बड़े राजनीतिक दलों के बीच नए उम्मीदवारों को लेकर घमासान मचा है। इस घमासान के बीच बिहार चुनाव के लिए 243 सीटों पर अब तक केवल 15 ही उम्मीदवारों ने अपने नामांकन दर्ज कराएं है। निर्वाचन आयोग के मुताबिक दर्ज कराए गए नामांकन निर्दलीय उम्मीदवारों से संबंधित है। अब बुधवार से इस प्रक्रिया में तेजी आने की संभावना जताई जा रही है क्योंकि कांग्रेस सहयोगी व भाजपा सहयोगी दलों की सूची अब आनी शुरू हो गई है। पहले चरण के लिए आगामी 17 अक्तूबर को ही नामांकन की प्रक्रिया पूर्ण होने जा रही है।
सीट बंटवारे को लेकर दोनों ही ओर घमासान मचा हुआ है। इसलिए सबसे पहले दोनों ही दल केवल उन सीटों को अपना पुख्ता दावा करने जा रहे हैं, जिन सीटों पर किसी भी दल के साथ कोई टकराव नहीं है। लेकिन भाजपा सहयोगी और कांग्रेस सहयोगी दल की ओर सारी स्थिति सामान्य होने का दावा किया जा रहा है। इसकी आधिकारिक पुष्टि सभी दलों की ओर से सोशल मीडिया मंच पर लगातार की जा रही है।
कम अंतर वाली हार-जीत सीट को लेकर तनाव जारी
जानकार मानते हैं कि ऐसी स्थिति होती, तो अब तक सीट के सभी समीकरण सामने आ चुके होते। इस वजह से अब उन सीटों के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू की जा रही है, जहां पर कोई विवाद नहीं है। इसके अतिरिक्त विवादित सीटों पर सहमति बनाने के लिए दलों के बीच चर्चाओं का दौर जारी है। साल 2020 के विधानसभा चुनाव में सबसे कम अंतर वाली सीटों पर है अधिक तनाव देखने को मिल रहा है।
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बिहार विधानसभा के लिए कुल 122 विधायकों के बहुमत की जरूरत होती है। 2020 के चुनावी आंकड़े देखें तो में कांग्रेस व सहयोगी दलों के पास 110 सीट थीं जबकि भाजपा सहयोगी दलों के पास 125 सीट थीं। इस पूरे आंकड़े में केवल 12 सीटों से हार जीत का फैसला हुआ था। कुछ सीटों पर विपक्षी दलों के साथ जीत का अंतर बहुत ही कम था, इस अंतर को कम करके दोनों दल अपना बहुमत जुटाना चाह रहे थे। इन सीटों के दायरे में पांच हजार से कम वोट के अंतर वाली सीटों को रखा गया है।
12 वोट से हुई थी हार
इन सीटों की सरकार बनाने में इस चुनाव में सबसे अधिक भूमिका रहने वाली है। ऐसी सीटों का आंकड़ा 50 से अधिक है। इन सीटों में 15 सीट राजद और 9 सीट कांग्रेस के खाते में गई थी। जबकि अन्य सीटें भाजपा सहयोगी दलों की झोली में थी। इसके अतिरिक्त यह भी सामने आया है कि नालंदा जिले की हिलसा सीट केवल 12 वोट, शेखपुरा 133 और रामगढ़ सीट केवल 189 मतों से ही जीती गई थी। इसके अतिरिक्त भाजपा समर्थन वाली सरकार बनने के बाद कई दल इस पाले में आ गए थे। जो इस बार दोनों ही प्रमुख दलों के लिए बड़ी चुनौती के तौर पर देखे जा रहे हैं।