राजधानी के सैकड़ों परिवहन कर्मियों ने केजरीवाल सरकार की परिवहन नीतियों के खिलाफ सोमवार को प्रदर्शन किया। इस दौरान यूनाइटेड फ्रंट आॅफ ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की अगुआई में आॅटो रिक्शा, ग्रामीण बस और ट्रक यूनियनों के प्रदर्शनकर्मियों ने समता स्थल से दिल्ली सचिवालय तक अपने वाहनों में काले झंडे लगाकर प्रदर्शन किया। उनकी प्रमुख मांगों में ओला व उबर पर रोक, पार्किंग, ग्रीन टैक्स, टोल टैक्स, डीजल गाड़ियों पर रोक, सीएनजी पर सबसिडी, नो एंट्री, फिटनेस, अवैध रूप से चल रही वैनों पर कार्रवाई और किराया बढ़ोतरी जैसे मामले शामिल रहे।

ट्रांसपोर्ट यूनियन के अध्यक्ष कुलतरण सिंह अटवाल का कहना है कि सरकार हमारी मांगों को सालों से अनदेखा करती आ रही है। इसलिए सभी परिवहन संगठनों ने एक होकर अपनी मांग रखने का फैसला किया है। रेलवे स्टेशन व बस अड्डों के यूनियन उफ्टा के उपाध्यक्ष अरुण शर्मा सहित संगठन के कई नेताओं ने कहा कि अगर सरकार हमारी मांगें नहीं मानेगी तो हम अपने वाहनों को मुख्यमंत्री आवास पर खड़ा कर देंगे। सरकार की परिवहन नीतियों के चलते हम पर चौतरफा मार पड़ रही है इसलिए गाड़ियां चलाना मुश्किल हो गया है।

वहीं परिवहनकर्मियों का कहना है कि ग्रीन टैक्स के नाम पर सरकार खाली गाड़ियों से भी वसूली करती है। जो लूट प्रदूषण के नाम पर हो रही है उसे तुरंत बंद किया जाए। बस, आॅटो, टैक्सी व ग्रामीण बसों का किराया तुरंत बढ़ाया जाए। साथ ही नो एंट्री की अवधि भी पहले जैसी की जाए। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से आॅटो रिक्शा के लिए तय किराया है और ओला उबर के लिए किराए का कोई निर्धारण नहीं है। इसके कारण ओला और उबर कम से कम किराया लेकर लोगों को प्रभावित कर रहे हैं। उनका किराया काफी कम होता है, लेकिन आॅटो चालक उनके जैसा किराया नहीं वसूल सकते। इन कंपनियों के पास करोड़ों रुपए हैं जबकि आॅटो रिक्शा चालक एक-दो टैक्सी से ही अपनी आजीविका चलाते हैं।

आइजीआइ टैक्सी यूनियन के राजेंद्र सोनी का कहना है कि ओला-उबर के ज्यादातर चालकों के पास कमर्शियल लाइसेंस नहीं है, लेकिन सरकार की ओर से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती। उनका कहना है कि सरकार जिस तरह ई-रिक्शा के लिए 30 हजार रुपए का कर्ज देती है, उसी तरह आॅटो के लिए सीनएजी में छह रुपए की छूट की व्यवस्था कर दे तो किराया भी कम होगा और यात्रियों पर किराए का बोझ नहीं बढ़ेगा।