बिहार में विधानसभा चुनाव को देखते हुए राजनैतिक पार्टियों द्वारा वोटों की गोलबंदी शुरू कर दी गई है। मुख्य विपक्षी पार्टी राजद ने चुनाव से पहले ‘दलित कार्ड’ खेलने की तैयारी कर ली है। दरअसल राजद ने नीतीश सरकार पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है और अपने इस आरोप को सिद्ध करने के लिए तीन वरिष्ठ नेताओं को आगे कर दिया है।
बता दें कि राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व सभापति उदय नारायण चौधरी, पूर्व मंत्री रमई राम और हाल ही में जदयू छोड़कर राजद में शामिल होने वाले श्याम रजक ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नीतीश सरकार पर दलित विरोधी काम करने का आरोप लगाया है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उदय नारायण चौधरी ने आरोप लगाया कि नीतीश सरकार ने छात्रवृत्ति बंद कर दी और साथ ही सभी बैकलॉग पदों को भी इस सरकार ने बंद कर दिया है। सरकार के इस कदम को राजद ने दलित विरोधी करार दिया है।
राजद सरकार में मंत्री रहे रमई राम ने कहा कि प्रदेश के दलितों को खेती के लिए जमीन दी गई लेकिन आज तक भी उन्हें जमीन पर कब्जा नहीं मिला है। वहीं श्याम रजक ने नीतीश सरकार में दलितों पर बढ़े अत्याचार का मुद्दा उठाया है और कहा कि साल 2005 में राज्य में अनुसूचित जाति पर अत्याचार 7 फीसदी था, वो आज बढ़कर 17.5 प्रतिशत हो गया है।
हालांकि जदयू की तरफ से भी पलटवार किया गया है। जदयू प्रवक्ता संतोष निराला ने कहा है कि राजद के जो दलित नेता नीतीश सरकार पर आरोप लगा रहे हैं, अगर उनमें हिम्मत है तो वह राजद की तरफ से किसी दलित को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कराकर दिखाएं। जदयू नेता अशोक चौधरी ने कहा कि नीतीश सरकार ने दलितों के कल्याण के लिए कई अहम काम किए हैं, जिनमें पंचायती राज व्यवस्था में आरक्षण जैसे अहम कदम शामिल है।
बता दें कि दलित नेता और पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया है, जिसे महागठबंधन के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है। ऐसे में जीतनराम मांझी के महागठबंधन से जाने के दलित वोटों के नुकसान की भरपाई के लिए राजद ने नीतीश सरकार को दलितों के मुद्दे पर घेरने की योजना बनायी है।
राजद बिहार विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के तहत अपने पारंपरिक मतदाताओं यादव और मुस्लिमों के साथ ही दलितों को भी लुभाने का प्रयास कर रही है। यदि राजद ऐसा करने में सफल हो जाती है तो यकीनन इससे एनडीए की मुश्किलें काफी बढ़ सकती हैं।
बता दें कि बिहार में 16 फीसदी आबादी दलितों और महादलितों की है। वहीं मुस्लिम और यादव वोट बैंक बिहार में क्रमशः 16.9 और 14.4 फीसदी है। राजद की कोशिश है कि इन तीनों वोटबैंक को अपने पक्ष में गोलबंद किया जाए। वहीं ओबीसी वोटबैंक में से 6.4 फीसदी कुशवाहा, 4 फीसदी कुर्मी वोटबैंक पर जदयू की अच्छी पकड़ है। वहीं राज्य के उच्च जाति वोटबैंक जिनमें 4.7 फीसदी भूमिहार, 5.7 फीसदी ब्राह्मण, 5.2 फीसदी राजपूत और 1.5 फीसदी कायस्थ शामिल हैं, इनमें बीजेपी की मजबूत पकड़ है।
ऐसी स्थिति में बिहार में दलितों का वोट किस पार्टी को मिलता है, यह काफी अहम रहेगा। इसी को देखते हुए राजनैतिक पार्टियों की तरफ से दलितों के मुद्दों पर जमकर आरोप -प्रत्यारोप का दौर चल पड़ा है।