पीके को राह नहीं सूझ रही है। पीके यानी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर। विदेश से भारत आए पीके 2014 में तब सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने भाजपा और नरेंद्र मोदी के प्रचार व चुनावी रणनीति का ठेका लिया था। उनकी कंपनी का तो धंधा ही यही है। तब कहा गया था कि अब की बार भाजपा सरकार के बजाए ‘अब की बार, मोदी सरकार’ का नारा उन्हीं की देन था।
बहरहाल उनके पास मतदाताओं को प्रभावित करने का हुनर है या नहीं पर इतना साफ है कि भाजपा की 2014 की जीत ने पीके का कद बढ़ाया था। उसके बाद उन्होंने कांगे्रस और तृणमूल कांगे्रस सहित राज्यों के चुनाव में कई दलों के लिए रणनीति बनाने का काम किया। नीतीश कुमार तो उनसे कुछ ज्यादा ही प्रभावित हुए थे। अन्यथा उन्हें पार्टी में पदाधिकारी क्यों बनाते।
आरसीपी सिंह के मामले में भी नीतीश के इस मिजाज को सबने देखा ही। कैसे, उन्होंने दूसरे सूबे के एक आइएएस अफसर को अपने जिले और जात का होने के कारण किस हद तक सिर चढ़ाया था। रूठे तो अचानक जमीन पर पटक भी दिया। पीके को तो अपने इस मिजाज का स्वाद उन्होंने 2020 में ही चखा दिया था।
मंत्री स्तर का ओहदा तो छीना ही था, पार्टी से भी निकाल दिया था। तभी से पीके कई बार सियासी पारी खेलने की घोषणा कर चुके हैं। भाजपा को छोड़ बाकी सभी दलों की वे कमियां भी गिनाते रहते हैं। नीतीश ने भाजपा से नाता तोड़ा तो पीके ने फौरन बयान दिया कि नीतीश के फैसले का असर राष्ट्रव्यापी नहीं, बिहार तक सीमित रहेगा।
फिर उन्होंने नीतीश द्वारा मोदी का हाथ जोड़कर अभिवादन करने वाली कुछ पुरानी तस्वीरें ट्वीट कर थोड़ी देर बाद खुद ही डिलीट कर दिया। इस बाबत नीतीश से पत्रकारों ने सवाल किए तो नीतीश ने कहा कि हो सकता है कि वे गुप्त रूप से भाजपा की मदद करने के लिए काम कर रहे हों।अन्य राजनीतिक दलों के लिए काम करना उनका धंधा ठहरा। वह जो भी बयान दे रहे हैं, उसका कोई मतलब नहीं है। पीके को सियासी दलों की मदद करते-करते खुद सियासत का चस्का लग गया है। तभी तो गाहे-बगाहे भाजपा और नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ते रहते हैं।
अपनी पार्टी बनाने की दिशा में तो अभी तक कोई कदम बढ़ाया नहीं है, हो सकता है कि विरोधियों पर वार की उनकी रणनीति भाजपा में उनकी दाल गलवा दे। उनका अतीत ही उनकी राह का रोड़ा बन जाता है।
संदेश और सहारा
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों दल अपने-अपने कार्यकर्ताओं व समर्थकों की लामबंदी करने में जुटे हैं। कांग्रेस तो इतना ज्यादा कुछ नहीं कर रही है। लेकिन, भाजपा पिछले एक साल से अपने तमाम अग्रणी संगठनों और मोर्चों के सम्मेलन करने में जुटी हैं।
इन दिनों भाजपा महिला मोर्चा के सम्मेलन विधानसभा हलकेवार हो रहे हैं। पहला सम्मेलन सुजानपुर में हुआ और राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी ने इस सम्मेलन में खास तौर पर शिरकत की। गोस्वामी पूर्व मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल को सहारा भी दे गईं और जयराम सरकार व प्रदेश भाजपा को संदेश भी दे गईं कि वे धूमल के साथ हैं और वे धूमल को ही नेता मानती हैं।
2017 विधानसभा चुनावों में धूमल सुजानपुर से अपना चुनाव हार गए थे। तब से भाजपा के विरोधी खेमे ने धूमल को आगे नहीं आने दिया। उन्हें क्या, उनके खेमे के तमाम नेताओं को हाशिए पर धकेल कर रखा। इनमें इंदु गोस्वामी भी शामिल रहीं। वे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनना चाहती थीं। लेकिन उन्हें बनने नहीं दिया।
आखिर में उन्होंने राज्यसभा सीट हासिल कर ली। उनके साथ तब केवल धूमल ही थे। धूमल सुजानपुर से चुनाव लड़ना चाहते हैं। धूमल चाहते हैं कि वे एक बार जीत जाएं और हार का कलंक मिट जाए। लेकिन उनके आड़े उनकी उम्र आ रही है। ऐसे में कहा जा रहा है कि इंदु गोस्वामी उनकी खैवनहार बनने जा रही हैं। देखते हैं, आगे क्या होता है।
सियासी सपना और कवि कल्पना
हिंदी पट्टी में एक कहावत प्रसिद्ध है-जहां न जाए रवि, वहां जाए कवि। यानी जहां सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंच सकती, वहां कवि की कल्पना पहुंच जाती है। लेकिन आज की छवि प्रबंधन वाली राजनीति में साहित्यिक कल्पना का संबंध मानदेय से जोड़ दिया जाना स्वाभाविक है।
भाजपा से नीतीश कुमार के नाता तोड़ने के बाद बिहार में ‘प्रदेश में दिखा, देश में दिखेगा, मन की नहीं काम की’ जैसे होर्डिंग्स लगने शुरू हो गए। इन पोस्टरों को लेकर कहा गया कि नीतीश कुमार अब राष्ट्रीय राजनीति का रुख करने का संदेश देना चाहते हैं।
एक कार्यक्रम में इन पोस्टर की बाबत पूछे गए एक सवाल पर राज्यसभा सांसद व भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि किसी कवि या लेखक को आप पैसे देंगे तो वो आप के लिए बढ़िया तुकबंदी कर सकता है। सिर्फ तुकबंदी या होर्डिंग से कोई प्रधानमंत्री नहीं बन जाता।
आपका अपने राज्य में प्रभाव घटता जा रहा है और आप 45 पर सिमट गए हैं। आप कभी चिराग पासवान तो कभी भाजपा पर जद (एकी) को कमजोर करने का आरोप लगा कर अपनी कमजोरी छुपाना चाहते हैं। आपसे मजबूत तो ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल हैं जो अपने बूते सरकार चला रहे हैं। सुशील कुमार मोदी ने नीतीश कुमार की राष्ट्रीय मुहिम पर कहा कि वैसे सपने देखने में कोई हर्ज नहीं है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)