ओमप्रकाश ठाकुर
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता व जी -23 समूह के सदस्य गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस का साथ छोड दिया है। अब हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा पर सबकी नजरें लगी हैं कि वे विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस में ही रहते हैं या अपने लिए कोई और रास्ता निकालते हैं। आनंद शर्मा जी-23 समूह के ताकतवर सदस्य हैं और उनके हिमाचल में कई समर्थक भी हैं।
प्रदेश में छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के साथ उनकी तनातनी चलती रहती थी व वीरभद्र सिंह के विरोधियों को खडा करने में वे पर्दे के पीछे से हमेशा मददगार रहा करते थे। यही नहीं उन्होंने एक समय पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल से भी नजदीकियां बढा ली थीं। कांग्रेस आलाकमान ने आंनद शर्मा को प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए गठित संचालन समिति का अध्यक्ष बनाया था।
लेकिन अचानक उन्होंने इस समिति से इस्तीफा देकर प्रदेश के कांग्रेसियों की धुकधुकी बढा दी। उन्होंने इस्तीफे की जानकारी ट्विटर पर दी व कहा कि वे अपमानित महसूस कर रहे हैं। उन्हें कांग्रेस की गतिविधियों से बाहर रखा जा रहा है। चुनावों से पहले इस तरह सार्वजनिक मंच पर अपने इस्तीफा देने के बाद प्रदेश में सत्ता में आने का सपना पाल रहे कांग्रेसी स्तब्ध हो गए। उन्हें आनंद शर्मा से इस तरह की कोई उम्मीद नहीं थी। लेकिन शर्मा अपना दांव चल चुके थे।
इसके बाद प्रदेश के कांग्रेसियों ने उनसे मेल मिलाप किया व पिछले सप्ताह वे राजधानी पहुंचे । यहां वे मीडिया से भी रूबरू हुए। उन्होंने दावा किया कि वे 51 साल से कांग्रेस से जुड़े हुए हैं व कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए अब पुराने नेता और युवा नेताओं को मिलकर काम करना होगा। आनंद शर्मा अब राज्यसभा सांसद भी नहीं रहे हैं। दस जनपथ से उनके रिश्तों में खटास आने के बाद उन्हें किसी राज्य से सांसद नहीं बनाया गया हैं।
अगर हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनती है तो उन्हें हिमाचल से राज्यसभा में भेजने का रास्ता साफ हो सकता है। दूसरा रास्ता उनके पास गुलाम नबी आजाद की तरह कांग्रेस इस्तीफा देकर नया क्षेत्रीय दल खडा करने का है। लेकिन उनके पास इतना जनाधार नहीं है कि वे इस तरह का कदम उठाने का जोखिम ले सकें।
उन्होंने पिछले सप्ताह राजधानी में मीडिया से कहा भी कि कांग्रेस की विचारधारा उनके खून में हैं। लेकिन वे इस दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नडडा की तारीफ भी कर गए। उन्होंने कहा कि नड्डा और वे हिमाचल विवि के छात्र रहे हैं। छोटे से प्रदेश से उठकर अगर नड्डा देश दुनिया की सबसे बडी पार्टी के मुखिया बन गए तो यह बड़ी बात है।
तभी से राजनीतिक गलियारों में यह कहा जाने लगा कि आनंद शर्मा का रूझान भाजपा की ओर ज्यादा है और कहीं ऐसा न हो कि चुनावों से बिलकुल ऐन पहले वह ऐसा कुछ कर जाएं या बोल जाएं कि पार्टी को चुनावों में नुकसान हो जाए। राजनीति में कुछ भी संभव हैं। हालांकि पार्टी का एक धड़ा यह भी मानता है कि कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला जिस राह पर चल रहे हैं वह प्रदेश के कुछ कांग्रेसियों को पसंद नहीं हैं। ऐसे में आनंद शर्मा का संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना राजीव शुक्ला के लिए संदेश था।
प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति के एक पदाधिकारी का कहना है कि आनंद शर्मा तो कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य हैं। ऐसे में उन्हें किसी बैठक में बुलाने में प्रदेश कांग्रेस का कोई पदाधिकारी कैसे जोखिम उठा सकता है। कद में वे इतने बडे नेता हैं कि वे जो हुक्म करेंगे प्रदेश कांग्रेस समिति उसका पालन करेगी। वे हुक्म देने वाले नेताओं की कतार में शुमार हैं। बहरहाल जो भी आनंद शर्मा ने जो करना था वे कर चुके हैं।
हालांकि आनंद शर्मा ने राजधानी के अपने दौरे के दौरान यह साफ किया कि प्रदेश में कांगेस को सत्ता में लौटाने के लिए वे भरपूर काम करेंगे लेकिन टिकट अच्छी छवि व आम संगठन की सहमति वाले प्रत्याशियों को दिया जाना चाहिए। संभवत: हिमाचल में चुनाव का बिगुल अक्तूबर महीने में बज जाएगा और नवंबर के आखिर में मतदान होने की संभावना है। ऐसे में आनंद शर्मा क्या कदम उठाते है और क्या बोलते है, वही तय करेंगे कि आजाद के बाद वे कौन सा रास्ता अख्तियार करने वाले हैं।