राजनीति में वंशवाद के खिलाफ विलाप पहले समाजवादी करते थे। निशाने पर कांग्रेस पार्टी ही होती थी। फिर यही राग जनसंघी अलापने लगे। नया अवतार भाजपा आया तो भी राग छोड़ा नहीं। हालांकि मंडल युग के बाद समाजवादी तो खुद वंशवादी बन बैठे। नतीजतन कांग्रेसियों के साथ साथ भाजपाइयों को अब समाजवादी भी मिल गए कोसने को। यह बात अलग है कि वक्त के साथ साथ भाजपाई खुद भी वंशवादी होते गए। लेकिन कांग्रेस को कोसना फिर भी नहीं छोड़ा। पर उपदेश कुशल बहुतेरे के अंदाज में। राहुल गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली तो फिर लगे उपदेश देने। भूल गए कि भाजपा में भी तो उदाहरणों की भरमार है। कल्याण सिंह हों या प्रेम कुमार धूमल, वसुंधरा राजे हों या रमण सिंह। प्रमोद महाजन हों या गोपीनाथ मुंडे। जो कुनबे को सियासत में नहीं ला पाए सत्ता का फायदा तो उनके वंशज भी कम नहीं उठा रहे। नेताओं की देखा देखी अब अफसरों को भी लुभा रहा है सत्ता का चस्का। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को ही देख लीजिए।

कहने को 1968 बैच के रिटायर पुलिस अफसर डोभाल महज राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। पर किससे छिपा है कि मोदी सरकार के तमाम अहम फैसलों को वही कर रहे हैं प्रभावित। एक तरह से रक्षा, विदेश और गृह तीनों मंत्रालयों को जैसे वे ही चला रहे हों। विवेकानंद इंटरनेशनल फांउडेशन नामक एनजीओ बनाया था 2009 में। अब बेटा शौर्य भी सियासी गलियारों में सक्रिय हो गया है।

पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट शौर्य का भी अपना एनजीओ है- इंडिया फाउंडेशन। उनके एनजीओ का जलवा अद्भुत है। सुरेश प्रभु, निर्मला सीतारमण, एमजे अकबर और जयंत सिन्हा जैसे मंत्री हैं इस संगठन में। पिछले दिनों तो शौर्य उत्तराखंड प्रदेश भाजपा की कार्य समिति की बैठक में देहरादून जा पहुंचे थे। साफ है कि अब उन्हें भी सत्ता से मोह होने लगा है। पिता की हैसियत और प्रधानमंत्री से निकटता का ही नतीजा है कि पार्टी के कद्दावर नेता शौर्य की परिक्रमा करते नजर आए। डोभाल उत्तराखंड के पौड़ी के ही मूल निवासी हैं। बेटे को फलते-फूलते देखकर कौन पिता खुश न होगा।