साख दांव पर

कहने को तो विधानसभा की एक सीट ठहरी। पर धौलपुर है तो राजस्थान की मुख्यमंत्री के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा होगा इस सीट का उपचुनाव। एक तो धौलपुर की वे महारानी हैं। ऊपर से लोकसभा सीट पर पहले उनका और अब उनके बेटे का कब्जा है। पर भाजपा ने जिस शोभा रानी को उम्मीदवार बनाया है वह लोगों को गले नहीं उतर रही। शोभा रानी के पति बीएल कुशवाहा बसपा से इसी सीट से पिछला चुनाव जीते थे। पर हत्या के एक मामले में उम्र कैद की सजा हो गई तो विधानसभा की सदस्यता छिन गई। उपचुनाव की नौबत भी इसी वजह से आई है। मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश से सटा है यह इलाका। भाजपा यहां मजबूत स्थिति में नहीं है। तभी तो कुशवाहा की पत्नी को भगवा चोला पहना कर नाक बचाने की कवायद की गई है। जहां तक वसुंधरा सरकार के कामकाज का सवाल है, उनकी कार्यशैली से तो भाजपा का आलाकमान भी खुश नहीं। ऊपर से उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों ने ओम माथुर का रुतबा बढ़ा दिया है। राजस्थान में जड़ें रखने वाले संघी माथुर यूपी के प्रभारी उपाध्यक्ष ठहरे। वे केंद्र की सियासत छोड़ सूबे की सियासत में लौटने के इच्छुक रहे हैं। उधर पार्टी आलाकमान और आरएसएस के नेतृत्व दोनों को लगता है कि ऐसे हालात में दोबारा पार्टी का सत्ता में लौटना हंसी खेल नहीं होगा। सो, ओम माथुर को माना जा रहा है विकल्प। धौलपुर का नतीजा अनुकूल नहीं रहा तो अमित शाह वसुंधरा को तंग कर सकते हैं। इसी डर से वसुंधरा खेमे ने उपचुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। इलाके में मुसलमान मतदाता भी खासी तादाद में हैं। उन्हें पटाने का जिम्मा पूर्व विधायक सगीर अहमद के हवाले है। इस चक्कर में उन्हें वसुंधरा ने राज्यमंत्री जैसी हैसियत भी दे दी है। कुशवाहा और मुसलमान मिलकर पार्टी को जीत दिला सकते हैं। हैरानी की बात है कि कांग्रेस के उम्मीदवार के बारे में सोच ही नहीं रहे भाजपाई। कांग्रेस भी तो इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। ऊपर से उपचुनावों का रिकार्ड पार्टी के अनुकूल रहा है। वसुंधरा के मौजूदा कार्यकाल में विधानसभा के चार सीट के उपचुनाव हो चुके हैं। पर सत्तारूढ़ पार्टी को सफलता एक सीट पर ही मिल पाई।

असंतोष की आहट

हरियाणा में ढाई साल पूरे कर चुकी है मनोहर लाल खट्टर की सरकार। लेकिन भाजपाई कुनबे में खटपट की खबरें थमने का नाम नहीं ले रहीं। पार्टी आलाकमान और आरएसएस के शिखर नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। संघ की पहल पर प्रधानमंत्री ने प्रशासनिक अनुभव के मामले में एकदम शून्य मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बनवाया था। पर वे धमक नहीं दिखा पा रहे। उनके मंत्री ही टीका-टिप्पणी करने लगे हैं कि वे पूरे पांच साल मुख्यमंत्री बने रहे तो सत्ता में वापसी नहीं कर पाएगी पार्टी। हुड्डा सरकार के कार्यकाल से तुलना कर रहे हैं मनोहर लाल सरकार के कामकाज की। पिछले दिनों गुरुग्राम में हुई पार्टी की बैठक में खट्टर सरकार के फैसले और नौकरशाही का रवैया निशाने पर थे। लोगों के बीच नाराजगी बढ़ने की आशंका भी जताई गई। दूसरे सूबों के नुमाइंदों को हरियाणा में तरजीह मिलने पर भी विरोध हुआ। उधर पुराने नेताओं ने सत्ता में हिस्सेदारी की मांग कर सरकार की मुसीबत बढ़ा दी है। पार्टी के सूबेदार सुभाष बराला और संगठन मंत्री सुरेश भट्ट के साथ आलाकमान के दूत वी सतीश ने दूसरे पुराने नेताओं की मौजूदगी में मंथन किया। बैठक में मलाईदार पदों पर अपने लोगों के समायोजन की मांग उठी। बैठक में सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार होने की शिकायतें भी सामने आई। मंत्रियों पर चहेतों को लाभ पहुंचाने और कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने के आरोप लगे। बैठक के निचोड़ को खट्टर के लिए शुभ संकेत कौन मानेगा।