Aurangzeb Haveli: उत्तर प्रदेश के आगरा में 17वीं सदी की मुबारक मंजिल जिसकी पहचान एक मुगल विरासत स्थल के रूप में भी है। जिसको औरंगजेब की हवेली के नाम से भी जाना जाता है। उसको राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा स्मारक की सुरक्षा के लिए एक अधिसूचना जारी करने के तीन महीने बाद ही ध्वस्त कर दिया गया था। स्थानीय निवासियों ने कहा कि विध्वंस अभियान के बाद साइट से 100 ट्रैक्टर से अधिक मलबा हटाया गया। मुबारक मंजिल का इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका विवरण ऑस्ट्रियाई इतिहासकार एब्बा कोच की पुस्तक ‘द कंलीट ताज महल एंड द रिवरफ्रंट गार्डन्स ऑफ आगरा’ में दिया गया है।

औरंगजेब के शासनकाल के दौरान निर्मित, यह शाहजहां, शुजा और औरंगजेब सहित प्रमुख मुगल हस्तियों के निवास के रूप में कार्य करता था। ब्रिटिश शासन के तहत संरचना को संशोधित किया गया, जो एक सीमा शुल्क घर और नमक कार्यालय बन गया। 1902 तक इसे तारा निवास के नाम से जाना जाता था। सितंबर में राज्य पुरातत्व विभाग ने एक अधिसूचना जारी कर साइट को एक महीने के भीतर संरक्षित स्मारक घोषित किए जाने पर आपत्तियां मांगी थीं, लेकिन कोई आपत्ति नहीं जताई गई। दो सप्ताह पहले लखनऊ के अधिकारियों ने संरक्षण उपाय शुरू करने के लिए साइट का दौरा किया। हालांकि, उनके दौरे के तुरंत बाद विध्वंस शुरू हो गया, जिससे संरचना खंडहर हो गई।

स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया कि बिल्डर ने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से यमुना के किनारे साइट के पास एक पुलिस चौकी होने और आपत्तियों के बावजूद तोड़फोड़ की। स्थानीय निवासी कपिल वाजपेयी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि मैंने अधिकारियों से कई शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई और तोड़फोड़ जारी रही। अब तक, 70% संरचना नष्ट हो चुकी है। हम हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करने की योजना बना रहे हैं।

आगरा के डीएम अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने पुष्टि की कि अधिकारियों को इस मुद्दे की जानकारी है। उन्होंने कहा कि हमने मामले का संज्ञान लिया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और राजस्व विभाग को जांच करने का निर्देश दिया गया है। एसडीएम को साइट का दौरा करने और रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया है। इस बीच, साइट पर कोई और बदलाव नहीं होने दिया जाएगा।

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आर्चीबाल्ड कैंपबेल कार्लाइल की 1871 की रिपोर्ट ने मुबारक मंज़िल की वास्तुकला के बारे में विस्तृत जानकारी दी। साइट पर एक संगमरमर की पट्टिका से संकेत मिलता है कि इसे औरंगज़ेब ने सामूगढ़ की लड़ाई में अपनी जीत के बाद बनवाया था। इतिहासकार राजकिशोर राजे ने कहा कि औरंगज़ेब ने उसी लड़ाई में अपनी जीत की याद में दारा शिकोह के महल का नाम बदल दिया।

आगरा के 1868 के नक्शे में मुबारक मंज़िल को पंटून पुल के पास दिखाया गया है, जहां वर्तमान में लोहे का पुल है। ब्रिटिश शासन के दौरान, ईस्ट इंडियन रेलवे ने इसे माल डिपो के रूप में इस्तेमाल किया। संरचना का लाल बलुआ पत्थर का आधार, धनुषाकार निचली मंजिलें और मीनारें मुगल और ब्रिटिश वास्तुशिल्प प्रभावों का मिश्रण दर्शाती हैं।

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