महाराष्ट्र में मंत्रिमंडल का विस्तार मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए जी का जंजाल बन गया। उनके लिए ही क्यों बगावत तो उनके सहयोगी दलों कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के भीतर भी कम नहीं हुई। तीन दलों की साझा सरकार चलाना टेढ़ी खीर तो है भी। मंत्रालयों के बंटवारे में भी कम पसीना नहीं निकला ठाकरे का। कई विरोधाभास भी दिखे। मसलन, पृथ्वीराज चव्हाण की मंत्री पद की हसरत अधूरी रह गई तो संग्राम थोप्टे के समर्थकों ने पुणे के कांग्रेस दफ्तर में ही कोहराम मचा दिया। पृथ्वीराज चव्हाण को मौका नहीं मिलने का राज महाराष्ट्र में किसी से छिपा नहीं। शरद पवार से उनका छत्तीस का आंकड़ा है।
बहरहाल वे मुख्यमंत्री रह चुके हैं और नैतिकता कहती है कि जो मुख्यमंत्री रहा हो उसे मंत्री पद की हसरत क्यों पालनी चाहिए? पर ऐसी हसरत अब इक्के-दुक्के अपवाद को छोड़ सभी पालने लगे हैं। तभी तो अशोक चव्हाण खुशी-खुशी मंत्री बन बैठे। कांग्रेस में तो बगावत का आलम यहां तक दिखा कि सोनिया गांधी को सूबे के तमाम कद्दावर नेताओं को दिल्ली बुलाकर समझाना पड़ा। शिवसेना में भी कई नेताओं ने मुंह बनाए। और तो और उद्धव के सबसे भरोसेमंद राज्यसभा सांसद संजय राउत ने भी अपने भाई सुनील राउत को मंत्री पद नहीं मिलने पर नाराजगी दिखाई। बीड़ के राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायक प्रकाश सोलंकी ने तो विधानसभा से इस्तीफे की ही धमकी दे डाली।
धनंजय मुंडे और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने उन्हें समझा-बुझाकर शांत कराया। शिव सेना की सांसद भावना गवली ने भी अपनी पार्टी के मंत्रियों के चयन पर सार्वजनिक रूप से नाराजगी जता दी। असलम शेख और विश्वजीत कदम को मंत्री बनाने पर कांग्रेस पार्टी में असंतोष ज्यादा हुआ। उद्धव ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को कैबिनेट मंत्री बना कर परिवारवाद के प्रति मोह को छिपाया नहीं। पर आदित्य के नाम पर किसी ने नुक्ताचीनी नहीं की। अजीत पवार ने देवेंद्र फडणवीस के साथ अंधेरे में शपथ ली थी तो इस बार उसी पद के लिए उजाले में शपथ ली। गठबंधन को अब जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर तेजी से अमल करने की चुनौती से तो निपटना ही होगा, साथ ही सत्ता छिनने से बुरी तरह आहत भाजपा के गठबंधन में फूट डालने के प्रयासों से भी चौकस रहना होगा।