अब मुकुल गोयल को इस तरह कुर्सी से रुखसत किए जाने की उम्मीद कतई नहीं रही होगी। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने पुलिस महानिदेशक को एक झटके में हटा दिया। गोयल उत्तर प्रदेश कैडर के आइपीएस अधिकारियों में काफी वरिष्ठ हैं। अभी तो नौकरी भी 21 महीने बची है।
1987 बैच के गोयल अपने पद पर एक वर्ष भी पूरा नहीं कर पाए। अपने मूल कैडर में आने से पहले गोयल ने करीब पांच साल केंद्र में डेपुटेशन पर बिताए थे। हितेश अवस्थी के सेवानिवृत्त होने के बाद गोयल को पिछले साल जून में उत्तर प्रदेश पुलिस की कमान सौंपी गई थी। लेकिन मुख्यमंत्री के साथ उनके सहज और मधुर रिश्ते कभी नजर नहीं आए। इसके पीछे शासन के कुछ आइएएस और आइपीएस अफसरों की लाबिंग का तो असर था ही, संघ के दबाव में नियुक्ति पाना भी था।
चर्चा तो उन्हें हटाने की विधानसभा चुनाव से पहले भी खूब सुनाई पड़ी थी। शायद तब मुख्यमंत्री ने संघ परिवार और पार्टी आलाकमान की नाराजगी मोल लेना ठीक नहीं समझा होगा। एक डर चुनाव आयोग के हस्तक्षेप का भी रहा होगा। हकीकत तो यह है कि लखनऊ का सचिवालय भी नौकरशाहों की अंदरूनी खेमेबाजी से मुक्त नहीं है।
गोयल को हटवाने के पीछे असली भूमिका सूबे के अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी और इस समय कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक बनाए गए देवेंद्र सिंह चौहान की मानी जा रही है। अवस्थी को नौकरशाही में योगी का सबसे प्रिय माना जाता है। मुमकिन है कि वे अगले कुछ दिन में सूबे के मुख्य सचिव बना दिए जाएं। मौजूदा मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र को जल्द ही कोई बड़ा ओहदा मिलने की संभावना जताई जा रही है।
प्रधानमंत्री के प्रिय रहे मिश्रा पिछले साल अपने रिटायर होने से एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव बनाए गए थे। इस पद पर नियुक्ति के साथ ही उनके लिए वैसे तो दो साल का कार्यकाल और सेवा विस्तार घोषित हो गया था। पर तय सेवा विस्तार की सरकारें परवाह करती कहां हैं? इस नीति के हिसाब से तो मुकुल गोयल को भी दो साल तक पद पर बने रहने देना चाहिए था।
खैर, वे तो आका के कोपभाजन होने के कारण हटाए गए पर मिश्रा तो पसंदीदा ठहरे। वे अगर केंद्र में चुनाव आयुक्त बने तो अपना मुख्य सचिव पद छोड़ेंगे ही। जिससे सूबे की नौकरशाही के सबसे बड़े ओहदे पर पहुंचने की अवनीश अवस्थी की राह खुद ही आसान हो जाएगी। इसी को कहते हैं वक्त का फेर।
चुनावी साल के बवाल
चुनावी साल में हिमाचल में कहीं भर्ती के पर्चे लीक हो रहे है तो कहीं खालिस्तानी झंडे लग रहे हैं। ऐसे में आक्रामक प्रचार के लिए मशहूर भाजपा मुश्किल में है कि वह अपना प्रचार अभियान कैसे शुरू करे। हिमाचल में हिंदू-मुसलमान करना भी इतना आसान नहीं है। खालिस्तानियों के नाम पर भी वोट बटोरे नहीं जा सकते।
उल्टे सरकार की ही फजीहत होगी। ऐसे में भाजपा व इसके रणनीतिकार असमंजस में हैं कि शुरूआत कहां से करे। भाजपा ने कुछ लोगों को सर्वे कराने पर लगा रखा है। कुछ और काम कर रहे हैं। लेकिन माहौल नहीं बन रहा है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ही नहीं अब तो प्रधानमंत्री तक का दौरा कराने की कोशिश हो रही है। पिछले छह महीने में हिमाचल में जहरीली शराब का कांड हो चुका है। उसके बाद ऊना में पटाखों के कारखाने में धमाका हो चुका है। इन दोनों मामलों में दो दर्जन के करीब लोगों की मौत हो चुकी है। अब पुलिस भर्ती का पर्चा लीक हो गया है।
नेताओं की सिफारिशों पर तो भर्ती होती रही है और इल्जाम भी लगते रहे हैं। लेकिन लेन-देन के किस्से पहली बार सुनने को आ रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिन भाजपा के लिए मुश्किल भरे होने वाले हैं। बाहर से आए कई विशेषज्ञ इन दिनों प्रदेश की गलियों की खाक छान रहे हैं और प्रदेश भाजपा के हाशिए पर धकेले गए खांटी नेता आराम से मजे फरमा रहे हैं।
हुई बहुत सस्ती शराब…
आम आदमी महंगाई से त्रस्त है वहीं दिल्ली एनसीआर के मदिरा प्रेमियों की बांछें शराब की लगातार घटती कीमतों से खिली हुई हैं। भाग्य विधाता राजनीतिकों ने तीन चीजों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा है। पेट्रोलियम पदार्थ, तंबाकू उत्पाद और मदिरा।
देश भर में एक समान कर प्रणाली की व्यवस्था के बावजूद इन उत्पादों पर हर राज्य अपनी सुविधा और मर्जी से टैक्स लगाने को स्वतंत्र है। तंबाकू उत्पाद और पेट्रोलियम पदार्थ तो महंगे किए जा रहे हैं पर दिल्ली हरियाणा के बीच शराब की कीमतें घटाने को लेकर जंग छिड़ी है।
गुरुग्राम में हालांकि हरियाणा सरकार ने थोक विक्रेता (एल-1) लाईसेंस पहले से दे रखे थे। जो खुदरा कीमत से कम पर शराब की बिक्री वर्षों से 24 घंटे कर रहे थे। पड़ोसी राज्यों दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के राजस्व पर इसका प्रतिकूल असर होने लगा तो अरविंद केजरीवाल ने पिछले साल नवंबर में आबकारी राजस्व बढ़ाने के फेर में शराब विक्रेताओं को 25 फीसद तक की कटौती की इजाजत दे दी।
चार महीने में ही हरियाणा के आबकारी राजस्व पर इसका भयानक असर नजर आया। वहीं तस्करी की शराब से दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के शराब विक्रेता घाटा उठा रहे। योगी आदित्यनाथ तो चाहकर भी इसमें नहीं कूद सकते। सीमा से सटे दर्जन भर जिलों के राजस्व घाटे की चिंता में शराब की कीमत घटाई तो असर अपने ही 75 जिलों के राजस्व पर पड़ेगा। यानी फायदे से ज्यादा घाटे का सौदा साबित होगा इस वार में कूदना।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)