उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब छह महीने से कुछ ज्यादा समय ही बचा है। इस बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने विधानसभा में पार्टी नेता लालजी वर्मा और उत्तर प्रदेश के पूर्व बसपा अध्यक्ष राम अचल राजभर को पंचायत चुनाव के दौरान पार्टी-विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में दल से निकाल दिया।
मायावती के इस फैसले के चलते 2017 के विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में 19 जीतने वाली बसपा के पास मौजूदा समय में सिर्फ 7 विधायक ही बचे हैं। इनमें भी एक विधायक मुख्तार अंसारी इस वक्त जेल में है। पार्टी से निकाले जाने के बाद वर्मा ने कहा,‘‘ मुझे खुद नहीं समझ में आ रहा है कि मुझे पार्टी से क्यों निकाला गया हैं? मैं कोरोना से बीमार होकर पीजीआई में इलाज करा रहा था।’’ दरअसल, राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि वर्मा और राजभर दोनों समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं के संपर्क में हैं, लेकिन वर्मा ने इन चर्चाओं को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मायावती उनसे सभी मतभेदों को खत्म करेंगी।
लालजी वर्मा अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट से पांच बार के विधायक है, वहीं राजभर अंबेडकर नगर के ही अकबरपुर क्षेत्र से पार्टी विधायक हैं। मौजूदा समय में राजभर के पास बसपा में कोई पद नहीं है, लेकिन वे पहले पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं। वर्मा की तरह ही वे पिछली बसपा सरकारों में मंत्रीपद संभाल चुके हैं। बसपा ने इन दोनों नेताओं को निकालने के साथ ही ऐलान किया कि विधानसभा में शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली वर्मा की जगह लेंगे। आलम आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर से पार्टी के दो बार के विधायक हैं।
क्या बोले निकाले गए विधायक?: लालजी वर्मा ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अंबेडकरनगर के ही एक नेता घनश्याम सिंह खरवाड़ ने मायावती को उनके बारे में बहकाया है। उन्होंने कहा, “खरवाड़ ने बहनजी को बताया कि मैंने पंचायत चुनाव में पार्टी के खिलाफ काम किया और दूसरी पार्टी में शामिल होने वाला हूं। पहली बात तो यह कि मैं कोरोना की वजह से लखनऊ के अस्पताल में था और दूसरा मैं अब भी खुद को बसपा नेता मानता हूं। खरवाड़ का प्रत्याशी चुनाव हार गया, इसलिए अपनी हार छिपाने के लिए उन्होंने यह सब किया।” उन्होंने कहा कि वे सब कुछ स्पष्ट करने के लिए मायावती से मिलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब तक उन्हें मौका नहीं मिला है। उन्होंने आगे बसपा सुप्रीमो से मिलने की उम्मीद जताई।
उधर बसपा से निकाले गये राम अचल राजभर ने एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में कहा कि मुझे निकाले जाने की वजह के बारे में कोई जानकारी नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ मैं इस बारे में तभी कुछ बता सकता हूं जब मुझे कुछ मालूम होगा।’’ राजभर ने कहा, ‘‘मैं पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता हूं और हमेशा पार्टी के वफादार सिपाही की तरह रहूंगा। मैं बहन जी को एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाने के लिये पार्टी में कार्य करता रहूंगा।”
पार्टी के इन बडे़ नेताओं के निष्काषन पर बड़े नेता टिप्पणी करते से बचते नजर आए। एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,”केवल बहन जी (मायावती) ही इन दोनों नेताओं के निकाले जाने की वजह जानती हैं। दोनों पार्टी के पुराने और कद्दावर नेता हैं, अब निकाले जाने की क्या वजह है, नहीं मालूम।”
पहले भी बसपा से निकल दूसरी पार्टियों में जा चुके हैं कद्दावर नेता: बता दें कि जून 2016 में इसी तरह बसपा के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्या ने भी पार्टी छोड़ दी थी और मायावती पर दलितों को धोखा देने और पार्टी टिकट के लिए पैसे लेने का आरोप लगाया था। इसके अलावा बसपा के ओबीसी नेता दारा चौहान और धर्मपाल सैनी ने भी पार्टी छोड़ दी थी। मई 2017 में बसपा ने राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी को भी पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने के लिए दल से निकाल दिया था। उन पर वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप भी लगे थे। इस बीच मौर्या ने तो भाजपा का दामन थाम लिया और अब भाजपा सरकार में मंत्री हैं। जबकि सिद्दीकी कांग्रेस का हिस्सा हैं।