पिछले तीन दशकों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) उत्तर प्रदेश में कांग्रेस दलितों के साथ-साथ ब्राह्मणों को भी लुभाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। साथ ही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी जैसी स्थानीय पार्टियों के बीच अपनी जगह बनाने की कोशिश में जुटी है। हालांकि, इस कदम से पार्टी के भीतर के मतभेद भी सामने आ रहे हैं।
महाराष्ट्र के मंत्री और पार्टी के एससी विभाग प्रमुख नितिन राउत, राज्य कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू और AICC के महासचिव और राज्यसभा सांसद पीएल पुनिया के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को आजमगढ़ का दौरा किया, जहां एक गाँव के दलित मुखिया को उच्च जाति के लोगों ने गोली मार दी थी।
बांसगांव के 42 वर्षीय प्रधान सत्यमेव जयते की पिछले शुक्रवार गोली मारकर हत्या कर दी गई। गाँव के दलितों ने आरोप लगाया है कि गांव के ठाकुर और ब्राह्मण सवर्णों को एक दलित प्रधान का उनके सामने सिर ऊंचाकर चलना नागवार गुजर रहा था। कांग्रेस पार्टी का यह प्रतिनिधिमंडल प्रियंका के निर्देश पर गांव आया था।
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति समुदाय को लुभाने के लिए कांग्रेस लंबे समय से कोशिश कर रही थी, लेकिन उन्हें बहुत कम सफलता मिली। हालांकि बसपा प्रमुख मायावती इस बात से परेशान नज़र आई। मायावती की नाराजगी खुलकर तब सामने आई जब राजस्थान में सियासी संकट के दौरान बसपा ने कांग्रेस को अपने 6 विधायकों का समर्थन देने से भी इंकार कर दिया था। वहीं इस सप्ताह की में दलितों पर अत्याचार के संदर्भ में मायावती ने सपा और भाजपा पर हमला करते हुए कांग्रेस का भी उल्लेख किया था।
कांग्रेस के इस कदम के बाद पार्टी के भीतर के मतभेद भी सामने आ रहे हैं। उच्च जाति के कुछ नेता इस बात से नाराज़ हैं कि जब ब्राह्मण मारे गए थे तो कांग्रेस ने ब्राह्मणों के परिवारों को देखने के लिए प्रतिनिधिमंडल क्यों नहीं भेजे थे। एक नेता ने कहा “यह ठीक है कि हमने आजमगढ़ में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा है, लेकिन हम ब्राह्मण समुदाय के उन लोगों से मिलने के लिए समान प्रतिनिधि क्यों नहीं भेज रहे हैं जो मारे गए हैं?”
इसके विपरीत, सूत्रों के मुताबिक राज्य नेतृत्व आचार्य प्रमोद कृष्णम और वाराणसी के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा जैसे नेताओं को आगे बढ़ा रही है और पार्टी के अंदर गुटबाजी को ध्यान में रखते हुए उन्हें ब्राह्मण समुदाय तक पहुंचने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।