हरीश रावत और किशोर उपाध्याय दोनों को झटका दे दिया कांग्रेस आलाकमान ने। विधायक दल का नेता कौन बने, इस मामले में दोनों की ही राय को दरकिनार कर दिया। सबसे वरिष्ठ इंदिरा हृदेश को बना दिया प्रतिपक्ष का नेता। अंबिका सोनी और शैलजा ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया। दोनों सोनिया और राहुल का फरमान लेकर पहुंची थीं देहरादून।
विधायकों की बैठक में हरीश रावत समर्थकों ने हालांकि इंदिरा हृदेश को नेता बनाने का विरोध किया। पर अंबिका सोनी ने कोई परवाह नहीं की। हरीश रावत और किशोर उपाध्याय चूंकि विधानसभा चुनाव हार गए सो, वे तो विधायकों की बैठक में बुलाए नहीं गए थे। अंबिका ने बैठक कांग्रेस भवन में बुलाई। वे हरीश रावत से मिलने उनके घर भी नहीं गईं। हां, कांग्रेस भवन में रावत को जरूर अंबिका सोनी की अगवानी के लिए पहुंचना पड़ा। पर उन्हें अंबिका सोनी ने सोनिया और राहुल का पैगाम सुनाया तो पांव तले की जमीन खिसक गई। जब मुख्यमंत्री थे तो अंबिका सोनी को प्रभारी होने के बावजूद कतई तवज्जो नहीं देते थे हरीश रावत। ऐसे में उनसे अपनी पैरवी की उम्मीद किस मुंह से करते। रही किशोर उपाध्याय की बात तो संकट उनकी सूबेदारी पर भी मंडरा रहा है। चर्चा है कि चकराता से चार बार विधायक रह चुके प्रीतम सिंह को सौंपना चाहता है आलाकमान पार्टी की सूबेदारी।
दूर की कौड़ी
लगता है कि मनोहर लाल खट्टर को लेकर भाजपा आलाकमान असमंजस में है। हरियाणा के मुख्यमंत्री को बदलने से लेकर मंत्रिमंडल में फेरबदल तक की चर्चाएं तेज हैं। आलाकमान को समझ आने लगा कि खट्टर के मुख्यमंत्री रहते अगला विधानसभा चुनाव शायद ही जीत पाए पार्टी। लिहाजा कई स्तर पर कवायदें तेज हैं। एक फार्मूला किसी जाट नेता को खट्टर के साथ उपमुख्यमंत्री बनाने का हो सकता है तो दूसरा उन्हें बदल देने का। कैप्टन अभिमन्यु की खुल सकती है उप-मुख्यमंत्री के रूप में लाटरी। अभी भी सबसे ज्यादा महकमे उन्हीं को दे रखे हैं खट्टर ने। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से भी निकटता है उनकी। जबकि अनिल बैजल और राम विलास शर्मा अपनी वरिष्ठता की अनदेखी से पहले से ही नाखुश चल रहे हैं।
खट्टर के विकल्प के तौर पर एक खेमा आचार्य देवव्रत का नाम भी चला रहा है। फिलहाल वे हिमाचल के राज्यपाल हैं। पर मूल रूप से तो हरियाणवी ठहरे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खट्टर की तरह ही वे भी करीबी माने जाते हैं। गुरुकुल के प्राचार्य के नाते उनकी छवि भी उजली रही है। फिलहाल तो भाजपा के सामने संकट खट्टर की कार्यशैली के प्रति अपने ही विधायकों की नाराजगी ने बढ़ाया है। बेशक आरएसएस का पीठ पर हाथ होने के चलते विधायकों की बगावत की हिम्मत नहीं हो सकती और खट्टर आराम से कार्यकाल पूरा करने की स्थिति में हैं। पर चिंता तो अगला चुनाव जीतने की खाए जा रही है केंद्रीय नेतृत्व को।