किशोर का शोर
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर फिर सुर्खियों में हैं। उनके ताजा बयान से कांगे्रस उनके प्रति हमलावर हुई है। प्रशांत किशोर ने अचानक फरमाया कि कांग्रेस पिछले एक दशक में नब्बे फीसद चुनाव हारी है। इससे पहले उन्होंने यह कहकर राहुल गांधी का मजाक उड़ाया था कि उन्हें नरेंद्र मोदी की ताकत का अंदाजा नहीं है। दशकों तक भाजपा कहीं जाने वाली नहीं है, उनका यह बयान भी लोगों को अटपटा लगा था।
रणनीतिकार से जैसे पीके अब खुद राजनीतिक अवतार में आ गए हैं। अतीत पर नजर डालें तो चुनावी रणनीतिकार के नाते उनका सफर 2011 में गुजरात से शुरू हुआ था। नरेंद्र मोदी तब सूबे के मुख्यमंत्री थे। अगले साल विधानसभा चुनाव में मोदी ने जीत की हैट्रिक लगाई थी तो श्रेय उन्होंने पीके को भी दिया था। कुछ अहमियत समझी होगी तभी तो संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए काम करने वाले पीके को उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी अपना रणनीतिकार बनाया होगा।
बहरहाल इस चुनाव के कुछ नारों को गढ़ने के पीछे भी प्रशांत किशोर का ही दिमाग बताया गया था। अब की बार भाजपा सरकार के बजाए नारा था-अब की बार मोदी सरकार। इस चुनाव में भाजपा और नरेंद्र मोदी को तो ऐतिहासिक सफलता मिली ही, प्रशांत किशोर भी छा गए। पर केंद्र सरकार में उन्हें कोई बड़ी हैसियत नहीं मिल पाई। उसके बाद उन्होंने 2015 में बिहार का रुख किया। नीतीश कुमार के रणनीतिकार के नाते। संयोग से जद (एकी), राजद और कांग्रेस का गठबंधन भाजपा पर भारी पड़ा। नीतीश ने पीके को सरकारी ओहदा भी दिया, पर वे जल्दी ही हताश होकर पंजाब पहुंच गए। जहां 2017 में एक दशक बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो गई। चंडीगढ़ से आंध्रप्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस की 2019 की चुनावी रणनीति बनाई। फिर पश्चिम बंगाल आ गए।
दीदी पर तो जादू ही कर दिया। हालांकि चुनाव के दौरान ही उनके भाजपा के पक्ष वाले इंटरव्यू ने खलबली भी मचाई। प्रशांत किशोर और तृणमूल के साथ पर सवाल भी उठे। ममता बनर्जी और उनका साथ अभी चल रहा है। पर अब कुछ लोग पीके को भाजपा का खेल खेलने वाला बता रहे हैं। दबी जुबान से सियासी गलियारों में खुसर-पुसर सुनाई दे रही है कि प्रशांत किशोर ने भाजपा से अंदरखाने ममता का मेल कराया है। कांग्रेस तोड़ने के अभियान में ममता की दिलचस्पी का कुछ तो राज है ही, यूं ही हंगामा तो नहीं बरपा है।
धामी की धूम
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा लिए गए हर फैसले को पलट रहे हैं। इससे राज्य में भाजपा के खिलाफ विभिन्न वर्गों में रोष व्याप्त था। इसी सिलसिले में मुख्यमंत्री धामी ने उस देवस्थानम बोर्ड को भंग कर दिया है जिसने उत्तराखंड के साधु संतों और पंडे पुजारियों तथा हक हकूकधारियों को नाराज कर दिया था। धामी की बोर्ड को भंग करने की घोषणा से साधु-संतों में खुशी की लहर दौड़ गई।
फिलहाल यह वर्ग फिर से भाजपा का मुरीद हो गया और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत रविंद्रपुरी, महामंत्री महंत हरि गिरी, आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी समेत बड़ी तादाद में पंडे पुजारी मुख्यमंत्री के घर गए और उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया। फैसले से तीर्थ पुरोहित इतने ज्यादा खुश हुए कि उन्होंने धामी को उत्तराखंड के शेर की उपाधि दे डाली। प्रधानमंत्री के केदारनाथ-दौरे से पहले जब त्रिवेंद्र सिंह रावत भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत केदारनाथ गए तो वहां पंडे पुजारियों ने उनका जबरदस्त विरोध किया और उन्हें मंदिर में घुसने नहीं दिया।
प्रधानमंत्री के कार्यक्रम से पहले इन तीनों नेताओं ने माहौल बिगाड़ने की कोशिश की थी ऐसा आरोप उनके विरोधी लगा रहे हैं। प्रधानमंत्री के केदारनाथ के दौरे के बाद यह तय हो गया था कि चार दिसंबर को देहरादून में प्रधानमंत्री की जनसभा से पहले मुख्यमंत्री धामी देवस्थानम बोर्ड को समाप्त कर देंगे और यह बात सच साबित हुई, जिससे भाजपा के पक्ष में माहौल बन गया है।
कयास-ए-कुर्सी
भाजपा का एक कुनबा पिछले एक अरसे से मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को लेकर लगातार प्रचार करने में जुटा है कि उन्हें पद से हटाया जा रहा है। लेकिन कहीं कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। इसी तरह के मसले पर पत्रकार जयराम ठाकुर से बात कर रहे थे। जिक्र पिछली वीरभद्र सिंह सरकार का चल पड़ा। मुख्यमंत्री जयराम बोले कि सरकार बनते ही तब भी कुछ लोग यही कहा करते थे कि बस वीरभद्र सिंह तो साल भर में मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिए जाएंगे। लेकिन एक साल भी बीत गया। तब कहा जाने लगा कि वह तीन महीने बाद हटाए जा रहे हैं। तीन महीने भी बीत गए। वीरभद्र सिंह ने इसी तरह पांच साल निकाल दिए, लेकिन वे मुख्यमंत्री की कुर्सी से नहीं हटाए गए।
इन कुछ लोगों का नाम तो जयरम ठाकुर ने नहीं लिया लेकिन सब जानते हैं कि उनका इशारा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की ओर था। वीरभद्र सिंह सरकार को पदच्युत करने के लिए तब धूमल ने केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के सहारे पूरी ताकत लगा दी थी। भ्रष्टाचार के मामलों में भी उन्हें लपेटा गया था। लेकिन कांग्रेस आलाकमान टस से मस नहीं हुआ था। जिक्र तो जयराम पिछली सरकार का कर रहे थे, लेकिन वह साफ संदेश दे रहे थे उनकी कुर्सी को लेकर लगे कयासबाजों को।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)