पिता और पुत्र
एके एंटनी ने कहा है कि बेटे अनिल एंटनी के भाजपा में शामिल होने से वे बेहद आहत हैं। एंटनी की गिनती कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में होती है। वे केरल के मुख्यमंत्री और देश के रक्षामंत्री रह चुके हैं। लेकिन, बेटा अनिल एंटनी तो पिछले काफी समय से भाजपा के संपर्क में था। अनिल एंटनी को पार्टी में शामिल कर भाजपा का आलाकमान बेहद उत्साहित है। केरल में यों संघ लंबे अरसे से काम कर रहा है। पर भाजपा अभी तक इस सूबे में कोई चुनावी सफलता हासिल नहीं कर पाई। एक बार पार्टी के कद्दावर नेता ओ राजगोपाल ने जरूर त्रिवेंद्रम सीट पर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी।
कहने को तो 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 140 में से 115 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उसे वोट तो 11 फीसद से ज्यादा मिले पर सीट कोई नहीं मिल पाई। यों पलक्कड़ में मेट्रोमैन ई श्रीधरन ने बेहतर प्रदर्शन कर 35 फीसद से ज्यादा वोट पाए थे पर वे कांग्रेस के उम्मीदवार से हार गए थे। सूबे के पुराने नेता वी मुरलीधरन को भाजपा ने 2018 में महाराष्ट्र से राज्यसभा में भेजा था। वे इस समय मोदी सरकार में मंत्री हैं। ओ राजगोपाल भी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे थे।
दरअसल, भाजपा की मुश्किल यह है कि केरल में ईसाई और मुसलमान आबादी खासी है। यहां हिंदुत्व का नारा नुकसानदेह रहता है। तभी तो पार्टी ने अपने विस्तार कार्यक्रम में अनिल एंटनी को शामिल कर ईसाई समुदाय में पैठ बढ़ाने का दांव चला है। इससे पहले एपी अब्दुल्ला कुट्टी भी भाजपा में आ चुके हैं। पिछले दिनोंं जी रमन नैयर पार्टी में आए तो इसरो के पूर्व अध्यक्ष माधवन नायर को भी साथ लाए थे। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे टाम वडक्कन भी ईसाई हैं। वे भी अब भाजपाई हैं। चर्चा तो यह भी है कि भाजपा डोरे तो शशि थरूर पर भी डाल रही है।
मुश्किल डगर
कर्नाटक में भाजपा को दक्षिण के अपने इकलौते दुर्ग को बचाने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। कहने को येदियुरप्पा अभी पार्टी के सिरमौर बने हैं पर उनके करीबी नेता तो एक-एक कर लगातार भाजपा छोड़ रहे हैं। किसी से छिपा नहीं है कि येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद पार्टी आलाकमान के दबाव में छोड़ा था। बसवराज बोम्मई भी उनके पसंदीदा नहीं हैं। होते तो येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र को अपनी सरकार में मंत्री बना देते। येदियुरप्पा का दूसरा बेटा राघवेंद्र लोकसभा सदस्य है। विजयेंद्र अभी कर्नाटक भाजपा के उपाध्यक्ष हैं और उन्हीं को येदियुरप्पा का सियासी उत्तराधिकारी माना जाता है।
दक्षिण के किसी राज्य में पहली बार भाजपा को सत्ता में लाने का श्रेय येदियुरप्पा को ही दिया जाता है। उन्होंने ही जोड़ तोड़ कर कांग्रेस और जनता दल (एस) के विधायकों की बगावत कराकर अपनी सरकार बनाई थी। लेकिन मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद लिंगायत समाज के सबसे प्रभावशाली नेता माने जाने वाले येदियुरप्पा के समर्थकों में निराशा बढ़ गई। ईश्वरप्पा, वेल्लड और सीटी रवि जैसे नेता तो पहले से ही येदियुरप्पा की जड़ें खोदते रहे हैं। नतीजतन अब तक भाजपा और जनता दल (एस) के दर्जनों नेता इस्तीफे देकर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
येदियुरप्पा विरोधी खेमा इसके पीछे येदियुरप्पा का हाथ होने का आरोप लगाता है तो येदियुरप्पा समर्थक अपनी लगातार हुई उपेक्षा को वजह बता रहे हैं। इस्तीफा देने वालों में गोपाल कृष्ण, पुतन्ना, बाबूराव चिंचनसुर, ए मंजुनाथ, मोहन लिंबिकाई, यूबी बनाकर, नंजुदस्वामी, वीएस पाटिल, एएच विश्वनाथ, एच नागेश आदि शामिल हैं। कहने को कर्नाटक में चुनावी मुकाबला तिकोना ही होगा। पर, असली लड़ाई तो सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के बीच ही तय दिख रही है।
उम्मीद-ए-आजम
आजम खान ने वीडियो संदेश में अपनी व्यथा कही है। साथ ही मुसलमानों को पढ़ाई पर ध्यान देने की सलाह दी है। अपने, जौहर अब्दुल्ला विश्वविद्यालय के हवाले से उन्होंने कहा है कि शिक्षा का प्रसार करना ही उनका गुनाह बन गया। उन पर ही नहीं उनके सारे परिवार पर असंख्य मुकदमे लगाकर उनका उत्पीड़न किया गया। अपनी गिरफ्तारी के बाद से वे अखिलेश यादव से नाराज हैं। मुश्किल विकल्प की है। कांग्रेस में वे सीधे शामिल नहीं होना चाहते। करीबियों से संकेत मिला है कि अब मायावती उन पर डोरे डाल रही हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में मुसलमान बसपा से अलग होकर सपा के साथ चले गए थे। मायावती अपने वोट बैंक को पुनर्जीवित करना चाहती हैं। वे भाजपा से ज्यादा आलोचक सपा और कांग्रेस की हैं। भाजपा का विरोध न करने के पीछे केंद्रीय एजंसियों की कार्रवाई का खौफ होने की बात को सिरे से नकारा भी नहीं जा सकता। चर्चा तो यह भी है कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले मायावती कांग्रेस से भी हाथ मिला सकती हैं। उन्हें लग रहा है कि सूबे के मुसलमान अब अखिलेश का साथ शायद ही दें।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)
