राजस्थान ने भाजपा आलाकमान की नींद उड़ा दी है। चुनाव की तारीखों के एलान के बाद अब मुख्यमंत्री न कोई लोकलुभावन घोषणा कर पाएंगी और न कोई बड़ा फैसला। यों हवा का रुख मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी भाजपा के पक्ष में नहीं दिख रहा। पर राजस्थान की जमीनी हकीकत ने आलाकमान को परेशान कर दिया है। ऊपर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सभा में कह आए कि इस बार परंपरा टूटेगी। परंपरा एक बार कांग्रेस तो अगली बार भाजपा के सत्ता में आने की रही है। मोदी और शाह चाहेंगे कि राजस्थान में भाजपा सरकार की वापसी हो। हालांकि लोकसभा की दो सीटों के उपचुनाव के नतीजों के बाद से ही रुख पलट चुका है।
वसुंधरा सरकार पर राहुल गांधी ने जनहित का कोई भी काम नहीं करने का आरोप लगाया है। उलटे भ्रष्टाचार के आरोपों से सरकार की कार्यशैली पर उंगलियां लगातार उठीं। और तो और भाजपा के ही कद्दावर नेताओं घनश्याम तिवाड़ी और नरपत सिंह राजवी ने भी सरकार की खूब आलोचना की। सूबे के मतदाताओं ने 2013 में वसुंधरा को छप्परफाड़ बहुमत दिया था। लेकिन पिछले दिनों वसुंधरा की गौरव यात्रा को अपेक्षित रिस्पांस नहीं मिला। रथ के बजाए कई जगह तो उन्हें सभाओं में उड़न खटोले से जाना पड़ा। ऊपर से गुर्जरों की धमकी ने अलग असर दिखाया। भरतपुर और जयपुर संभागों में यात्रा दाखिल ही नहीं हो पाई। चर्चा है कि सेफ्टीवाल्व के तौर पर अमित शाह ने उम्मीदवारों के चयन की कमान खुद संभाली है। रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए कुछ तो उपक्रम करना ही पड़ता। लेकिन कार्यकर्ता तो पहले ही मान चुके हैं कि जीत मुश्किल है। बेचारे अमित शाह अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने की पुरजोर कोशिश तो कर रहे हैं।
हालांकि नाराजगी भूलने और केवल कमल का फूल याद रखने की उनकी सलाह खास असर नहीं दिखा पा रही। कुछ नहीं सूझा तो आलाकमान ने राष्ट्रीय महासचिव मुरलीधर राव को जयपुर में बैठा दिया है। संघी अतीत वाले राव अपना संगठन कौशल आजमा रहे हैं। लगातार बैठकें तो की ही हैं, समितियों के सहारे चुनाव अभियान चलाया है। तो भी उम्मीदवारों की भीड़ को कसौटी बनाएं तो कांग्रेस का दफ्तर भाजपाई दफ्तर से ज्यादा गुलजार है। कांग्रेसी जहां वसुंधरा सरकार के पांच साल के कुशासन को मुद्दा बना रहे हैं, वहीं बेचारे भाजपाई तो अपनी तथाकथित उपलब्धियों की चर्चा तक से कतराते नजर आ रहे हैं।