मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के पर कतर ज्योतिरादित्य सिंधिया की हैसियत बढ़ाई है आलाकमान ने। चौहान का चौथा मुख्यमंत्री-काल पहले के तीन कार्यकालों से एकदम भिन्न है। पहले तो आलाकमान इस पक्ष में ही नहीं था कि उन्हें सूबे की सियासत में रहने दिया जाए। सरकार के पतन के बाद उन्हें विधायक दल का नेता नहीं बनाने से यह साफ हुआ था।
उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना केंद्र की सियासत में रचने बसने का इशारा किया था। यही वजह है कि ज्योतिरादित्य समर्थक बाईस कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे के बाद भी चौहान को भाजपा विधायक दल का नेता आखिरी वक्त चुना गया। इससे पहले तो नरोत्तम शर्मा, नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजयर्गीय के नाम उछले थे।
पर जोड़-तोड़ और पार्टी के ज्यादा विधायकों के अपने पक्ष में होने के दम पर चौहान बाजी मार ले गए। कई अपने करीबियों को चाहकर भी मंत्री नहीं बना पाए विभागों के बंटवारे में भी सिंधिया खेमा भारी पड़ा। मंत्रियों के चयन से लेकर विभागों के बंटवारे तक के लिए आलाकमान के दिल्ली दरबार की कई बार परिक्रमा कर दुखी जरूर हुए होंगे।
(प्रस्तुति : अनिल बंसल)