असम में विधानसभा चुनाव में सत्ता पाने की संभावना जताते हुए कांग्रेस के नेता अभी से कुर्सी की दावेदारी में जुट गए हैं। कांग्रेस नेतृत्व के सामने एक ओर, ऐसे नेताओं को संभालने तो दूसरी ओर महागठबंधन को भी पुख्ता बनाए रखने की चुनौती है।
ऐसे में इस बार विधायक दल के नेता पद का चयन आसान नहीं माना जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने अपनी-अपनी दावेदारी जतानी शुरू कर दी है। कांग्रेस आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी टीम को वहां का दायित्व दे रखा है। कांग्रेस के विभिन्न धड़ों के नेता बघेल को अपने बारे में बताने-समझाने में जुटे हैं।
बघेल की टीम साथ में एआइयूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अजमल से भी लगातार बात कर रही है। कांग्रेस ने असम में सामूहिक नेतृत्व के साथ चुनाव लड़ा था। पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के निधन के बाद पार्टी के पास कोई बड़ा और लोकप्रिय चेहरा नहीं था। पार्टी ने मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेताओं को चुनाव प्रचार में उतारा। गौरव गोगोई, सुष्मिता देव, प्रद्युत बोरदोलोई और देवव्रत सैकिया को एक-एक असम बचाओ बस यात्रा का नेतृत्व करने का मौका दिया। जिन-जिन इलाकों की जिम्मेदारी में ये नेता रहे, उन इलाकों के नतीजों के हिसाब से इन नेताओं का कद तय होगा। अपने इलाकों में काम के आधार पर ये नेता दावे जता रहे हैं। सभी दावेदार जीत की संभावना वाले उम्मीदवारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उनके पास ज्यादा विधायकों का समर्थन रहे।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, ‘पार्टी असम में सत्ता तक पहुंचती है, तो मुख्यमंत्री का नाम तय करना आसान नहीं होगा।’ यह सही है कि टिकट बंटवारे में पार्टी ने नेताओं का कोई कोटा तय नहीं किया था, पर प्रदेश में हर नेता को कुछ न कुछ विधायकों का समर्थन हासिल होगा।
कांग्रेस नेतृत्व वाले महागठबंधन के सहयोगियों की भूमिका भी अहम है। सभी से अनौपचारिक चर्चा कांग्रेस नेतृत्व ने शुरू कर दी है। फिलहाल, पार्टी नेतृत्व ने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करने वाले नेताओं को कहा है कि वे उम्मीदवारों को एकजुट रखने पर ध्यान दें। विधायक दल में सेंधमारी की आशंका देखते हुए सतर्क रहें।