शिवसेना के सांसद संजय राउत ने जेल से बाहर आकर जिस तरह से तेवर दिखाए उससे हर कोई हैरान है। कहा कि उपमुख्यमंत्री फडणवीस के नेतृत्व में महाराष्ट्र की सरकार ने कुछ अच्छे काम किए हैं। फिर बताया कि जेल में उन्हें तकलीफ तो जरूर हुई पर वे दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मुलाकात करेंगे। इससे पहले शिवसेना के अखबार “सामना” ने भी फडणवीस की तारीफ के पुल बांधे थे।
साथ ही शिंदे पर हमला बोला था और कहा था कि उनकी कुर्सी कभी भी जा सकती है। जनता तो उन्हें सबक सिखाएगी ही। कहावत है कि धुआं तभी निकलता है जब आग लगी हो। तो क्या फडणवीस और शिंदे के बीच अनबन की खबरों को सही मान लेना चाहिए। फडणवीस पर हमला तो राकांपा ने भी कभी नहीं बोला। पार्टी के विधायक दल के नेता अजित पवार सदन में भी कभी फडणवीस की आलोचना नहीं करते।
उधर, भाजपाई दावा कर रहे हैं कि राकांपा के कई विधायक उनके संपर्क में हैं। ऐसी उलटबासियां ही तो अटकलों को जन्म देती हैं। अजित पवार पहले भी तो बगावत कर फडणवीस के साथ उपमुख्यमंत्री बन बैठे थे। पवार की सांसद बेटी सुप्रिया सुले से उनके मतभेदों को लेकर भी सियासी हलकों में कानाफूसी निरंतर सुनाई पड़ती ही है। देखना है कि महाराष्ट्र की सियासत कितने रंग बदलती है।
बागियों की बात
दो राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा का सिरदर्द उसके बागियों ने भी बढ़ा रखा है। फर्क इतना है कि गुटबाजी और बगावत हिमाचल प्रदेश में तो सार्वजनिक है पर गुजरात में परदे के पीछे तक ही सीमित है। हिमाचल में तो सारी 68 सीटों के लिए एक ही चरण में शनिवार को वोट पड़ेंगे। पर, गुजरात चुनाव में अभी वक्त है।
भाजपा आलाकमान इन दोनों राज्यों की सत्ता में किसी भी कीमत पर वापसी चाहती है। गुजरात पर तो सारे देश की निगाहें टिकी हैं। जहां पिछले 27 साल से भाजपा ही लगातार सत्ता में है। हिमाचल का रिवाज भिन्न है। भाजपा ने 2017 में कांग्रेस से यहां सत्ता छीनी थी। पर पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा थे प्रेम कुमार धूमल। पार्टी तो 68 में से 44 सीटें जीत गई पर धूमल चुनाव हार गए।
सत्ता मिल गई जयराम ठाकुर को। धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर बेशक केंद्र में मंत्री हैं पर धूमल समर्थकों का आरोप है कि जेपी नड्डा और जयराम ठाकुर ने उन्हें हाशिए पर पहुंचा दिया है। तभी तो पूर्व सांसद कृपाल परमार प्रधानमंत्री के टेलीफोन करने पर भी चुनाव मैदान से नहीं हटे। परमार जैसे भाजपा के करीब दो दर्जन बागी मैदान में हैं।
भाजपा को यहां डर यही सता रहा है कि केजरीवाल की पार्टी का खास असर नहीं। अधिकतर सीटों पर कांग्रेस से सीधा मुकाबला है। आधा दर्जन बड़े नेताओं को तो बगावत पर पार्टी से निकाल भी दिया गया है। भाजपा ने उम्मीदवारों के चयन में हिमाचल और गुजरात दोनों जगह ही जीतने की क्षमता को कसौटी बनाया है।
बड़ी संख्या में अपनों की अनदेखी कर दलबदलुओं को टिकट दिए हैं। गुजरात में तो पार्टी ने पिछले उम्मीदवारों में से 40 फीसद के टिकट काट दिए। जिनके टिकट कटे, उनमें से ज्यादातर ने सूची आने से पहले खुद ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की।
सियासी पकड़ को तरजीह देने की जगह पार्टी ने कई सीटों पर गैर सियासी उम्मीदवार उतार दिए। व्यवस्था विरोध का डर जो सता रहा होगा। मसलन रविंद्र जडेजा की पत्नी की उम्मीदवारी। जिनके टिकट कटे उनमें पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, पूर्व मंत्री सौरभ पटेल और भूपेंद्र सिंह चूडासमा जैसे कद्दावर भी हैं।
अग्निपरीक्षा
अखिलेश यादव के लिए अग्निपरीक्षा होगा उपचुनाव। मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण होगा उपचुनाव। रामपुर में सपा के मोहम्मद आजम खान और खतौली में भाजपा के विक्रम सैनी को अयोग्य घोषित कर दिए जाने से आई है उपचुनाव की नौबत। खतौली की सीट अखिलेश ने सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के लिए छोड़ दी है।
रामपुर की लोकसभा सीट उपचुनाव में भाजपा ने सपा से पहले ही झटक ली थी। अब विधानसभा सीट भी छीनना चाहेगी सूबे की सत्तारूढ़ पार्टी। नजर उसने मैनपुरी पर भी गड़ाई है। जहां अखिलेश ने चाचा शिवपाल के सपनों पर पानी फेरते हुए अपनी पत्नी डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया है।
रामपुर में उम्मीदवार जाहिर है कि मुसलमान ही होगा और वह भी आजम खान की पसंद का। पर खुद आजम तो लड़ नहीं सकते। बेटा अब्दुल्ला इसी जिले की दूसरी सीट से विधायक हैं ही। परिवार पर बात आई तो उनकी पत्नी जरूर हो सकती हैं उम्मीदवार, जो पहले भी राज्यसभा सदस्य रह चुकी हैं। इन तीनों सीटों पर मायावती की भूमिका भी अहम होगी। उनके उम्मीदवार लड़े तो सपा को लाभ होगा अन्यथा दिन-रात एक करना होगा अखिलेश यादव को अपने दोनों गढ़ बचाने के लिए।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)