बिहार का बाहुबली अशोक महतो अब जेल से बाहर है। 17 साल तक तो जेल में था लेकिन पिछले एक साल से वह बाहर है। एक वेब सीरीज है, ‘खाकी: द बिहार चैप्टर’ जो 1990 से 2006 तक शेखपुरा और नवादा में अशोक महतो की दहशत पर बनी है। वह जेल से भी भाग चुका है। 2006 में वह जेल गया लेकिन अब उसने 62 साल की उम्र में एक शादी की है। अशोक महतो ने मंगलवार को बख्तियारपुर में अपने से बहुत छोटी 46 वर्षीय कुमारी अनीता से शादी कर ली।
चर्चा है कि अशोक महतो की अचानक शादी के पीछे मुंगेर लोकसभा सीट से आरजेडी टिकट है। अशोक महतो चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, इसलिए उनकी पत्नी को टिकट मिला है। अशोक ने अपनी पत्नी अनीता को जेडीयू के मौजूदा सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के सामने उतारा है।
मूल रूप से लखीसराय के रहने वाले अशोक महतो और अनिता ने अपनी शादी के बाद सबसे पहले आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी से मुलाकात की और उनका आशीर्वाद लिया। हालांकि अशोक महतो ने इसे शिष्टाचार मुलाकात बताया, लेकिन आरजेडी सूत्रों ने माना कि यह उससे कहीं अधिक थी। अब अनीता को मुंगेर से टिकट मिल गया है। लालू यादव ने खुद अनीता को पार्टी का सिंबल दिया।
आरजेडी लोकसभा चुनाव में नीतीश यादव के “लव-कुश” वोट बैंक में सेंध लगाने के अलावा ‘एमवाई’ (मुस्लिम-यादव) होने की अपनी छवि से छुटकारा पाने के लिए कम से कम पांच-छह कोइरी-कुरमी ओबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारना चाहती है। मूल रूप से नवादा के रहने वाले अशोक महतो कुर्मी हैं। 2001 के जेलब्रेक मामले में 17 साल की सजा काटने के बाद पिछले साल भागलपुर जेल से रिहा होने पर अशोक महतो ने कहा कि सलाखों के पीछे लंबे समय तक रहने के दौरान वह बोलना भूल गया। लेकिन उसने सीएम नीतीश कुमार पर हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और जेल जाने के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया। जेडी (यू) एमएलसी और प्रवक्ता नीरज कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “राजद द्वारा उम्मीदवारों की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं होने के कारण टिप्पणी करना उचित नहीं है, लेकिन अगर महतो की पत्नी को लोकसभा टिकट दिया जाता है, तो यह केवल आरजेडी की मानसिकता को दर्शाता है।”
वहीं आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, ”अभी तक हमारे लोकसभा उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की गयी है। जहां तक नैतिकता की बात है तो जेडीयू को हम पर निशाना साधने से पहले अपने कुछ उम्मीदवारों का इतिहास देख लेना चाहिए।” 1990 और 2006 के बीच अशोक महतो ने शेखपुरा, नवादा और लखीसराय में अपना राज चलाया, जिसमें हत्या और जबरन वसूली शामिल है। वह मई 2006 में मन्नीपुर (शेखपुरा) में ओबीसी चौरसिया समुदाय के सात सदस्यों की हत्या और 2000 में अप्सर (नवादा) में 12 उच्च जाति के भूमिहार ग्रामीण के नरसंहार में शामिल था।
मन्नीपुर मामले में अशोक महतो को तत्कालीन शेखपुरा एसपी अमित लोढ़ा ने गिरफ्तार किया था, जिन्होंने बाद में महतो के लंबे इतिहास पर बिहार डायरीज़ नाम की एक किताब लिखी, जिस पर खाकी: द बिहार चैप्टर आधारित है। अशोक महतो को केवल 2001 के नवादा जेल ब्रेक मामले में दोषी ठहराया गया है। उसे एक कांग्रेस नेता और शेखपुरा के अरियरी के एक पूर्व ब्लॉक विकास अधिकारी की हत्या के मामले में बरी कर दिया गया है।
आरजेडी अशोक महतो को एक ओबीसी चेहरे के रूप में देख रही है। ज्यादातर मामलों में जिन्होंने महतो पर आरोप लगाया है, वह पिछड़े या दलित थे।हालांकि यह पहली बार होगा जब अशोक महतो शादी के जरिए राजनीति में अपनी किस्मत आजमा रहा है।