बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान आज सोमवार को शाम चार बजे हो जाएगा। इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प बना हुआ है। मुकाबला कांटे का है। एक तरफ एनडीए है, जिसमें बीजेपी, जेडीयू, चिराग की पार्टी और सीताराम मांझी जैसे दल शामिल हैं तो वहीं दूसरी तरफ M+Y फैक्टर, बेरोजगारी को आधार बनाकर राजद, कांग्रेस और मुकेश सहानी की पार्टियां खड़ी हैं।
बात चाहे एनडीए की हो या फिर महागठबंधन की, चर्चा चाहे तेजस्वी यादव की हो या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की, सभी की अपनी ताकत, कमजोरी, अवसर और खतरे हैं। विज्ञापन की दुनिया में SWOT Analysis काफी चर्चित शब्द है। यहां S का मतलब होता है Strength (ताकत), W का अर्थ होता है Weakness (कमजोरी), O का मतलब है Opportunity (अवसर) और T से होता है Threat (खतरा)।
इसके जरिए आसानी से समझा जा सकता है कि बिहार चुनाव में कौन सी पार्टी या किस नेता की स्थिति क्या है, उनके सामने क्या अवसर हैं और किन चुनौतियों का सामना उन्हें करना पड़ सकता है। यहां सिलसिलेवार तरीके से जानने की कोशिश करते हैं कि एनडीए, महागठबंधन, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव का SWOT Analysis क्या कहता है।
नीतीश कुमार का SWOT Analysis
ताकत
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत यह है कि इतने सालों तक सत्ता में रहने के बाद भी उनकी जमीन से जुड़े हुए नेता वाली छवि बरकरार है। उनका प्रशासनिक अनुभव भी उन्हें अच्छी स्थिति में लेकर आता है। इसके अलावा बिहार का एक बड़ा वर्ग तमाम आरोपों के बाद भी नीतीश कुमार को सुशासन बाबू के रूप में देखता है।
कमजोरी
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी कमजोरी और चिंता का विषय यह है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्हें मात्र 43 सीटों से संतोष करना पड़ा था। इसके अलावा नीतीश कुमार के लिए सत्ता विरोधी लहर भी एक बड़ी कमजोरी साबित हो सकती है। नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र भी विपक्ष उनकी कमजोरी के रूप में देख रहा है। इस चुनाव में तेजस्वी यादव ने समय-समय पर इसे मुद्दा भी बनाया है।
अवसर
नीतीश कुमार के पास सबसे बड़ा अवसर तो दसवीं बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने का है। इसके अलावा नीतीश कुमार को केंद्र सरकार का पूरा समर्थन मिल रहा है, ऐसे में वे कई बड़ी योजनाएं बिहार के लिए ला सकते हैं।
खतरा
नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ा खतरा बीजेपी का बिहार में बढ़ता प्रभाव है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी 74 सीट जीतकर बीजेपी ने साबित कर दिया था कि नीतीश कुमार की चमक फीकी पड़ चुकी है और आगे चलकर बिहार में बीजेपी का मुख्यमंत्री भी देखने को मिल सकता है। ऐसे में किस तरह से चुनाव में मजबूत प्रदर्शन किया जाए और मुख्यमंत्री की कुर्सी को सुरक्षित रखा जाए, यही नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
जानकार मानते हैं कि तेजस्वी यादव की युवाओं के बीच बढ़ती लोकप्रियता भी नीतीश कुमार के लिए एक खतरा साबित हो सकती है।
तेजस्वी यादव का SWOT Analysis
ताकत
पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी ताकत उनकी युवाओं के बीच लोकप्रियता है। जिस तरह से उन्होंने जातिगत राजनीति के बीच बेरोजगारी को एक बड़ा मुद्दा बनाया है, जानकार मानते हैं कि इससे उनकी छवि को काफी फायदा हुआ है। इसके अलावा मुस्लिम और यादव वोट बैंक का मजबूती से राजद के साथ बने रहना भी तेजस्वी के लिए सियासी रूप से फायदेमंद है।
कमजोरी
तेजस्वी यादव की इस समय सबसे बड़ी कमजोरी ‘जंगलराज’ की नकारात्मक छवि से लड़ना है। कहने को बीते 20 सालों से सत्ता में नीतीश कुमार हैं, लेकिन बिहार का एक वर्ग आज भी लालू राज के दौरान की कानून व्यवस्था को याद कर राजद और तेजस्वी दोनों को निशाने पर लेता है। ऐसे में अपनी छवि को सुधारना तेजस्वी के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है।
अवसर
तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ा अवसर बिहार का मुख्यमंत्री बनने का है। 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 75 सीटें जीती थीं। ऐसे में अगर पार्टी अपने प्रदर्शन को बरकरार रखती है और सहयोगी दल अधिक सीटें जीतने में सफल रहते हैं, तो यह अवसर तेजस्वी के लिए सत्ता के द्वार खोल सकता है।
युवाओं के बीच रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दों को उठाकर तेजस्वी एक लोकप्रिय और संवेदनशील नेता की छवि और मजबूत बना सकते हैं। यह भी उनके लिए एक बड़ा अवसर है।
खतरा
तेजस्वी यादव ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा था कि राजद को अपने संगठन को और मजबूत करने की जरूरत है। यही बयान एक तरह से खतरे की घंटी भी है, क्योंकि बीजेपी ने पूरे राज्य में बूथ मैनेजमेंट और पन्ना प्रमुखों के सहारे अपने संगठन को काफी मजबूती दी है। ऐसे में अगर राजद संगठनात्मक स्तर पर कमजोर रहती है, तो यह तेजस्वी के लिए चुनौती साबित हो सकती है।
एनडीए का SWOT Analysis
ताकत
एनडीए की बिहार चुनाव में सबसे बड़ी ताकत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साथ होना है। कई राज्यों के चुनावों में देखा गया है कि पीएम मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता ने परिणामों पर सीधा असर डाला है। इसके अलावा “डबल इंजन सरकार” का नैरेटिव भी एनडीए के लिए एक मजबूत आधार साबित हो सकता है। दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी इसी डबल इंजन के दम पर सरकार बनाई गई थी, ऐसे में बिहार में भी ऐसा हो सकता है।
कमजोरी
एनडीए की सबसे बड़ी कमजोरी उसके सहयोगी दलों के भीतर जारी खींचतान है। बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन उसकी सहयोगी जेडीयू काफी पीछे रह गई थी। ऐसे में इस बार भी जेडीयू का प्रदर्शन एनडीए की किस्मत तय कर सकता है। इसके अलावा चिराग पासवान के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक तेवर भी एनडीए के भीतर तनाव बढ़ा सकते हैं, जो चुनावी नुकसान का कारण बन सकते हैं। साथ ही बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था और गरीबी जैसे स्थानीय मुद्दे भी एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण पक्ष बने रहेंगे।
अवसर
इस समय केंद्र में एनडीए की सरकार है, ऐसे में सबसे बड़ा अवसर यही है कि बिहार को विकास के मॉडल के रूप में पेश किया जाए, जहां सभी वर्गों का समान विकास दिखे। इसके अलावा विपक्षी खेमे में जारी खींचतान और असहमति भी एनडीए के लिए एक बड़ा राजनीतिक अवसर बन सकती है। अगर एनडीए अपने गठबंधन को एकजुट रख पाता है, तो यह लाभकारी साबित होगा।
खतरा
एनडीए के लिए इस चुनाव में सबसे बड़ा खतरा नीतीश कुमार के खिलाफ बढ़ती एंटी-इनकंबेंसी लहर हो सकती है। लंबे समय से सत्ता में रहने के कारण जनता का असंतोष उनके प्रति दिख सकता है। इसके अलावा, अगर चुनावी विमर्श स्थानीय मुद्दों जैसे रोजगार, शिक्षा और कानून-व्यवस्था पर शिफ्ट हो गया तो एनडीए के लिए हालात मुश्किल हो सकते हैं।
महागठबंधन का SWOT Analysis
ताकत
महागठबंधन के जातीय समीकरण काफी मजबूत दिखाई देते हैं। मुस्लिम और यादव वोट बैंक के अलावा, ओबीसी समाज में अच्छी पकड़ होना परिणाम के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। महागठबंधन की सबसे बड़ी ताकत राजद (RJD) है, जिसके पास न केवल अपना मजबूत जनाधार है, बल्कि एक स्थिर और वफादार वोट बैंक भी मौजूद है।
कमजोरी
महागठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी उसका आपसी तालमेल और नेतृत्व को लेकर असमंजस है। बात चाहे सीट बंटवारे की हो या तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में स्वीकारने की, कांग्रेस की बढ़ती महत्वाकांक्षा कई चुनौतियां खड़ी कर रही है। इसके अलावा, महागठबंधन के पास एनडीए जितने संसाधन नहीं हैं, जो चुनावी रणनीति और प्रचार में एक कमजोर पक्ष साबित हो सकता है।
अवसर
महागठबंधन के सामने इस बार सबसे बड़ा अवसर सत्ता में वापसी का है। नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी लहर को भुनाकर वह अपने पक्ष में माहौल बना सकता है। साथ ही, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था और विकास जैसे स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखकर महागठबंधन जनता का भरोसा जीतने का मौका पा सकता है।
खतरा
महागठबंधन के लिए सबसे बड़ा खतरा उसके सहयोगी दलों का कमजोर प्रदर्शन हो सकता है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने काफी सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 19 सीटें जीत पाई। अगर इस बार भी ऐसा ही प्रदर्शन रहा, तो यह महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है।
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