फिर हैसियत बढ़ गई है कांग्रेस में अशोक गहलोत की। राहुल गांधी ने गहलोत को संगठन के प्रभारी के दायित्व के साथ पार्टी का महासचिव यों ही नहीं बनाया। बेशक राजस्थान के भाजपा नेता इससे खुशफहमी पाल रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में उनके सामने अब बड़ी चुनौती नहीं होगी। लेकिन भाजपा का आलाकमान तो गहलोत के कौशल से चिंतित है। गुजरात में उन्हीं के प्रभारी रहते विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को नाकों चने चबवाए थे। अहमद पटेल को राज्यसभा चुनाव में हार से बचाने में भी गहलोत की भूमिका कम नहीं थी। अमित शाह की रणनीति पर पानी फेर दिया था उन्होंने।

गहलोत लगातार कहते रहे हैं कि गुजरात में नरेंद्र मोदी आखिरी वक्त में भावनात्मक कार्ड खेल कर ही अपनी लाज बचा पाए। दरअसल राहुल को गहलोत की सादगी ज्यादा पसंद है। कांग्रेस के राजस्थान के सूबेदार सचिन पायलट भी गहलोत के जयपुर से दिल्ली जाने पर राहत महसूस कर रहे होंगे। पायलट के लिए अब मैदान खुला है।

यह बात अलग है कि वसुंधरा राजे कांग्रेस में केवल गहलोत से ही घबराती हैं। रही बात भाजपा की तो वह जातीय और सांप्रदायिक कोई भी रंग दे सकती है चुनाव को। संगठन कौशल के मामले में गहलोत बेजोड़ तो हैं ही, सियासत भी धीरज की करते रहे हैं। राजस्थान के तमाम राजनेता उन्हें चाणक्य की संज्ञा यों ही नहीं देते हैं।