आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के साथ चल रही लड़ाई उस वक्त और गरम हो गई जब रविवार को उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अगुआई में प्रधानमंत्री निवास की ओर कूच कर रहे 52 विधायकों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस घटना से केंद्र की ओर से 14 विधेयकों को वापस लौटाने का विवाद कमजोर पड़ गया। ये विधेयक नियमों को दरकिनार करके पिछले साल विधानसभा में पारित किए गए थे।

शुक्रवार को मुख्यमंत्री केजरीवाल के ट्वीट से लोगों को पता चला कि केंद्र सरकार ने ये विधेयक लौटा दिए हैं। हालांकि राजनिवास की ओर से विधेयक लौटाने की खबर को गलत बताया गया, लेकिन इस खंडन पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया और हंगामा चलता रहा। दूसरे दिन विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने बाकायदा संवाददाता सम्मेलन बुलाकर सफाई दी कि किस तरह आप के नेता बिना किसी बात के मुद्दा बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि विधेयक विधानसभा में रखते समय नियमों को क्यों नहीं लागू किया गया। गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल वे सभी काम करने पर उतारू रहते हैं जो उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। शनिवार को संगम विहार के विधायक दिनेश मोहनिया की नाटकीय गिरफ्तारी और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ गाजीपुर मंडी में हुए विवाद ने आप नेताओं को केंद्र सरकार पर हमला करने का एक और बहाना दे दिया।

इसी के तहत रविवार सुबह मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निवास पर आप विधायक दल की बैठक हुई और उसके बाद उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अगुआई में विधायकों ने प्रधानमंत्री निवास पर गिरफ्तारी दी। इस मुद्दे से विधेयकों के विवाद का कोई संबंध नहीं है, लेकिन दिल्ली सरकार के अधिकारों से जुड़ा मामला तो है ही। आप नेताओं का मानना है कि अगर दिल्ली पुलिस उनके नियंत्रण में होती तो डेढ़ साल से भी कम समय में आठ विधायकों को जेल नहीं भेज पाती। केजरीवाल दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा भी दिलाना चाहते हैं और इसके लिए वे कई बार रायशुमारी कराने की मांग कर चुके हैं। संविधान में इस तरह की रायशुमारी का कोई प्रावधान न होने के कारण लोग उनकी मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है इसलिए उसे ज्यादातर फैसले केंद्र सरकार के प्रतिनिधि उपराज्यपाल को विश्वास में लेकर ही करने पड़ते हैं। दिल्ली विधानसभा में वे विधेयक जिनमें सरकारी फंड से पैसे खर्च होते हैं, उन्हें केंद्र की इजाजत के बिना पास करना तो दूर, पेश भी नहीं किया जा सकता।

पिछली बार 13 फरवरी 2014 को जनलोकपाल बिल के दूसरे रूप को बिना केंद्र की इजाजत विधानसभा में पेश करने से रोकने के लिए उपराज्यपाल ने विधानसभा को संदेश भेजा, जिससे नाराज होकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देते वक्त केजरीवाल ने कहा था कि दोबारा सरकार में आने के 24 घंटे के भीतर वे रामलीला मैदान में विधानसभा सत्र बुलाकर इसे पास करेंगे। इस बार उपराज्यपाल ने उन गैर-वैधानिक विधेयकों को सदन में रखे जाने से रोकने के लिए अपना संदेश विधानसभा को भेजने के बजाए अपनी टिप्पणी के साथ केंद्र सरकार को भेज दिया था। जिसमें कहा गया था कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार की इजाजत के बिना 14 विधेयकों को पास किया गया है। इसमें वे 12 विधेयक भी हैं जिनमें सरकारी बजट से पैसे खर्च होने हैं। ऐसे विधेयकों को पेश करने के लिए पहले केंद्र सरकार से इजाजत लेना जरूरी है अन्यथा वे अवैध हो जाते हैं।