-यादव समीकरण के आधार की प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया। जिसने राजद को 1990 से 2005 के बीच 15 वर्षों तक सत्ता में बने रहने में मदद की थी। लालू के उदय ने राज्य में उच्च-जाति के प्रभुत्व को काफी हद तक कम किया, क्योंकि वे मंडल लहर पर सवार थे, जिसने ओबीसी के लिए सामाजिक न्याय का वादा किया था। हालांकि धीरे-धीरे यह धारणा बनी कि लालू की सत्ता का मतलब मुख्य रूप से यादवों और अशरफ मुसलमानों की सत्ता है।
2023 के बिहार जाति जनगणना ने अति पिछड़ी जातियों के चुनावी महत्व को और उजागर किया, जिसमें दिखाया गया कि जमीन और संपत्ति के मामले में वे दलितों से थोड़े ही ऊपर हैं। जनगणना के प्रकाशन के बाद नीतीश ने राज्य में अनुसूचित जातियों, जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और अति पिछड़ों के लिए कोटा 50% से बढ़ाकर 65% करने का फैसला किया, लेकिन बाद में पटना उच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया।