कैप्टन की कीलें
किसान आंदोलन के कारण मजबूत हुई पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार अब अपने ही विधायकों के मुंह फुला कर बैठने से पंक्चर हो गई है। बेशक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अमरिंदर सिंह को ही पंजाब का ‘कैप्टन’ घोषित कर राज्य के मुख्यमंत्री की लाज रख ली है। पर रूठे विधायक अभी माने नहीं हैं। उनके दिल्ली के साथ रिश्ते मजबूत होने की खबरें भी गाहेबगाहे निकलती रहती हैं। जिसका नतीजा यह है कि अभी एक महीना पहले पंजाब के आगामी विधानसभा चुनाव में कैप्टन सरकार के दुबारा आने के दावे करने वाले राजनीतिक विश्लेषक भी अब इस पर किंतु-परंतु करने लगे हैं।
साथ ही शिअद के बसपा के साथ रिश्ता पक्का करने के बाद भी सवाल और गहरे हो गए हैं। रही-सही कसर कर्मचारी संगठन निकाल रहे हैं। वैसे तो कर्मचारी काफी समय से अपनी मांगें पूरी न होने से सरकार से खफा हैं और आरोप लगा रहे हैं कि यह सरकार तो अफसरशाही ही चला रही हैं। पंजाब के कई विधायक भी यह आरोप जड़ चुके हैं। उनका कहना है कि उनके इलाके के छोटे काम करवाने में अफसरशाही आड़े आ रही है। उनका जनता के सामने जाना मुहाल हो गया है।
सफाई कर्मचारियों की अरसे से चल रही हड़ताल के कारण पूरे पंजाब में गंदगी के अंबार लगे हैं। पर सरकार का इस तरफ कोई ध्यान नहीं है। अनुबंध पर कार्यरत शिक्षक भी हड़ताल पर हैं।चुनाव सिर पर हैं। अब सिर्फ किसान आंदोलन के सहारे कुर्सी बरकरार रखने के सपने से जागने का समय आ गया है। अपने लोगों और कर्मचारियों को साधे बिना अमरिंदर की राह बहुत मुश्किल हो जाएगी। पंजाब अपने अधिकारों को लेकर जागरूक प्रदेश है। कैप्टन के लिए मेहनत करने का समय आ गया है।
इंतिहा इंतजार की
हिमाचल प्रदेश से लोकसभा और राज्यसभा के सात सदस्यों में से इंदु गोस्वामी ही एक मात्र महिला सांसद हैं। पहले वह प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्ष भी रही हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में वह भाजपा की ओर से प्रत्याशी थीं। लेकिन भितरघात की वजह से हार गई थी। भाजपा ने तीन दिनों तक राजधानी में आगामी चुनावों को लेकर भाजपा के तमाम संगठनों की बैठकें कीं। मुख्यमंत्री, मंत्री, केंद्रीय मंत्री और सांसद तक इन बैठकों में शामिल हुए। लेकिन राज्यसभा सांसद इंदु गोस्वामी नहीं आई। पिछले तीन दिनों में होटल पीटरहाफ में कोई वाहन आता तो सबकी नजर रहती कि इंदु गोस्वामी उतर रही हैं या नहीं।
कुछ दिन पहले ही उनकी शिकायत स्थानीय भाजपाइयों ने मुख्यमंत्री जयराम से की थी। इल्जाम भी अजीब से लगाए थे कि वे कांग्रेसियों के काम कराती हैं। लेकिन कांग्रेसियों के काम तो मुख्यमंत्री जयराम भी कराते रहे हैं। इंदु गोस्वामी ही नहीं कांगड़ा से लोकसभा सदस्य किशन कूपर भी किसी को नजर नहीं आए। कांगड़ा सबसे बड़ा जिला है। अब भाजपा ही जाने उसका 2022 में क्या होगा।
खलल और खामोशी
हिमाचल कांग्रेस में इन दिनों सन्नाटा छाया हुआ है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, आशाकुमारी और सुधीर शर्मा ने बिखरी कांग्रेस को एक करने व पार्टी पर वर्चस्व जमाने की मुहिम छेड़ी थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर की कुर्सी हथियाने का भी प्रयास हुआ था। कुलदीप सिंह राठौर राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा के करीबी हैं। आनंद शर्मा इन दिनों कांग्रेस आलाकमान के निशाने पर हैं। वह पूरी तरह से खामोश हैं। दूसरी ओर से प्रदेश के कांग्रेसी भी उनको लेकर जुबान नहीं खोलते है।
राठौर को उन्होंने ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया था। ऐसे में वे इतनी आसानी से उन्हें इस पद से हटने भी नहीं देंगे। समझा जा रहा है कि राठौर पर आनंद शर्मा का वरदहस्त अभी भी है। कांग्रेस में आनंद शर्मा अभी पूरी तरह से निपटे नहीं है। ऐसे में विरोधियों की राठौर को हटाने की मुहिम शायद ही सफल हो।
इंदिरा हृदयेश के बिना
उत्तराखंड कांग्रेस की दिग्गज नेता इंदिरा हृदयेश के निधन से राज्य की राजनीति में एक बड़ा शून्य पैदा हो गया है। वे राज्य में महिला नेताओं का बड़ा चेहरा थीं। उनके चले जाने से कांग्रेस को बड़ा राजनीतिक नुकसान हुआ है। राज्य में कांग्रेस हो या भाजपा, उनके मुकाबले की कोई महिला नेता नहीं थी। उनका राजनीतिक अनुभव देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और पर्वतीय राज्य उत्तराखंड दोनों का था। उत्तर प्रदेश में उनकी पहचान महिला शिक्षक नेता के रूप में थी। वे 1974 से 2000 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद में शिक्षक कोटे से विधायक रहीं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनकी मजबूत पकड़ थी।
नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य बनने पर वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनीं और उनका राज्य की राजनीति में 21 सालों तक दमदार दखल रहा। राज्य की नारायण दत्त तिवारी, विजय बहुगुणा, हरीश रावत की सरकारों में सबसे प्रभावशाली मंत्री मानी जाती थीं। इसीलिए उनका संपर्क पूरे प्रदेश में अच्छा था। अगले साल फरवरी-मार्च में होने वाले राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उनके जाने के कारण राजनीति नुकसान की भरपाई कर पाना बहुत मुश्किल होगा। (संकलन : मृणाल वल्लरी)